गुरु-भक्ति से युगल स्वरूप के दर्शन : भक्ति कथा

युगलस्वरूप के साक्षात् दर्शन करने से श्रीविट्ठलविपुलदेव के नेत्र स्तब्ध और देह जड़ हो गई, नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे । मुख से बोल निकले—‘हे रासेश्वरी ! आप करुणा करके मुझे अपनी नित्यलीला में स्थान दो । अब मेरे प्राण संसार में नहीं रहना चाहते हैं ।’

भगवान श्रीकृष्ण का सबसे लोकप्रिय मन्त्र (अर्थ सहित)

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं—‘अर्जुन ! जो मेरे नामों का गान करके मेरे निकट नाचने लगता है, या जो मेरे नामों का गान करके मेरे समीप प्रेम से रो उठते हैं, उनका मैं खरीदा हुआ गुलाम हूँ; यह जनार्दन दूसरे किसी के हाथ नहीं बिका है–यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ ।’

कृष्णावतार में किस देवता ने लिया कौन-सा अवतार ?

यह प्रसंग अथर्ववेद के श्रीकृष्णोपनिषत् से उल्लखित है । जानते हैं, श्रीकृष्ण के परिकर के रूप में किस देवता ने क्या भूमिका निभाई ?

श्रीकृष्ण-कृपा प्राप्ति के लिए पढ़े श्रीराधा चालीसा

श्रीराधा की स्तुति में गाई जाने वाली श्रीराधा चालीसा के पठन से श्रीराधा साधक को अपने चरणकमलों की भक्ति प्रदान करती हैं, साथ ही श्रीकृष्ण भी अपना कृपाकटाक्ष साधक पर बरसा देते हैं । साथ ही साधक को व्रज-वृन्दावन में निवास का वर देते हैं ।

भगवान का अमोघ अस्त्र : सुदर्शन चक्र

भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय आयुध सुदर्शन चक्र अत्यन्त वेगवान व जलती हुई अग्नि की तरह शोभायमान और समस्त शत्रुओं का नाश करने वाला है । सुदर्शन चक्र का ध्यान करने से श्रीकृष्ण की प्राप्ति होती है और हमेशा के लिए भक्तों का भय दूर हो जाता है व जीवन संग्राम में विजय प्राप्त होती है ।

श्रीराधा की नाममाला में गूंथा है ‘आनन्दचन्द्रिका’ स्तोत्र

श्रीरूपगोस्वामीजी ने श्रीराधा के दस नामों की माला पिरोकर ‘आनन्दचन्द्रिका’ नामक स्तवराज (स्तोत्रों का राजा) लिखा जो भक्तों के समस्त क्लेशों दूर करने वाला और परम सौभाग्य देने वाला है ।

संत नागाजी का हठ और भगवान श्रीराधा-कृष्ण

स्वामिनीजी वृषभानुनन्दिनी श्रीराधा वहां पधारीं और उन्होंने नागाजी को विश्वास दिलाया कि ये ही निकुंज के श्यामसुन्दर हैं । अपने आराध्य श्रीराधाश्यामसुन्दर के दर्शन कर श्रीनागाजी ने उन्हें अपनी जटा सुलझाने की अनुमति दे दी । ठाकुरजी ने अपने चार हाथ प्रकट कर उनकी जटा सुलझा दीं ।

भगवन्नाम जप का मानव शरीर पर प्रभाव

भगवन्नाम जप का केवल मानव शरीर पर ही प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि वनस्पति जगत भी इससे प्रभावित होता है । तुलसीदासजी ने जब व्रजभूमि में प्रवास किया तो उन्होंने अनुभव किया कि व्रजभूमि में रहने वाले संत-भक्तों के सांनिध्य में वहां के वृक्ष व लताओं से भी ‘राधेश्याम’ की ध्वनि निकलती है ।

भगवान विष्णु के चरण-चिह्न और उनका भाव

भगवान के चरणरज की ऐसी महिमा है कि यदि इस मानव शरीर में त्रिभुवन के स्वामी भगवान विष्णु के चरणारविन्दों की धूलि लिपटी हो तो इसमें अगरू, चंदन या अन्य कोई सुगन्ध लगाने की जरूरत नहीं, भगवान के भक्तों की कीर्तिरूपी सुगन्ध तो स्वयं ही सर्वत्र फैल जाती है ।

श्रीकृष्ण की आराधिका श्रीराधा

भगवान प्रेम के भूखे हैं । उनकी एक से दो होने की इच्छा हुई इसलिए भगवान प्रेम-लीला के लिए श्रीराधा और श्रीकृष्ण के रूप में दो हो जाते हैं । वास्तव में श्रीराधा श्रीकृष्ण से अलग नहीं होतीं, श्रीकृष्ण ही प्रेम की वृद्धि के लिए श्रीराधा को अलग करते हैं । दोनों में कोई-छोटा-बड़ा नहीं है । दोनों ही एक-दूसरे के इष्ट और एक-दूसरे के भक्त हैं ।