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संकटहरण श्रीगणेश और संकष्ट चतुर्थी (संकष्टी)

भारतीय संस्कृति में भगवान श्रीगणेश को संकटहरण भी कहा जाता है। प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्थी को भगवान श्रीगणेश की अर्चना व व्रत का विशेष विधान है। इस तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि का व्रत कष्ट निवारण करने वाला है। यदि भविष्य में किसी संकट की आशंका हो या वर्तमान में किसी संकट से ग्रस्त हों तो उसके निवारण के लिए संकष्ट चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत को भाद्रपदमास या माघमास से आरम्भ करके हर महीने करने से संकट का नाश हो जाता है। इसमें चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी ली जाती है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत में चन्द्रमा की पूजा क्यों की जाती है?

संकष्टी चतुर्थी व्रत तो गणेशजी का है फिर इसमें चन्द्रमा की पूजा क्यों की जाती है? इस सम्बन्ध में ब्रह्माण्डपुराण में वर्णन है कि पार्वतीजी ने गणेशजी को प्रकट किया, उस समय सभी देवताओं ने आकर गणेशजी का दर्शन किया; किन्तु शनिदेव दूर रहे। कारण यह था कि उनकी दृष्टि से प्रत्येक प्राणी और पदार्थ के टुकड़े हो जाते थे। परन्तु पार्वतीजी के रुष्ट होने से शनि ने गणेशजी पर दृष्टि डाली; फलस्वरूप गणेशजी का मस्तक उड़कर अमृतमय चन्द्रमण्डल में चला गया।

एक अन्य कथा के अनुसार पार्वतीजी ने अपने शरीर के मैल से गणेशजी को उत्पन्न करके उनको द्वार पर बैठा दिया। थोड़ी देर बाद जब भगवान शंकर अन्दर जाने लगे, तब गणेशजी ने उनको जाने नहीं दिया। भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से उनका मस्तक काट डाला और वह चन्द्रलोक में चला गया। पार्वतीजी की प्रसन्नता के लिए भगवान शंकर ने हाथी के सद्योजात (हाल ही में पैदा हुए) बच्चे का मस्तक मंगाकर गणेशजी को जोड़ दिया।

भगवान शंकर ने श्रीगणेश को वर प्रदान करते हुए कहा–’गणेश्वर! भाद्रपदमास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्रोदय के समय गिरिजा के सुन्दर चित्त से तेरा रूप प्रकट हुआ है, इसलिए उसी दिन से आरम्भ करके प्रतिमास तेरा उत्तम व्रत करना चाहिए। यह व्रत सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाला होगा। जो लोग विभिन्न उपचारों से विधिपूर्वक तेरी पूजा करेंगे, उनके विघ्नों का सदा के लिए नाश हो जाएगा और कार्य सफल होंगे। व्रती मनुष्य जिस-जिस वस्तु की कामना करता है, वह निश्चय ही उसे प्राप्त हो जाती है।’

ऐसा माना जाता है कि गणेशजी का असली मस्तक चन्द्रमा में है इसीलिए चन्द्रमा का दर्शन किया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि

कृष्ण चतुर्थी के दिन प्रात: स्नानादि करके दाहिने हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर इस मन्त्र को बोलकर संकल्प करें–

मम वर्तमानागामि सकलसंकट निरसन पूर्वक सकलाभीष्ट सिद्धये संकटचतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।।
या
गणपति प्रीतये संकष्ट चतुर्थी व्रतं करिष्ये।

भगवान श्रीगणेश का षोडशोपचार पूजन

सायंकाल पुन: स्नान करके श्रीगणेश की पूजा करें। चौकी पर श्रीगणेशमूर्ति की स्थापना करके–

