गौ, विप्र, वेद, सती, सत्यवादी, निर्लोभी और दानी—इन सात महाशक्तियों के बल पर ही पृथ्वी टिकी है, परन्तु इनमें गौ का प्रथम स्थान है ।
प्राचीन काल में गौओं ने एक लाख वर्ष तक इस उद्देश्य से तपस्या की कि—
- इस संसार में जितनी भी दान देने योग्य वस्तुएं हैं, उन सबमें हम उत्तम समझी जाएं ।
- हमको कोई दोष न लगे ।
- देवता और मानव पवित्रता के लिए हमेशा हमारे गोबर का उपयोग करें ।
- गोदान करने वाले मनुष्यों को हमारा ही उत्तम लोक—गोलोक प्राप्त हो ।
गौओं की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान दिया—‘गौओ ! तुम्हारी समस्त कामनाएं पूर्ण हों ।’
तब से गौएं सभी प्राणियों में सबसे पवित्र और वन्दनीय मानी जाने लगीं और जगत का कल्याण करने लगीं । जगत के पालन-पोषण के लिए गौएं ही मनुष्य को अन्न और दुहने पर अमृतरूपी दूध देती हैं । गाय मानव की दूसरी मां है, जन्म देने वाली मां के बाद गौ का ही स्थान है ।
भय से मुक्ति देने वाली गौ स्तुति
महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां शान्ति से बैठकर सांस लेती है तो उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है । कितना भी बड़ा भय क्यों न हो, कितना भी बुरा समय क्यों न चल रहा हो, किसी भी समय—रात हो या दिन, गौ के इन श्लोक का हर समय जाप मनुष्य के हर प्रकार के भय को और विषम स्थिति को समाप्त कर देता है ।
गौ की यह स्तुति महाभारत के अनुशासन पर्व (७८।२३-२४) में दी गयी है—
गावो मामुपतिष्ठन्तु हेमश्रृंग्य: पयोमुच: ।
सुरभ्य: सौरभेय्यश्च सरित: सागरं यथा ।।
गा वै पश्याम्यहं नित्यं गाव: पश्यन्तु मां सदा ।
गावोऽस्माकं वयं तासां यतो गावस्ततो वयम् ।।
अर्थात्—जैसे नदियां समुद्र के पास जाती हैं, उसी तरह सोने से मढ़े हुए सींगों वाली दुग्धवती सुरभि और सौरभेयी गौएं मेरे निकट आएं । मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौएं मुझ पर कृपा-दृष्टि करें । गौएं हमारी हैं और हम गौओं के हैं । जहां गौएं रहें, वहीं हम रहें, चूंकि गौएं हैं इसी से हम लोग भी हैं ।’
साथ ही मनुष्य को प्रतिदिन प्रात:काल और सायंकाल गौमाता का ध्यान करके इस प्रकार उच्चारण करना चाहिए—
‘घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का आधार, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी का भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें । मेरे आगे-पीछे और चारों ओर गौएं मौजूद रहें, मैं गौओं के बीच में ही निवास करुं ।’
इस प्रकार प्रतिदिन जप करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, अंतकरण शुद्ध होने से सभी प्रकार के भयों का नाश हो जाता है ।
इन बातों का रखें ध्यान
- गोमूत्र और गोबर देख कर कभी घृणा न करे । सूखे गोबर पर पैर न लगाये ।
- गौओं का कभी अपमान न करें ।
- याद रखें कि गाय को कभी लांघना नहीं चाहिए ।
- कभी भूल कर भी गाय को जूठी वस्तु न खिलाएं ।
- गौओं को लात व लाठी से न मारें ।
- गाय चर रही हो, एकान्त में बैठी हो या पानी पी रही हो तब उसे तंग न करें न पानी पीने से हटाएं ।
गाय की सेवा करने से जीते-जी तो हर प्रकार का सुख, संतोष और शांति प्राप्त होती ही है, गोदान करने से मरने के बाद यमराज का भय नहीं रहता है ।
गौओं की महिमा कौन भला बतलाये,
जिनके गुण-गौरव वेदों ने भी गाये ।
जिनकी सेवा के हेतु अरे इस जग में,
भगवान स्वयं मानव बनकर थे आए ।।