नवरात्र मुख्य रूप से दो होते हैं—वासन्तिक और शारदीय । आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र मनाए जाते हैं। इसे ‘देवी पक्ष’ भी कहते हैं ।
शारदीय नवरात्र में श्रीदुर्गाजी की पूजा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—ये चारों फल देने वाली है । देवी पार्वती भगवान शंकर से कहती हैं—‘जो भक्तिपूर्वक नवरात्र पूजा करते हैं, उनको मैं प्रसन्न होकर पत्नी, धन, आरोग्य और उन्नति प्रदान करती हूँ ।’
ऋतु परिवर्तन के समय होने वाले विभिन्न रोग—बुखार, छोटी-बड़ी शीतला (measles and smallpox), कफ, खांसी एवं महामारी के नाश के लिए नवरात्र पूजा बहुत उत्तम मानी गई है ।
नौ रात्रियों तक व्रत करने से यह ‘नवरात्र’ व्रत पूर्ण होता है । देवी दुर्गा के उपासक प्रतिपदा से नवमी तक व्रत रहते हैं । कुछ लोग अन्न त्याग देते हैं तो कुछ लोग एक समय भोजन करते हैं जबकि कुछ फलाहार से शक्ति की उपासना करते हैं । कुछ लोग ‘दुर्गा सप्तशती’ का सकाम तो कुछ निष्काम भाव से पाठ करते हैं । नवरात्र व्रत-अनुष्ठान में जितना अधिक संयम, नियम, नियमितता, आन्तरिक व बाह्य शुद्धि का ध्यान रखा जाता है, अनुष्ठानकर्ता को उतनी ही सफलता मिलती है ।
सबसे पहले भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने शारदीय नवरात्र-पूजा समुद्रतट पर की थी । यह एक राजस पूजा है, इसमें जितना संभव हो, विभिन्न प्रकार की पूजन-सामग्री से दुर्गा पूजा करनी चाहिए और तरह-तरह के नैवेद्य देवी को अर्पित करने चाहिए ।
नवरात्र पूजन की विधि
▪️देवी का आवाहन, स्थापन और विसर्जन—ये तीनों प्रात:काल करने चाहिए ।
▪️सबसे पहले पूजा-स्थान को साफ करके पवित्र कर लें ।
▪️नवरात्र के पहले दिन यानि प्रतिपदा को पूजा की शुरुआत दुर्गा पूजा निमित्त संकल्प लेकर ईशानकोण में कलश-स्थापना करके की जाती है । पूजा करते समय साधक का मुख पूर्व दिशा की ओर रहना चाहिए ।
कलश-स्थापन या घट-स्थापना
कलश-स्थापना का अर्थ है–ब्रह्माण्ड में व्याप्त शक्तितत्त्व का घट (कलश) में आवाहन करके नौ दिनों की आराधना से उसे क्रियाशील करना; जिससे वह दैवीय ऊर्जा आराधक को समस्त सुख, शांति, समृद्धि, व मंगलकामना प्रदान करे; इसलिए इसे ‘मंगल-कलश’ भी कहते हैं ।
कौन-से योग व नक्षत्र में कलश-स्थापन नहीं करना चाहिए?
