bhagwan hanuman ji jai shri ram

यह ब्लॉग हनुमानजी के बाल-चरित्र व लीलाओं से सम्बन्धित है । बाल हनुमान को प्यार से ‘हनुमंतलला’ भी कहते हैं; अत: इस लेख में उनके लिए ‘हनुमंतलला’ शब्द का प्रयोग किया गया है ।

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को विष्णु का अवतार माना जाता है । श्रीराम और हनुमानजी का जन्म एक ही ब्रह्म-पिण्ड से हुआ है; इसलिए हनुमंतलला का जन्म, बालपन और व्यक्तित्व श्रीराम की तरह ही अलौकिक और दिव्य है । 

हनुमंतलला की दिव्य जन्म-कथा

शंकरसुवन, अंजनीपुत्र, पवनपुत्र और केसरीनन्दन के रूप में हनुमंतलला का प्राकट्य अलौकिक है

हनुमानजी की माता अंजना (अंजनी) और पिता केसरी ने पुत्र-प्राप्ति के लिए भगवान शिव की दीर्घकाल तक घोर तपस्या की । इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर कहा—‘अंजने ! कल प्रात:काल तुम सूर्यनारायण के समक्ष अंजलि बांधकर खड़ी हो जाना, उस समय तुम्हारी अंजलि में जो कुछ गिरे, उसका सेवन कर लेना । उसके प्रभाव से तुम्हें तेजस्वी और अजर-अमर पुत्र की प्राप्ति होगी । एकादश रुद्रों में से मेरा अंश ग्यारहवां रुद्र ही तुम्हारे पुत्र के रूप में प्रकट होगा ।’

अंजनीगर्भसम्भूतो वायुपुत्रो महाबल: ।
कुमारो ब्रह्मचारी च हनुमन्ताय नमो नम: ।।

राजा दशरथ को पुत्र-कामेष्टि यज्ञ में अग्निदेवता से पायस-दान (खीर) के रूप में तीन पिण्ड प्राप्त हुए थे । अग्निदेव के आदेशानुसार राजा दशरथ ने तीनों पिण्ड तीनों रानियों को दे दिए । अपने भाग का चरु खाने में कैकेयी ने बिलम्ब किया । उसे संयोग से चील ने झपट लिया और सूर्य के समक्ष खड़ी अंजनादेवी की अंजलि में गिरा दिया । बाकी बचे दो पिण्ड तीनों रानियों के हिस्से में आये । अत: राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को अर्धपिण्ड से जन्म मिला, परन्तु हनुमंत पूर्ण पिण्ड से ब्रह्मगोलक के रूप में जन्मे थे । ब्रह्मपिण्ड के प्रभाव के कारण ही बाल्यावस्था में श्रीराम और हनुमंतलला के द्वारा चमत्कारिक लीलाएं घटित हुईं ।

शिवपुराण की शतरुद्रसंहिता के अनुसार एक बार भगवान शिव को भगवान विष्णु के मोहिनी रूप का दर्शन हुआ । भगवान नारायण के मोहिनी रूप को देखकर और श्रीराम के कार्य की सिद्धि के लिए ईश्वरेच्छा से शिवजी ने अपना तेज स्खलित किया । भगवान शंकर का अमोघ वीर्य व्यर्थ कैसे जाता ? उस वीर्य का राम-कार्य की सिद्धि के लिए प्रयोग करने की दृष्टि से भगवान शंकर ने सप्तर्षियों को प्रेरित किया । सप्तर्षियों ने एक पत्ते के दोने में उसे सुरक्षित रख दिया । समय आने पर भगवान शिव की अष्टमूर्तियों में से एक विभूति वायुदेव ने उस शिव-तेज को केसरी वानर की पत्नी अंजनादेवी के कान के रास्ते उनकी देह में प्रविष्ट करा दिया । उस वीर्य से शिव के अंशावतार महाबली हनुमंतलाल प्रकट हुए । अत: हनुमानजी रुद्रावतारशंकरसुवन कहलाते हैं । 

