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राम तें अधिक राम का दासा : हनुमानजी

हनुमानजी यद्यपि श्रीराम के दूत और दास के रूप में प्रसिद्ध हुए पर उन्होंने श्रीराम के चरणकमलों की भक्ति से यह सिद्ध कर दिया कि दूत या सेवक का कार्य निंदनीय नहीं है; बल्कि वे सच्चे कर्मयोगी भक्त हैं । उन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि ईश्वर की कृपा से जो कर्म करने को मिले, उसी में दक्षता प्राप्त करनी चाहिए । मनुष्य को सच्चा कर्मयोगी बनना चाहिए ।

अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी

हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था । हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है ।

ब्रह्मचर्य है जिनकी पहचान, ऐसे महावीर हनुमान

‘जहां काम तहँ राम नहिं, जहां राम नहिं काम’ अर्थात् जिसके मन में काम भावना होती है वह श्रीराम की उपासना नहीं कर सकता और जो श्रीराम को भजता है, वहां काम ठहर नहीं सकता । हनुमानजी के तो रोम-रोम में राम बसे हैं और वे सारे संसार को ‘सीयराममय’ देखते थे । इसीलिए हनुमानजी को आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करना असम्भव नहीं था । हनुमानजी के अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत में कोई त्रुटि नहीं आई ।

संकटनाश के लिए हनुमानजी की विशेष पूजा

किसी एक देवता की आराधना एक ही फल प्रदान करती है किन्तु हनुमानजी की आराधना बुद्धि,बल, कीर्ति, धीरता, निर्भीकता, आरोग्य, व वाक्यपटुता आदि सभी कुछ प्रदान कर देती है ।

भगवान श्रीराम का शब्दावतार ‘श्रीरामचरितमानस’

गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान शंकर, मारुतिनंदन हनुमान, पराम्बा पार्वतीजी, परब्रह्म भगवान श्रीराम और शेषावतार लक्ष्मणजी ने समय-समय पर अपना दर्शन देकर श्रीरामचरितमानस उनसे लिखवाया और भगवान श्रीराम ने ‘शब्दावतार’ के रूप में श्रीरामचरितमानस में प्रवेश किया ।

पंचमुखी हनुमान में है भगवान के पांच अवतारों की शक्ति

पंचमुखी हनुमानजी में भगवान के पांच अवतारों की शक्ति समायी है, इसलिए महानतम ऊर्जा के धनी हनुमानजी कठिन-से-कठिनतम किसी भी कार्य या समस्या को चुटकी बजाते हुए हल कर देते है ।

हनुमानजी की पूजाविधि और सिद्ध मन्त्र

हनुमानजी को किस समय किस वस्तु का नैवेद्य लगाना चाहिए