संसार में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसे भगवान की माया ने पागल न किया हो । इससे बचने के लिए किसी संत के चरणों की शरण या सद्गुरु का सहारा लेना आवश्यक होता है । सद्गुरु की सेवा से जो ज्ञान और कृपा मिलती है, वही मनुष्य के लिए रक्षा कवच होती है ।
इसी बात को सिद्ध करने वाला भगवान राम का एक लीला-प्रसंग है—
एक गुरु जी के शिष्य एक सेठ जी थे । गुरु जी सेठ जी से प्रतिदिन कहते—
राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे ।
घोर भव-नीर-निधि नाम निजु नाव, रे ।। (विनयपत्रिका ६६)
‘तुम थोड़ा समय निकाल कर ‘राम’ का नाम ले लिया करो; क्योंकि यही निर्बल का बल है, असहाय का मित्र है, अभागे का भाग्य है, अंधे की लाठी है, पंगु का हाथ-पांव है, निराधार का आधार और भूखे का मां-बाप है । इस कलिकाल में ‘राम’ नाम ही मनुष्य का सच्चा साथी और हाथ पकड़ने वाला गुरु है । यही ‘तारक ब्रह्म’ है ।’
परंतु बनिया सदैव यही कहता—‘महाराज ! मैं माला लेकर नाम-जप करता रहूं, इतना वक्त मेरे पास कहां है ? बच्चों का पालन-पोषण भी तो करना है । रात दस बजे तो दुकान बंद कर हारा-थका घर आता हूँ । भोजन करते ही नींद आ जाती है । प्रात: जल्दी उठ कर फिर दुकान खोलनी पड़ती है, वरना सारे ग्राहक पड़ौसी दुकानदार के यहां चले जाते हैं और व्यापार में घाटा हो जाता है । इसलिए ‘राम’ नाम लेने के लिए समय ही नहीं मिलता है ।’
गुरु जी बहुत समझाते पर सेठ जी हर बार आनाकानी कर देते । एक दिन गुरु जी सामने सेठ जी के मुंह से निकल गया—‘महाराज ! सुबह दैनिक-कर्म के लिए ही पंद्रह-बीस मिनट को घर से बाहर जाता हूँ, बस केवल एक वही समय मुझे मिलता है ।’
यह सुन कर गुरु जी प्रसन्न हो गए और बोले—‘बस उसी समय ‘राम’ का नाम ले लिया करो । भगवान का नाम तो मंगल करने वाला है, जैसे भी बने लेना चाहिए ।’
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ।। (तुलसीदास जी)
अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है ।
सेठ जी ने गुरु को वचन दे दिया कि बस उसी समय मैं ‘राम’ नाम ले लिया करुंगा ।
गुरु को दिए वचनानुसार सेठ जी दैनिक-कर्म के समय जोर-जोर से नाम लेने लगे । ऐसा दो-तीन वर्ष तक लगातार चलता रहा ।
एक दिन सेठ जी प्रात:काल अपनी इसी दिनचर्या में लगे थे, संयोग से हनुमान जी वहां से निकले । हनुमान जी ने देखा—इस अपवित्र अवस्था में मेरे इष्ट का इतनी जोर से नाम लेने वाला ये आदमी आखिर है कौन ?
क्रोध में आकर हनुमान जी ने सेठ जी की पीठ पर अपना वज्र के समान घूंसा (मुठिका) जमा दिया । वही घूंसा जो उन्होंने राक्षसी लंकिनी को मारा था जिसके बाद वह खून की उल्टी करती हुई पृथ्वी पर लुढ़क पड़ी थी—
मुठिका एक महा कपि हनी ।
रुधिर बमत धरनीं ढनमनी ।।
आश्चर्य ! सेठ जी को घूंसे का कोई असर नहीं हुआ और वे आराम से अपनी दैनिक-क्रिया करते रहे । हनुमान जी सेठ जी को सबक सिखा कर चले गए ।
एक दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सरयू नदी में स्नान कर जब बाहर निकले तो हनुमान जी ने देखा कि प्रभु की कमर पर पांच अंगुलियों का एक नीला निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा है । आश्चर्यचकित होकर हनुमान जी सोचने लगे कि मेरे प्रभु की कमर पर इतनी गहरी चोट का निशान कहां से आया ? मेरे रहते हुए किसने प्रभु को चोट पहुंचाई है । अंगरक्षक हनुमान के रहते प्रभु पर इतना तीव्र प्रहार ! ऐसी मेरी पहरेदारी किस काम की ? अपने कर्तव्य-पालन में विफल रहने से अच्छा तो प्राण त्यागना है ।
तब प्रभु श्रीराम हंस कर उस नीले निशान का रहस्य खोलते हुए बोले—‘हनुमान ! यदि उस दिन उस सेठ की कमर पर हमने अपनी कमर न लगाई होती तो आपके मुष्टिक-प्रहार से तो वह कभी का मर गया होता । उसकी प्राणरक्षा के लिए आपके घूंसे का प्रहार हमने अपनी कमर पर सह लिया; क्योंकि वह जोर-जोर से हमें पुकार रहा था; इसलिए उसे बचाना हमारा कर्तव्य था । आपके वज्र-तुल्य हाथ का भार केवल हमारी कमर ही सहन कर सकती थी ।’
प्रभु श्रीराम की भक्तवत्सलता और नाम के प्रभाव को देख कर हनुमान जी अश्रुपूर्ण नेत्रों से प्रभु से क्षमा मांगने लगे । प्रभु श्रीराम ने भी अपने प्रिय हनुमान जी को दोनों हाथों से उठा कर हृदय से लगा लिया और क्षमा कर दिया ।
एक गुरु द्वारा दिखाए गए मार्ग का प्रभाव शिष्य के जीवन पर कितना गहरा असर कर सकता है, और राम के नाम में कितनी शक्ति है—यह इस प्रसंग से स्पष्ट हो जाता है ।
राम नाम मन्त्र है, सकल मन्त्र को राज ।।
‘राम’ नाम सभी मन्त्रों का बीज है । इसी में सब ऋद्धि-सिद्धि भरी हुई हैं । विश्वास न हो तो रात-दिन जप करके देख लो । सब काम हो जाएगा, कोई काम बाकी नहीं रहेगा ।
तुलसी अपने राम को, रीझ भजो या खीझ ।
भौम पड़ा जामे सभी, उलटो सीधो बीज ।।
तुलसीदास जी ‘राम’ नाम की महिमा बतलाते हुए कहते है कि ‘राम’ का नाम चाहे मजबूरी में लिया जाए या प्रसन्न मन से, वह अपना प्रभाव दिखाता ही है; जिस प्रकार भूमि में बीज चाहे सीधे बोए जाएं या उल्टे, अंकुर तो निकलेगा ही ।
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