jai shri ganesh

बुद्धिभरण अशरण शरण, हरण अमंगल जाल ।
सिद्धिसदन कविवर बदन, जय जय गिरिजा लाल ।।

सब प्रकार के कष्टों का अचूक उपाय गणपति आराधना

एक बार नैमिषारण्य में सभी ऋषियों ने सूतजी से पूछा कि

  • सभी कार्य विघ्नरहित कैसे पूरे हों ?
  • मनुष्यों को पुत्र, सौभाग्य व धन की प्राप्ति कैसे हो?
  • पति-पत्नी में क्लेश से मुक्ति व भाई-भाई में आपस में द्वेष से छुटकारा कैसे मिले?
  • विद्या की प्राप्ति व व्यापार में सफलता कैसे प्राप्त हो?
  • शत्रुओं पर विजय कैसे मिले? व
  • किस देवता की आराधना से मनुष्यों की मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है?-

—ऐसा कोई उपाय बतलाइए।

गणेश चतुर्थी पर श्रीगणेश आराधना से मिलता है खुशियों का वरदान

सूतजी ने कहा–महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से यही प्रश्न किया कि ‘बिना किसी विघ्न के हमारी विजय किस प्रकार होगी?’

तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा–पार्वती की रज से उत्पन्न गणपति की पूजा करने से आपको आपका राज्य मिल जाएगा । भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष चतुर्थी से ही गणपति की आराधना शुरु कर दीजिए ।

  • भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी से अनन्त चतुर्थी तक चलने वाला श्रीगणेश उत्सव सृष्टि को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है । चारों तरफ खुशियां ही खुशियां बरसती हैं। मोदकप्रिय गणेश भक्तों की झोली मोद (आनन्द) से भर देते हैं और भक्तों का जीवनखुशियों से महकने लगता है।
  • इस दिन स्नान-दान, व्रत, पूजन आदि करने से गणपति की कृपा सौगुना अधिक प्राप्त होती है ।
  • भगवान गणपति अपने भक्तों को समस्त कार्यकलापों में सिद्धि प्रदान करते हैं, अत: उनका नाम सिद्धिविनायक प्रसिद्ध हो गया।
  • भगवान गणपति हाथ में परशु लेकर भक्तजनों के संकट दूर करते हैं और अपनी संक्षिप्त अर्चना से ही अत्यन्त संतुष्ट हो भक्त के मन की हर उलझन दूर कर देते हैं और मनुष्य के सारे कष्टों का अंत हो जाता है साथ ही सभी कार्यों में सफलता के साथ सुख-शान्ति प्रदान करते हैं।
  • इस व्रत को सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया था जब उन पर स्यमन्तक मणि चुराने का झूठा दोष लगाया गया था । इसलिए इस व्रत को करने से मनुष्य झूठे दोषारोपण व कलंक से मुक्त हो जाता है ।

श्रीगणेश का चतुर्थी तिथि में जन्म लेने का क्या कारण है?

श्रीगणेश का चतुर्थी तिथि में जन्म लेने का कारण यह है कि श्रीगणेश बुद्धिप्रदाता हैं । अवस्थाएं चार प्रकार की होती हैं–१. जाग्रत, २. स्वप्न, ३. सुषुप्ति और ४. तुरीय ।  इन चार अवस्थाओं में से चौथी अवस्था ज्ञानावस्था है । इस कारण ज्ञान (बुद्धि) प्रदान करने वाले श्रीगणेश का जन्म चतुर्थी तिथि में हुआ है।

गणेश चतुर्थी पर इस प्रकार करें श्रीगणेश का पूजन

गणपतिजी की पूजा पीले या लाल वस्त्र पहनकर करें । सुन्दर सजी चौकी पर गणेशजी की स्थापना करें।