वायुदेव ने अंजना देवी का मानसिक स्पर्श किया; इसलिए हनुमान वायुदेव के मानस औरस पुत्र और अंशावतार हैं । अत: वे पवनपुत्र, वातात्मज, मारुति और मारुतिनन्दन कहलाते हैं । हनुमंतलला के इतने सारे नामों के पीछे का रहस्य यही है । 

अंजना देवी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नाम की अप्सरा थीं । रामायण के अनुसार अप्सराएं जल में मंथन करने से उसके रस से उत्पन्न हुईं थीं; इसलिए उत्कृष्ट सौंदर्य की प्रतीक हैं । वायु सभी का प्राण और समस्त कर्म का कारक, देवताओं में सबसे ओजयुक्त और गति से सम्पन्न है । इन दोंनों दिव्य शक्तियों के संयोग का परिणाम है—अतुतिल बल, तेज और पराक्रम युक्त हनुमंतलला का जन्म ।

मां अंजना की पुत्र को आदर्श शिक्षा

बालक पर सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता के जीवन और उसकी शिक्षा का पड़ता है । हनुमंतलला का बालपन भी कितना दिव्य था । सदाचारिणी, परम तपस्विनी, सद्गुणी माता अंजना अपने दूध के साथ श्रीरामकथा रूपी अमृत उन्हें पिलाती थीं । हनुमंतलला उस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो जाते । कथा कहते हुए यदि माता सो जाती तो हनुमंतलला उन्हें हाथों से झकझोर कर और रामकथा सुनाने के लिए हठ करते थे—

सेज पै पौढ़ि लिये सुत गोद में रामकथा कहि दूध पिलावै ।
पान करैं पय आतुर ह्वै मुख देखत और सुने सचुपावै ।
देर भये जननी गइ सोइतो हाथन सों झकझोरि जगावै ।
जागि परी तोकहैं हनुमान तूँ रामकथा मोहि क्यूँ न सुनावै ।।

बार-बार श्रीराम कथा श्रवण करने से हनुमंतलला का श्रीराम में अनुराग प्रगाढ़ होता गया । वे कभी पर्वत की गुफा में, कभी नदी तट पर, कभी सघन वन में श्रीराम के ध्यान में बैठे रहते थे । माता अंजना दोपहर से लेकर शाम तक अपने पुत्र को ढूंढ़ती रहतीं । वे जानती थीं कि उन्हें उनका पुत्र कहां और क्या करते हुए मिलेगा ।

हनुमंतलला को देवताओं द्वारा मिले दिव्य वरदान

एक दिन अपनी जननी अंजना की अनुपस्थिति में हनुमंतलला भूख से व्याकुल होकर बालरवि को ही पकड़ने के लिए आकाश में उछले  

जनम के जगी जठर री ज्वाल,
गगन में मारी एक उछाल,
बाल रवि लियो जानि फल लाल,
तुम्हारी जय हो हनुमंतलाल ।।

उस दिन ग्रहणकाल होने से राहु भी सूर्य को ग्रसने के लिए पहुंचा था । हनुमंतलला ने फल पकड़ने में उसे बाधा समझकर धक्का दे दिया । घबराकर राहु इन्द्र के पास पहुंचा । सृष्टि-व्यवस्था में विघ्न समझकर इन्द्र ने हनुमंतलला पर वज्र से प्रहार कर दिया, जिससे उनकी बायीं ओर की ठुड्डी (हनु) टेढ़ी हो गयी और पृथ्वी पर गिरकर अचेत हो गए । अपने पुत्र पर वज्र के प्रहार से वायुदेव अत्यन्त कुपित हो गए और उन्होंने संसार में अपना संचार बंद कर दिया । वायु ही समस्त जीवों के प्राणों का आधार है, अत: वायु के संचरण के अभाव में संसार में हाहाकार मच गया । सभी जीवों को व्याकुल देखकर पितामह ब्रह्मा उस स्थान पर गए, जहां वायुदेव अपने मूर्छित पुत्र को गोद में लिए बैठे थे । ब्रह्माजी के हाथ के स्पर्श से हनुमानजी की मूर्च्छा टूट गयी । ब्रह्माजी ने हनुमंतलला को वरदान देते हुए कहा—‘इस बालक को ब्रह्मशाप नहीं लगेगा और इसका कोई अंग कभी भी किसी भी शस्त्र से नहीं छिद सकेगा ।’

