भगवान श्रीकृष्ण की वंशी का अवतार श्रीहित हरिवंशजी गोस्वामी

श्रीहित हरिवंशजी की उपासना पद्धति में श्रीराधाजी की प्रधानता है और ये श्रीराधाकृष्ण की निकुंज लीला में अपने को एक सखी मान कर उनकी सेवा करते थे । श्रीराधा ने इन्हें दर्शन देकर अपनी सेवा-पद्धति और मन्त्र का उपदेश दिया और अपना शिष्य बना लिया ।

श्रीकृष्ण : ‘वेदों में मैं सामवेद हूँ’

श्रीकृष्ण चरित्र भी सामवेद के इस मन्त्र की तरह मनुष्य को हर परिस्थिति में सम रह कर जीना सिखाता है । भगवान श्रीकृष्ण की सारी लीला में एक बात दिखती है कि उनकी कहीं पर भी आसक्ति नहीं है । द्वारकालीला में सोलह हजार एक सौ आठ रानियां, उनके एक-एक के दस-दस बेटे, असंख्य पुत्र-पौत्र और यदुवंशियों का लीला में एक ही दिन में संहार करवा दिया, हंसते रहे और यह सोचकर संतोष की सांस ली कि पृथ्वी का बचा-खुचा भार भी उतर गया ।

भक्ति की शक्ति : जब भगवान ने की भक्त की सेवा

‘बड़ी मां ! बड़ी मां !’ बाहर से किसी ने आवाज दी । गोपीबाई की नींद खुल गई । उन्होंने लेटे-लेटे ही पूछा—‘कौन है ?’ बाहर से आवाज आई ‘मैं श्याम हूँ ।’ गोपीबाई ने कहा—‘किवाड़ खुले पड़े हैं, अन्दर आ जाओ ।’

कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए पढ़ें कालिय-नाग दमन लीला

भगवान ने कालिय नाग से कहा—‘मैंने तुम्हारे सिर पर अपने चरणों की मुहर लगा दी है, अब तुम वैष्णव हो गए और मेरे नित्य पार्षदों में शामिल हो गए हो । तुम्हारी और गरुड़जी की जो दुश्मनी थी वह मेरे चरण-चिह्न अंकित होने से समाप्त हो गयी है ।’

जब भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को दिखाया अपना मायाजाल

भगवान की माया क्या है ? संतों ने माया को ‘नर्तकी’ कहा है । इस नर्तकी माया के जाल से बचना है तो ‘नर्तकी’ का उल्टा कर दो । जो शब्द बनेगा वह है ‘कीर्तन’ अर्थात् जो भगवान का कीर्तन व नाम-स्मरण करता है, उसे माया रुलाती नहीं है ।

भगवान चतुर्भुजजी और देवाजी पुजारी

सच-झूठ की परीक्षा करने के लिए उन्होंने भगवान का एक बाल खींचा । बाल के खींचे जाने से मानो ठाकुरजी को पीड़ा हुई और ठाकुरजी ने अपनी नाक सिकोड़ ली । बाल तो उखड़ गया लेकिन भगवान के सिर से खून की धार बह निकली और उसके छींटे राणाजी के अंगरखे पर भी पड़े ।

कर्मण्येवाधिकारस्ते : कर्मों द्वारा भगवान का पूजन

जैसे सरोवर में कमलपत्र जलराशि से सदैव ऊपर उठे हुए उससे निर्लिप्त व अछूते रहते हैं; वैसे ही कर्मयोगी मनुष्य सभी कर्मो को परमात्मा में अर्पित करने से उनके कर्मफल व पाप-पुण्य से मुक्त रहते हैं ।

भगवान श्रीराम का विजय-मन्त्र

जब हनुमानजी संकट में थे, तब सबसे पहले ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ मन्त्र नारदजी ने हनुमानजी को दिया था । इसलिए संकट-नाश के लिए इस मन्त्र का जप मनुष्य को अवश्य करना चाहिए । यह मन्त्र ‘मन्त्रराज’ कहलाता है ।

अंत मति सो गति

मोह या आसक्ति ही मनुष्य के समस्त दु:खों का कारण है । राजर्षि भरत ने मरणासन्न मृगछौने पर दया करके उसकी रक्षा की, यह तो बड़े पुण्य का कार्य था परन्तु इसमें धीरे-धीरे एक दोष उत्पन्न हो गया, यह उनको पता ही न चला ।

भगवान श्रीकृष्ण का मुक्ताचरित्र

श्रीकृष्ण की भगवत्ता का परीक्षण, खेतों में मोती उपजना और श्रीकृष्ण द्वारा मोतियों का ढेर वृषभानुजी के यहां भेजना