१. श्रीगणेशाय नम: से आवाहन करें।
२. विघ्नविनाशिने नम: से आसन समर्पित करें।
३. लंबोदराय नम: से पाद्य अर्पित करें।
४. चंद्रार्घधारिणे नम: से अर्घ्य अर्पित करें।
५. विश्वप्रियाय नम: से आचमन कराएं।
६. ब्रह्मचारिणे नम: से स्नान करायें।
७. कुमारगुरवे नम: वस्त्र पहनाएं।
८. शिवात्मजाय नम: से यज्ञोपवीत पहनाएं।
९. रुद्रपुत्राय नम: से गंध लगाएं।
१०. विघ्नहर्त्रे नम: से अक्षत चढ़ाएं।
११. परशुधारिणे नम: से पुष्प चढाएं।
१२. भवानीप्रीतिकत्रे नम: से धूप दिखाएं।
१३. गजकर्णाये नम: से दीपक प्रज्जवलित करें।
१४. अघनाशिने नम: से नैवेद्य अर्पित करें।
१५. सिद्धिकाय नम: से ताम्बूल अर्पित करें।
१६. सर्वभोगदायिने नम: से दक्षिणा अर्पण करें। इस प्रकार षोडशोपचार पूजन करें। भगवान श्रीगणेश को ११ या २१ दूर्वा का मुकुट बनाकर सिर पर चढाएं।

इसके बाद कपूर और घी की बाती से आरती कर पुष्पांजलि और नमस्कार करें। प्रार्थना मन्त्र है–

संसारपीडा व्यथितं हि मां सदा संकष्टभूतं सुमुख प्रसीद।
त्वं त्राहि मां मोचय कष्टसंघान्नमो नमो विघ्नविनाशनाय।।

‘हे सुमुख (सुन्दर मुख वाले) गणपतिजी! मैं संसार के दु:खों में फंसा हुआ, भय से पीड़ित और कष्टों से दु:खी हूँ। आप मेरे ऊपर कृपा कीजिए। मेरी रक्षा कीजिए। आपको बारम्बार प्रणाम है।

चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा का पूजन कर अर्घ्य दें। चन्द्रमा के अर्घ्य का मन्त्र है–

गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक।।

अर्थात्–गगनरूपी समुद्र के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय, गणेश के प्रतिरूप चन्द्रमा! आप मेरा दिया हुआ यह अर्घ्य स्वीकार कीजिए।

फिर श्रीगणेश को निम्न मन्त्र से अर्घ्य प्रदान करें–

गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धिप्रदायक।
संकष्टं हर मे देव गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।।

अर्थात्–समस्त सिद्धियों के दाता गणेश! आपको नमस्कार है। संकटों का हरण करने वाले देव, आप यह अर्घ्य ग्रहण कीजिए।

इसके बाद चतुर्थी तिथि को इस मन्त्र से अर्घ्य प्रदान करें–

तिथीनामुत्तमे देवि गणेशप्रियवल्लभे।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं सर्वसिद्धिप्रदायिके।।

अर्थात्–तिथियों में उत्तम, गणेशजी को प्यारी चतुर्थी तिथि की अधिष्ठात्री देवी आपको नमस्कार है। आप मेरे समस्त संकटों को नष्ट करने के लिए अर्घ्य ग्रहण करें।

ब्राह्मण को वायना (लड्डू व दक्षिणा) देने व रात्रि में चन्द्रमा की पूजा के बाद ही भोजन करें। दिन में दूध फल आदि ले सकते हैं।

संकष्टी चतुर्थी व्रत की महिमा

यह व्रत हर महीने, एक वर्ष, तीन वर्ष या जन्म भर करें तो व्रती के संकट दूर होकर शान्ति मिलती है और ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त कर मनुष्य को सुख, सौभाग्य व सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। सभी लोगों को विशेषकर स्त्रियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह परम सौभाग्य देने वाला है। यह व्रत समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस व्रत के प्रभाव से धन-धान्य और आरोग्य की प्राप्ति होती हैं। समस्त आपदाएं नष्ट हो जाती हैं।

वैसे तो प्रत्येक महीने की चतुर्थी तिथि का व्रत करना चाहिए पर यदि यह सम्भव न हो तो भाद्रपद-कृष्ण चतुर्थी (बहुला), कार्तिक-कृष्ण चतुर्थी (करवा) और माघ-कृष्ण चतुर्थी (तिलका) का व्रत कर लेना चाहिए। रविवार या मंगलवार से युक्त चतुर्थी का विशेष माहात्म्य है। इस प्रकार की एक चतुर्थी का व्रत करने से पूरे वर्ष की चतुर्थी तिथि के व्रत का फल मिलता है।

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