एकदन्तं महाकायं तप्तकांचनसंनिभम्।
लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम्।।
पंचदेवों में भगवान श्रीगणेश मुख्य हैं। भगवान श्रीगणेश के नाम-स्मरण, ध्यान-जप, आराधना से आराधक की मेधाशक्ति (बुद्धि) का विकास होता है, समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है और कार्यों में आने वाले विघ्नों और दु:खों का नाश होकर आनन्द-मंगल की वृद्धि होती है। ओंकार का व्यक्त स्वरूप गणपति हैं। जिस प्रकार प्रत्येक मन्त्र के आरम्भ में ओंकार का उच्चारण आवश्यक है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर भगवान श्रीगणेश की पूजा अनिवार्य है। भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए एक सरल पूजा-विधि इस प्रकार है–
श्रीगणेश-पूजन की सामग्री
- चौकी
- श्रीगणेश प्रतिमा
- पंचामृत के लिए–1 कटोरी दूध, आधा कटोरी दही, 2 चम्मच शहद, 1 चम्मच घी, 2 चम्मच बूरा या शक्कर।
- शुद्ध जल का पात्र, एक चम्मच, स्नान कराने के लिए एक थाली।
- गणेशजी के वस्त्र, आभूषण
- यज्ञोपवीत
- कलावा (मौली)
- चंदन
- रोली
- चावल
- सिन्दूर
- सुगन्धित द्रव्य–अबीर गुलाल, इत्र
- फूलमाला, पुष्प
- दूर्वा
- शमीपत्र
- धूप, अगरबत्ती
- दीपक
- आरती
- कपूर
- नैवेद्य–मोदक, मेवा
- केले,
- ऋतुफल और नारियल
- पान का पत्ता–उस पर 1 सुपारी, दो लोंग व 1 इलायची रखकर बीड़ा बना लें।
- दक्षिणा के लिए रूपये (श्रद्धानुसार)
गणेश-पूजन की विधि
सबसे पहले आराधक स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन ले। फिर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठे। पूजन के लिए सभी सामग्री अपने पास रख लें। सामने श्रीगणेश के लिए एक चौकी स्थापित करें जिस पर लाल कपड़ा बिछा लें। इस पर थोड़े चावल बिछा दें। उस पर श्रीगणेश की प्रतिमा (मूर्ति) विराजमान कर दें। यदि मूर्ति नहीं है तो एक पात्र में (छोटी प्लेट) सुपारी पर लाल कलावा (मौली) लपेट कर चावलों के ऊपर स्थापित कर दें, बस भगवान गणेश साकार रूप में उपस्थित हो गए।
पूजन आरम्भ करने से पहले घी का दीपक जलाकर चौकी के दाहिने भाग में थोड़े से चावलों के ऊपर रख दें। ऊँ दीपज्योतिषे नम: कहकर दीपक पर रोली का छींटा देकर एक पुष्प चढ़ा दें और यह भावना करें कि हे दीप! आप देवरूप मेरी पूजा के साक्षी हों, जब तक मेरी पूजा समाप्त न हो जाए, तब तक तुम यहीं स्थिर रहना।
अब हाथ में पुष्प, दूर्वा व अक्षत लेकर गणेशजी का ध्यान करें–
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।।
अब हम श्रीगणेश के विभिन्न नामों के साथ सभी सामग्री अर्पित करेंगे। इससे पूजा के साथ श्रीगणेश के विभिन्न नामों के उच्चारण का फल भी मिल जायेगा।
हे सुमुख! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आपको बुलाता हूँ, आपको नमस्कार करता हूँ। आप यह आसन स्वीकार करें। इस प्रकार भावना करके हाथ का पुष्प व अक्षत गणेशजी के आगे चढ़ा दें।
अब यदि मूर्ति मिट्टी की है तो स्नान आदि केवल जल के छीटें देकर ही करें। धातु की मूर्ति होने पर उनका स्नान विधिपूर्वक होगा। धातु की मूर्ति को एक थाली या कटोरे में रख लें।
हे लम्बोदर! यह आपके लिए पाद्य है–ऐसा कहकर गणेशजी के चरण धोने के लिए पैरों पर जल चढ़ायें।
हे उमापुत्र! यह आपके लिए अर्घ्य है–ऐसा कहकर गणेशजी के हाथों को धुलाने की भावना से जल के छीटें लगायें।
हे वक्रतुण्ड! यह आचमन करने के लिए जल है–ऐसा कहकर गणेशजी की सूंड़ पर जल चढ़ा दें।
