हनुमानजी अपने अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन से कलियुग में सबसे अधिक पूजित और प्रसिद्ध हैं । आपत्तियों के निवारण के लिए उनके वीररूप की और सुखप्राप्ति के लिए दास रूप की आराधना की जाती है। वानर होने पर भी श्रीराम की दास्यभक्ति के प्रताप से वे स्वयं देवता बन गए । माता जानकी के वरदान से हनुमानजी स्वयं अष्टसिद्धि और नवनिधियों को देने में समर्थ हैं—
‘अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ।। (हनुमानचालीसा)
भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि जो कोई मेरे साथ तुम्हारी कीर्ति-कथा का भक्तिभाव से गान करेगा वह भवसागर से पार हो जाएगा—
मोहि सहित सुभ कीरति तुम्हारी परम प्रीति जो गाइहैं ।
संसार सिंधु अपार पारप्रयास बिनु नर पाइहैं ।। (मानस ६।१०५। छं १)
कैसे करें हनुमानजी की उपासना
हनुमानजी की उपासना ब्रह्मचर्यपालन, शत्रुओं के नाश, काम-विजय, कार्यसिद्धि, दु:खों को दूर करने, रोगों के नाश, साधक को पूर्ण प्रभु विश्वासी बनाने और अंतकाल में प्रभु श्रीराम से मिलाने के लिए की जाती है । हनुमानजी के स्मरण से ही बुद्धि, बल, यश, धीरता, निर्भयता, आरोग्य, सुदृढ़ता और बोलने में महारत प्राप्त होती है और मनुष्य के अनेक रोग दूर हो जाते हैं । भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस उनके नाम लेने मात्र से ही भाग जाते हैं—
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ।।
—हनुमानजी की उपासना करने वाले व्यक्ति को शुद्धता, पवित्रता और सात्विकता का पालन करना चाहिए ।
—हनुमानजी की उपासना में पूजा, जप, पाठ और ध्वजा-पताका आदि प्रमुख हैं ।
—हनुमानजी की प्रतिमा का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें ।
—हनुमानजी को कुएं के शुद्ध ताजा जल या गंगाजल से ही स्नान कराना चाहिए । पर्वों पर दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बने पंचामृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए।
—हनुमानजी को केसर मिला मलयागिरि चन्दन या लालचन्दन लगाएं ।
—शुद्ध घी या तिल या चमेली के तेल में सिन्दूर मिलाकर हनुमानजी को चोला चढ़ाना चाहिए । इससे हनुमानजी प्रसन्न होते हैं। लंका विजय के बाद जब श्रीरामचन्द्रजी ने सभी को उपहार प्रदान किए तो उस समय सीताजी ने हनुमानजी को एक बहुमूल्य मणियों की माला दी, किन्तु उसमें श्रीराम-नाम न होने से हनुमानजी उदास हो गए । तब सीताजी ने उन्हें अपनी मांग का सिन्दूर देकर कहा कि ‘यह मेरा मुख्य सौभाग्यचिह्न है, इसको मैं धन-धाम व रत्नों से भी अधिक प्रिय मानती हूँ, तुम इसको स्वीकार करो ।’ हनुमानजी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया । इसीलिए हनुमानजी को तेलमिश्रित सिन्दूर का सर्वांग में लेप करते हैं ।
—हनुमानजी पर पुरुषवाचक नाम वाले फूल ही चढ़ाये जाते हैं क्योंकि हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी हैं । गुलाब, गेंदा, कमल, केवड़ा, हजारा और सूरजमुखी आदि की बनी माला और पुष्प हनुमानजी को अर्पण करें ।
—हनुमानजी को जो नैवेद्य चढ़ाया जाए वह शुद्ध घी में बना होना चाहिए । घर पर बनाया प्रसाद सर्वश्रेष्ठ है ।हनुमानजी को गुड़, भुना चना, पुए, केला, अमरूद और बेसन के लड्डू और बूंदी का भोग लगता है । प्रात:काल उन्हें गुड़, नारियल का गोला और मोदक (लड्डू) का; दोपहर को गेहूँ की रोटी का चूरमा या घी में बने रोट, और रात्रि में आम, अमरूद या केला अर्पण करना चाहिए ।
—घी में भीगी हुए एक या पांच बत्तियों से हनुमानजी की आरती करनी चाहिए ।
—हनुमानजी श्रीरामचन्द्रजी की कथा सुनकर प्रसन्न होते हैं इसलिए वाल्मीकीय रामायण, रामचरितमानस और विशेषकर सुन्दरकाण्ड के पाठ से विशेष रूप से प्रसन्न होते है ।
