मन का हो तो अच्छा, मन का ना हो तो और...

एकनाथ जी को अनुकूल पत्नी मिली तो उन्हें उसमें आनंद है और तुकाराम जी को प्रतिकूल पत्नी मिली तो वे उसमें खुश हैं और तीसरे नरसी जी की पत्नी संसार छोड़ कर चली गई; फिर भी तीनों संत अपनी-अपनी परिस्थिति से संतुष्ट हैं और वे इसके लिए भगवान का उपकार मानते हैं ।

ढाई अक्षर के ‘कृष्ण’ नाम के बड़े-बड़े अर्थ

‘कृष्ण’ नाम की कई व्याख्याएं मिलती हैं जो यह दर्शाती है कि श्रीकृष्ण में सब देवताओं का तेज समाया हुआ है, वे परब्रह्म परमात्मा है, आदिपुरुष हैं, भक्ति के दाता व महापातकों का नाश करने वाले हैं । श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है--सब अभिलाषित फलों को देने वाला है ।

उत्तम भक्ति किसे कहते हैं ?

एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं । परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की । भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हों, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है । मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है ।

गरुड़, सुदर्शन चक्र और श्रीकृष्ण की पटरानियों का गर्व-हरण

जहां-जहां अभिमान है, वहां-वहां भगवान की विस्मृति हो जाती है । इसलिए भक्ति का पहला लक्षण है दैन्य अर्थात् अपने को सर्वथा अभावग्रस्त, अकिंचन पाना । भगवान ऐसे ही अकिंचन भक्त के कंधे पर हाथ रखे रहते हैं । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं ।

भगवान श्री राधाकृष्ण शरणागति स्तोत्र

जो मनुष्य भगवान श्री राधाकृष्ण की चरण-सेवा का अधिकार बहुत शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, उनको इस स्तोत्र (प्रार्थनामय मंत्र) का नित्य जप करना चाहिए । इसके लिए साधक को जीवन भर ‘चातकी भाव’ से इस प्रार्थना का पाठ करना चाहिए ।

भगवान श्रीकृष्ण का पांचजन्य शंख

भगवान श्रीकृष्ण अपने चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं । उनके शंख का नाम ‘पांचजन्य’ है, जिसे उन्होंने महाभारत युद्ध के आरम्भ में कुरुक्षेत्र के मैदान में बजाया था । श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जब भीष्म पितामह सहित कौरव सेना के द्वारा बजाये हुए शंखों और रणवाद्यों की ध्वनि सुनी, तब इन्होंने भी युद्ध आरम्भ की घोषणा के लिए अपने-अपने शंख बजाए ।

श्रीराधा का अद्भुत ऐश्वर्य और कंस की पराजय

श्रीराधा की ऐसी अद्भुत ऐश्वर्य शक्ति थी कि कंस के असुर बरसाने की सीमा से बहुत बच कर रहते थे; क्योंकि उनके मन में भय लगा रहता था कि यदि हम भी सखी बन गए तो गोपियां हमसे भी न जाने कब तक गोबर थपवाएंगी ।

भक्तवांछा कल्पतरु ठाकुर श्री राधारमण जी

ब्रह्म भले ही निर्गुण हो पर उपासना के लिए वह सगुण होकर आकार विशेष ग्रहण करता है । जैसे भगवान विष्णु सर्वव्यापक हैं फिर भी उनकी उपस्थिति (संनिधि) शालग्राम जी में होती है । जिस प्रकार प्रहृलाद जी के लिए भगवान खंभे से प्रकट हुए, नामदेव जी के लिए ब्रह्मराक्षस में से प्रकट हो गए थे; वैसे ही श्री गोपाल भट्ट की इच्छा पूर्ति के लिए श्री राधारमण जी की सुन्दर मूर्ति शालिग्राम से प्रकट हो गई थी । इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, भक्ति का प्रताप ही ऐसा है ।

गोलोक से ब्रज भूमि में गिरिराज गोवर्धन का अवतरण

गोलोक के मुकुट व परमब्रह्म परमात्मा के छत्ररूप श्रीगिरिराज गोवर्धन श्रीवृन्दावन के अंक में स्थित हैं । श्रीगिरिराज गोवर्धन व्रजमण्डल का हृदय व सबसे अधिक पवित्र स्थल है । श्रीगिरिराज गोवर्धन मात्र पर्वत ही नहीं है, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण का एक स्वरूप है ।

कलियुग में साक्षात् गोपी अवतार है मीराबाई

मनुष्य का भगवान से केवल सम्बन्ध हो जाना चाहिए । वह सम्बन्ध चाहे जैसा हो—काम का हो, क्रोध का हो, स्नेह का हो, नातेदारी का हो या और कोई हो । चाहे जिस भाव से भगवान में अपनी समस्त इन्द्रियां और मन जोड़ दिया जाए तो उस जीव को भगवान की प्राप्ति हो ही जाती है ।