  • गणेशजी का मन में ध्यान करें कि जिनके एक दांत है, सूप के समान कान हैं, हाथी जैसी सूंड़ है चार भुजाओं में वे पाश, अकुंश, कमल व मोदक लिए हुए हैं और जिके शरीर की कान्ति तपाये हुए सोने के समान है ।
  • अभिषेक–तांबे के पात्र में रखे हुए जल से गणपतिजी का अभिषेक करते समय ‘गणपति अथर्वशीर्ष’ का पाठ किया जाता है । ‘गणपति अथर्वशीर्ष’ की 21 आवृत्ति (बार) करने से महाभिषेक होता है ।
  • गणपतिजी को पीले व लाल फूल व फलों की माला चढ़ाएं ।
  • सिन्दूर और शमीपत्र गणपतिजी को विशेष प्रिय है ।
  • श्रीगणपति को 21 दूर्वा चढ़ाएं इससे भक्तों के कुल की दूर्वा की भांति वृद्धि होकर उन्हें स्थायी सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।

भगवान गणपति का विशेष पूजन

गणेशजी के इक्कीस नाम लेकर इक्कीस प्रकार के पत्ते चढ़ायें । ये इक्कीस नाम हैं—

सुमुखाय नम: से शमीपत्र,
गणाधीशाय नम: से भंगरैया पत्र,
उमापुत्राय नम: से बिल्व पत्र,
गजमुखाय नम: से दूर्वादल,
लंबोदराय नम: से बेर का पत्र,
हरसूनवे नम: से धतूरे का पत्ता,
शूर्पकर्णाय नम: से तुलसी पत्र,
वक्रतुण्डाय नम: से सेम का पत्र,
गुहाग्रजाय नम: से अपामार्ग का पत्ता,
एकदंताय नम: से भटकटैया पत्र,
हेरम्बाय नम: से सिंदूर का पत्ता या सिंदूर,
चतुर्होर्त्रे नम: से तेजपात,
सर्वेश्वराय नम: से अगस्त का पत्ता,
विकटाय नम: कनेर का पत्ता,
हेमतुण्डाय नम: से केला पत्र,
विनायकाय नम: से अाक पत्र,
कपिलाय नम: से अर्जुन पत्र,
वटवे नम: से देवदारु का पत्र,
भालचन्द्राय नम: से मरुआ का पत्ता,
सुराग्रजाय नम: से गांधारी का पत्ता और
सिद्धिविनायकाय नम: से केतकी का पत्ता चढ़ावें ।

ganesh puja with 21 leaves


  • गणेशजी को बेसन के लड्डुओं, मोदक व गुड़धानी का भोग लगाएं ।
  • श्रीगणेश का मन्त्र है–‘ॐ गं गणपतये नम: ।’ इस मन्त्र में ‘गं’ बीज है और ‘ओंकार’ शक्ति । हर प्रकार के संकट का दूर करने वाले इस अमोघ मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।
  • गणपतिजी को दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें ।
  • गणेशजी की एक परिक्रमा करनी चाहिए ।
  • भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए स्वयं भी सात्विक बनें ।
  • गणेशजी का धूप-दीप आदि से पूजनकर स्तोत्रपाठ करें ।
  • विनायक, गजानन, एकदंत आदि भगवान गणपति के 108 नामों के जप से प्रसन्न होकर श्रीगणेश विपुल विद्या, अतुल धन, दीर्घ आयु आदि वरदान तो सभी भक्तों को देते हैं किन्तु रामनामप्रेमी माता-पिता श्रीगौरीशंकर के पुत्र होने से अभीष्ट भक्तों को हरिभक्ति का वरदान भी देते हैं।

श्रीगणेश पूजा में सावधानियां

  • गणपतिजी की पूजा में तुलसीदल का प्रयोग नहीं किया जाता है ।
  • घर में तीन गणपति की प्रतिमाओं को पूजा स्थान में नहीं रखना चाहिए ।
  • गणेश-भक्त को तामसिक पदार्थों व मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • इस दिन चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए अत: दोपहर में ही पूजा कर लेनी चाहिए । यदि भूल से चन्द्रमा दिख जाए तो स्यमन्तक मणि और सत्राजित की कथा सुने व इस मन्त्र से दोष की शान्ति करें—

सिंह प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हत: ।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष: स्यमन्तक : ।। (विष्णुपुराण)

इस प्रकार मंगलमूर्ति गणेश की आराधना से जीवन महकने लगता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here