—पूजन के बाद जप करने से हनुमानजी को प्रसन्न होते देर नहीं लगती । ‘राम-राम’ या ‘सीताराम’ जपना शुरु कर दीजिए बस वे रामभक्त प्रसन्न होकर स्वयं उपस्थित हो जाते हैं ।
हनुमानजी के कुछ सिद्ध मन्त्र
कार्यसिद्धि के लिए इस मन्त्र की एक माला प्रतिदिन करें—
‘ॐ हनुमते नम:’
सब प्रकार से रक्षा और कामना पूर्ति के लिए इस मन्त्र की एक माला प्रतिदिन करें—
अंजना गर्भ सम्भूत कपीन्द्र सचिवोत्तम ।
रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनूमन् रक्ष सर्वदा ।।
अर्थात्—अंजना के गर्भ से उत्पन्न हुए, सुग्रीव के श्रेष्ठ मन्त्री, श्रीराम के प्यारे हनुमान ! आपको प्रणाम है । आप मेरी सदा रक्षा करें ।
शत्रुनाश, आत्मरक्षा और संपत्ति प्राप्ति का मन्त्र
मर्कटेश महोत्साह सर्वशोकविनाशन ।
शत्रून् संहर मां रक्ष श्रियं दापय में प्रभो ।।
अर्थात्—हे वानराधीश, महान उत्साही, सब प्रकार के शोक का नाश करने वाले ! मेरे शत्रुओं का नाश कर दो, मेरी रक्षा करो और मुझे सम्पत्ति प्रदान करो ।
संकट दूर करने के लिए करें हनुमानजी का यह विशेष उपाय
देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी (१२१ दिन) तक प्रतिदिन ११, २१, ३१, १०८ जितने बन सकें तुलसीपत्र पर कदम्ब की डाल की कलम बनाकर अष्टगंध से ‘राम’ लिखकर ‘ॐ हनुमते नम:’ इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए हनुमानजी के मस्तक पर चढ़ाएं । इस प्रयोग से सभी प्रकार के अनिष्ट व संकट दूर हो जाते हैं । इससे सम्बधित एक प्रसंग है—
भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद एक दिन माता जानकी ने वात्सल्यभाव से हनुमानजी से कहा–’कल मैं तुम्हें अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाऊंगी।’ हनुमानजी के आनन्द का क्या कहना? जगन्माता सीता स्वयं अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाएं, ऐसा सौभाग्य किसे मिलता है? दूसरे दिन जनकनन्दिनी सीता ने अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये और हनुमानजी को आसन पर बिठाकर परोसने लगीं । माता के स्नेह से भाव-विभोर होकर हनुमानजी बड़े प्रेम से भोजन करने लगे । माता सीता जो कुछ भी थाली में परोसतीं, एक ही बार में वह हनुमानजी के मुख में चला जाता । माता की रसोई का भोजन समाप्त होने को आया पर हनुमानजी के खाने की गति कम न हुई। माता जानकी बड़ी चिन्तित हुईं कि अब क्या किया जाए? लक्ष्मणजी यह देखकर सब समझ गए और सीताजी से बोले–’ये रुद्र के अवतार हैं, इनको इस तरह कौन तृप्त कर सकता है?’
लक्ष्मणजी ने एक तुलसीदल पर चन्दन से ‘राम’ लिखकर हनुमानजी की थाली में रख दिया। वह तुलसीदल मुख में जाते ही हनुमानजी ने तृप्ति की डकार ली और थाली में बचे हुए भोजन को पूरे शरीर पर मल लिया और राम-नाम का कीर्तन करते हुए नृत्य करने लगे।
हनुमानजी की उपासना में रखें ये सावधानियां
जिस प्रकार हनुमानजी में महावीर होने पर भी अपने बल का अभिमान नहीं है, ज्ञानियों में अग्रगण्य होने पर भी अत्यन्त विनीत हैं, रामकाज के लिए अपने पर्वताकार शरीर को मच्छर के समान बना लेते हैं; उसी तरह हनुमानजी के उपासक को अभिमान, झूठे दर्प का त्यागकर स्वार्थ रहित सेवा के आदर्श को अपनाना चाहिए तभी हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो सकती हैं । हनुमानजी जब मनुष्य को सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए उपासना करते देखते हैं तो वे निराश हो जाते हैं ।
आज मनुष्य तकनीकी रूप से बहुत समृद्ध होते हुए भी मानसिक रूप से अस्त-व्यस्त दिखाई देता है । अत: यदि हनुमानजी जैसे सर्वगुणसंपन्न चरित्र से प्रेरणा ली जाए तो शरीर को रोग और दुर्बलताओं से, बुद्धि को अज्ञान और अशुभ विचारों से, कर्मेन्द्रियों को जड़ता और आलस्य से, हृदय को कठोरता, भय और स्वार्थ से तथा आत्मा को अहंकार के पंजे से मुक्त कर सकते हैं ।
लाल देह लाली लसे अरु धरि लाल लंगूर ।
ब्रजदेह दानव दलन जय जय जय कपि सूर ।।