हे शंकरसुवन! यह आपके स्नान के लिए जल है–गणेशजी को जल से स्नान करायें, फिर पंचामृत से स्नान करायें। पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें। फिर सूंड़ पर जल का छींटा लगाकर आचमन करा दें। मूर्ति को साफ कपड़े से पौंछकर चौकी पर स्थापित कर दें।
हे शूपकर्ण! यह आपके लिए वस्त्र व उपवस्त्र हैं। धोती और उपवस्त्र के अभाव में दो कलावे के टुकड़े वस्त्र की भावना से चढ़ा दें।
हे कुब्ज! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है–गणेशजी को जनेऊ पहना दें।
हे एकदन्त! यह आपके लिए आभूषण हैं, इन्हें स्वीकार करें।
हे गणपति! यह आपके लिए चंदन, रोली, चावल, सिन्दूर, अबीर-गुलाल व इत्र है–यह सभी सामग्री एक-के-बाद-एक गणेशजी को अर्पित करें।
हे विघ्नविनाशक! यह मैं आपके लिए सुन्दर पुष्पमाला लाया हूँ, इसे स्वीकार करें।
हे गजमुख! यह आपके लिए अत्यन्त हरे, अमृतमय 21 दूर्वा लाया हूँ, इन्हें स्वीकार करें। गणेशचतुर्थी की पूजा में गणेशजी को 21 दूर्वा को मोली से बांधकर चढ़ाना चाहिए। वैसे गणेशजी दो दूर्वादल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। अगर शमीपत्र उपलब्ध हों तो शमीपत्र भी चढ़ा दें।
हे विकट! यह आपके लिए धूप व अगरबत्ती है।
हे हेरम्ब! यह आपके लिए शुद्ध घी में रुई की बाती से बना दीपक है, जिस प्रकार यह दीप सारे अंधकार को दूर कर देता है, वैसे ही आप हमारे पापों को दूर कीजिए। पहले प्रज्ज्वलित दीपक पर चावल चढ़ा दें।
हे सिद्धिविनायक! यह आपके लिए लड्डुओं (मोदक) का भोग है। आपको मोदक सदा ही प्रिय हैं। यह आप ग्रहण करें और अपने प्रति मेरी भक्ति को अविचल कीजिए।
हे बुद्धिविनायक! यह आपके लिए फल हैं। आप मेरे लिए फलदाता होइए।
हे विद्याप्रद! यह नारियल का फल मैं आपको अर्पित करता हूँ, इससे जन्म-जन्म में मुझे सफलता प्राप्त हो।
हे कपिल! यह आपके लिए ताम्बूल (पान) है। यदि पान उपलब्ध न हो तो एक सुपारी, दो लौंग व एक इलायची चढ़ा दें।
हे सर्वदेव! यह आपके लिए दक्षिणा है, इसे स्वीकार कर मुझे शांति प्रदान करें।
अंत में घी में डुबोई हुई बाती व कपूर जलाकर भगवान श्रीगणेश की आरती करें–
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुख को।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरी-हर को।।
हाथ लिए गुड-लड्डू साँई सुरवर को।
महिमा कहे न जाय लागत हूँ पद को।।
जय जय जी गणराज विद्या-सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता।।
अष्टौ सिद्धी दासी संकट को बैरी।
विघ्न विनाशक मंगल मूरत अधिकारी।।
कोटी सूरज प्रकाश ऐसी छबि तेरी।
गण्डस्थल मदमस्तक झूले शशि-बहारी।।
भाव-भगति से कोई शरणागत आवे।
संतत सम्पत सबही भरपूर पावे।।
ऐसी तुम महाराज मोको अति भावे।
‘गोस्वामीनन्दन’ निशि-दिन गुण गावे।।
अंत में गणपतिजी को पुष्पांजलि के रूप में पुष्प चढ़ावें और परिक्रमा करके दण्डवत प्रणाम करें और क्षमा-प्रार्थना करें–’गणेश-पूजन में मुझसे जो भी न्यूनता या अधिकता हो गई हो तो हे फलप्रद! मुझे क्षमा करें। इस पूजा से सिद्धि-बुद्धि सहित महागणपति संतुष्ट हों।’
आपकी सुविधा के लिए दो लोकप्रिय श्रीगणेश आरती :
https://www.youtube.com/watch?v=3qab3g9EYqA&feature=youtu.be[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
Aaradhika ji sadar pranam Aapka blag padha ,ganesh vandana suni bahut hi Aanand Aaya
Thanks
JAI VIGHANVINASHAK SHREEGANESHJI…cHARANVANDNA…Aradhikaji…plz.share this App through Whatsapp Allover the World🙏🏻
Bhagwan Ganesh hamare upper kirpa banaye rakhe yehi viniti hai ganpati se