कलश-स्थापना करते समय यदि चित्रा या वैधृतियोग हो तो उनकी समाप्ति होने के बाद कलश-स्थापना करनी चाहिए। यदि चित्रा या वैधृतियोग अधिक समय तक हों तो उसी दिन अभिजित् मुहुर्त (दोपहर 11.45 से 12.15 तक का समय) में कलश-स्थापना करनी चाहिए ।
कलश-स्थापना के लिए सामग्री
कलश, कलश ढकने के लिए पात्र, कलश के ऊपर रखने के लिए अखण्ड चावल, शुद्ध मिट्टी या बालु, जौ, जौ बोने के लिए पात्र, जल, गंगाजल, आम व अशोक के पत्ते, दूर्वा, रोली, चावल, सुपारी, हल्दी की गांठ, सिक्का, पंचरत्न, सर्वोषधि, कुश, नारियल (सूखा या पानी वाला), लाल कपड़ा या लाल चुनरी, मौली (कलावा), चंदन, पुष्पों की माला या पुष्प ।
कलश के लिए भूमि या पात्र तैयार करना और धान्य बोना–सबसे पहले जिस भूमि पर या पाटे पर या पात्र में जौ बोने हैं, वहां रोली से अष्टदलकमल बनाएं । फिर मिट्टी या बालु को शुद्ध जमीन या मिट्टी के बर्तन या परात में डालकर वेदी बनाएं । नवरात्र में स्थापित कलश को कई दिनों तक सुरक्षित रखना पड़ता है, इसलिए शुद्ध मिट्टी बिछा दी जाती है और उस पर जौ बो दिए जाते हैं । इसे ‘जयन्ती’ कहते हैं । नवरात्र में उगे हुए जौ को विजयादशमी के दिन पूजन के बाद काटा जाता है और देवताओं को समर्पित किया जाता है । इसके बाद आशीर्वाद-स्वरूप इन जौ को अपने मस्तक पर लगाकर शुभ स्थानों पर रख दिया जाता है ।
▪️मिट्टी, तांबा, सोना, चांदी या पीतल का नया कलश लेकर उस पर रोली से स्वस्तिक व दोनों तरफ त्रिशूल बनाकर कलश के गले पर मौली (कलावा) बांध दें।
कलश में जल–अगर कलश मिट्टी का है तो उसे पहले शुद्ध जल से भरकर देख लें कि कहीं उसमें से जल रिस तो नहीं रहा है। कलश में शुद्ध जल के साथ थोड़ा गंगाजल भी मिला दें । फिर कलश को जौ मिली रेत पर स्थापित कर दें ।
कलश में विभिन्न पदार्थ विभिन्न वेदमन्त्रों से डाले जाते हैं। ये पदार्थ हैं–
कलश में चन्दन डालें ।
कलश में सर्वौषधि (मुरा, जटामांसी, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, दारुहल्दी, सठी, चम्पक और मुस्ता) डालें । सर्वोषधि बनी-बनायी आसानी से किराना स्टोर पर मिल जाती है ।
कलश में दो दूर्वादल डालें ।
कलश में सुपारी डालें ।
कलश में पंचरत्न–सोना, हीरा, पद्मराग, मोती, नीलम डालें ।
कलश में द्रव्य (एक रुपए का सिक्का) डाल दें ।
कलश पर पंचपल्लव–आम, पीपल, वट, पाकड़, और गूलर के पत्ते रखें। यदि ये पत्ते नहीं मिलते हैं तो केवल अशोक व आम के पत्ते भी कलश पर लगा सकते हैं ।
कलश में पवित्री (कुश) छोड़ दें ।
कलश में सप्तमृत्तिका (घुड़साल, हाथीसाल, बांबी, नदियों के संगम, राजद्वार और गौशाला की मिट्टी) डाली जाती है परन्तु आम इंसान के लिए इतना सब करना नामुमकिन ही है । अत: भाव से ही इसको कलश पर छोड़ दें ।
शास्त्रीय विधि से कलश में डाले जाने वाले सभी पदार्थ न मिलने पर चंदन, रोली, हल्दी की गांठ, सुपारी, एक रुपए का सिक्का, गंगाजल व दूर्वादल ही कलश में डाल सकते हैं ।
ये सब पदार्थ कलश के अंदर डालने के बाद कलश पर एक प्लेट में चावल भरकर स्थापित करें । फिर लाल कपड़ा लपेटे हुए नारियल को मौली से बांधकर चावलों के ऊपर रख देना चाहिए।
कलश पर नारियल स्थापित करते समय रखें इन बातों का ध्यान
नारियल का मुख वाला भाग (जिस तरफ नारियल पर काले निशान होते हैं) सदैव आराधक की ओर होना चाहिए । कलश-स्थापना में नारियल का मुख नीचे की ओर रखने से शत्रुओं की वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की ओर रखने से रोग सताते हैं । नारियल का मुख पीछे की ओर होने से धन का नाश होता है ।
कलश में देवी-देवताओं का आवाहन