ब्रह्माजी ने सभी देवताओं से कहा—‘यह असाधारण बालक भविष्य में देवताओं का बड़ा हित-साधन करेगा; इसलिए आप लोग इसे वर प्रदान करें ।’ 

हनुमंतलला को देवताओं के द्वारा एक-से-बढ़ कर-एक वरदान प्राप्त हुए जिससे वे देवताओं की शक्ति के पुंजीभूत रूप हो गए । इससे उनमें अतुलित बल, सामर्थ्य और तेज आ गया । सभी देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्रों से अवध्यता का वरदान दिया । जैसे—

▪️ देवराज इन्द्र ने उन्हें वज्र-सी देह का वरदान देते हुए कहा—‘इसका शरीर मेरे वज्र से भी अधिक कठोर होगा ।’

▪️ सूर्य देव से अपना तेज, आरोग्य और सभी शास्त्रों का ज्ञान देते हुए कहा—‘यह बालक अद्वितीय वक्ता और विद्वान होगा ।’

▪️ भगवान शंकर ने सभी शस्त्रों से अभय प्रदान किया ।

▪️ वरुण देव ने उन्हें पाश और जल से अमरता प्रदान की ।

▪️ यमराज ने उन्हें अजरत्व (कभी वृद्धावस्था नहीं आने) और अपने दण्ड से अवध्य रहने का वरदान दिया ।

▪️ कुबेर ने अपनी विजयी गदा के साथ उन्हें अजेयत्व (जिसे जीता न जा सके) का आशीर्वाद देकर कहा—‘यह यक्ष-राक्षसों से भी कभी पराजित नहीं हो सकेगा ।’

▪️ विश्वकर्मा ने हनुमंतलला को चिरंजीवी रहने का वरदान दिया ।

▪️ ब्रह्माजी ने हनुमंतलला को अवधत्व (ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, पाशुपतास्त्र आदि किसी भी अस्त्र से उनका वध नहीं किया जा सकता), अमरत्व, महागतिमत्व (पवन के समान गतिमान) और इच्छानुसार रूप धारण कर सकने की सामर्थ्य प्रदान की । यह बालक इच्छानुसार रूप धारण कर सकेगा, जहां चाहेगा इच्छानुसार मन्द या तीव्र गति से जा सकेगा और इसकी गति कहीं भी रुक नहीं सकेगी । यह वानरों में श्रेष्ठ बड़ा यशस्वी होगा ।

ब्रह्माजी ने कहा—‘पवनदेव ! तुम्हारा यह पुत्र मारुति शत्रुओं के लिए भयंकर, मित्रों के लिए अभयदाता एवं अजेय होगा । युद्ध में रावण के संहार और भगवान राम की प्रसन्नता देने वाले अनेक अद्भुत और रोमांचकारी कार्य करेगा ।’ (वाल्मीकि रामायण)

▪️ वायुदेवता ने वर दिया कि हनुमान लांघने और छलांग मारने में मेरे समान होंगे ।

▪️ हनुमानजी गति, मति, शक्ति, देह और बुद्धि में ही अतुलनीय और अग्रणी नहीं हैं; वरन् चारों युगों—सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग में उनके जैसा प्रतापी और दैवी शक्ति-सम्पन्न कोई नहीं है; इसीलिए गोस्वामी तुलसीदासजी कहते है—

‘चारों युग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ।।

लंका जाकर सीताजी का कुशल-समाचार सुनाने पर प्रभु श्रीराम ने उनका आलिंगन कर अपना सर्वस्व ही उन्हें पुरस्कार में दे दिया ।

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