कलश-स्थापना के बाद हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर उसमें सभी देवी-देवताओं व चारों वेदों का आवाहन करें कि वे दुर्गापूजा अनुष्ठान में इस कलश में विराजें और प्रसन्न होकर हमारे सारे दुरितों-दु:खों को दूर करें ।
कलश-पूजन की विधि
कलश-स्थापन के बाद नवरात्र में नौ दिनों तक कलश का पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) या षोडशोपचार जैसी श्रद्धा या सामर्थ्य हो पूजन करना चाहिए ।
▪️अब एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर थोड़े चावल रखकर दुर्गाजी की मूर्ति विराजित करें ।
▪️यदि नवरात्र में अखण्ड दीप प्रज्ज्वलित करना है तो उसे भी स्थापित करें ।
▪️पूजन के आरम्भ में स्वस्तिवाचन, शान्तिपाठ करके संकल्प करें ।
▪️यदि चौकी पर गणपति, षोडश मातृका, पंचलोकपाल, नवग्रह स्थापित किए हैं तो सबसे पहले उनका पूजन करें ।
▪️फिर प्रधान मूर्ति दुर्गा का षोडशोपचार पूजन करें ।
▪️देवी दुर्गा की आराधना में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन किया जाता है ।
▪️देवी को नैवेद्य में तरह-तरह के फल विशेष रूप से अनार, पंच मेवा, मखाने की खीर, मालपुआ, बर्फी (बिना वर्क की), नारियल, नारियल पानी और ताम्बूल अर्पित करें ।
▪️पूजन के बाद आरती और पुष्पांजलि होती है ।
नवरात्र में मार्कण्डेय पुराण में निहित ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ करने का विशेष महत्व है । दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले इस मंत्र से पुस्तक का रोली चंदन से पूजन इस मंत्र से करें—
नमो दैव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम: ।
नम: प्रकृत्यै भद्रायैनियता: प्रणता: स्म ताम् ।।
▪️इसके अलावा नवार्ण मंत्र का जप, श्रीसूक्त, दुर्गा सहस्त्रनाम आदि का पाठ भी विशेष फल देने वाला होता है ।
▪️नवरात्र व्रत अनुष्ठान में कुमारी (कन्या पूजन) अत्यंत आवश्यक माना गया है । सामर्थ्य हो तो प्रतिदिन अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कन्याओं के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मान कर रोली चावल से उनका पूजन करें । फिर आदर के साथ उन्हें मिठाई का भोजन कराना चाहिए । कन्याओं को वस्त्र या कोई उपहार अपनी सामर्थ्य के अनुसार भेंट करें । कन्या पूजन में दस वर्ष तक की कन्या का पूजन करना चाहिए । दस वर्ष से ऊपर की कन्या का पूजन वर्जित माना गया है ।
▪️दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छ: वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली सुभद्रास्वरूप होती है ।
देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए करें ये विशेष उपाय
▪️नवरात्र में मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष उपाय करने चाहिए । जैसे
▪️प्रतिपदा को बाल संवारने की चीजें जैसे—आंवला तैल, कंघा, शैम्पू आदि देवी को अर्पित करें ।
▪️द्वितीया को बाल बांधने वाली सामग्री रबर बैण्ड, क्लिप, रिबन, चुटीला आदि मां को चढ़ाएं ।
▪️तृतीया को सिंदूर और दर्पण आदि भेंट करें ।
▪️चतुर्थी को बिन्दी, काजल अर्पित करें ।
▪️पंचमी को इत्र, आलता देवी को चढ़ाएं ।
▪️षष्ठी को आभूषण—बिछुवे, पायल, चूड़ी निवेदिक करें ।
▪️सप्तमी को साड़ी ब्लाउज, फूलमाला पहनाएं ।
▪️अष्टमी उपवासपूर्वक पूजन करें ।
▪️नवमी को महापूजा और कन्या पूजन करें ।
इस प्रकार नौ दिन में देवी को प्रतिदिन विशिष्ट वस्तुएं अर्पित कर पूजन करना चाहिए ।
यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ किया है तो दशमांश हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण-भोजन कराकर व्रत की समाप्ति करें ।
महानवमी को हनुमानजी को ध्वजा चढ़ाई जाती है क्योंकि हनुमानजी की विजय-पताका फहराए बिना राम का रावण के नाश के लिए प्रस्थान करना संभव नहीं है ।