‘त्रिपुरारहस्य’ में जगन्माता देवी के बारह प्रधान विग्रह और उनके स्थान इस प्रकार बताए गए हैं—
कांचीपुरे तु कामाक्षी मलये भ्रामरी तथा ।
केरले तु कुमारी सा अम्बाऽऽनर्तेषु संस्थिता ।।
करवीरे महालक्ष्मी: कालिका मालवेषु सा ।
प्रयागे ललिता देवी विन्ध्ये विन्ध्यनिवासिनी ।।
वाराणस्यां विशालाक्षी गयायां मंगलावती ।
बंगेषु सुन्दरी देवी नेपाले गुह्यकेश्वरी ।
इति द्वादशरूपेण संस्थिता भारते शिवा ।
एतासां दर्शनादेव सर्वपापै: प्रमुच्यते ।।
अशक्तो दर्शने नित्यं स्मरेत् प्रात: समाहित: ।
तथाप्युपासक: सर्वैरपराधैर्विमुच्यते ।। (त्रिपुरारहस्य, माहात्म्य खं. अध्याय ४८।७१-७५)
1. कांचीपुर में कामाक्षी रूप में
(2) मलयगिरि में भ्रामरी देवी (भ्रमराम्बा) नाम से,
(3) केरल मलाबार में कुमारी (कन्याकुमारी) रूप में,
(4) आनर्त (गुजरात) में अम्बा नाम से,
(5) करवीर (कोल्हापुर) में महालक्ष्मी रूप में,
(6) मालवा (उज्जैन) में कालिका रूप में,
(7) प्रयाग में ललिता (अलोपी) नाम से,
(8) विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी रूप में,
(9) वाराणसी में विशालाक्षी नाम से,
(10) गया में मंगलवती रूप से,
(11) बंगाल में सुन्दरी और
(12) नेपाल में गुह्यकेश्वरी कही जाती हैं ।
पराम्बा देवी पार्वती बारह रूपों में इन स्थानों पर विराजमान हैं । देवी के इन पवित्र विग्रहों के दर्शन करने मात्र से ही मनुष्य सभी पापों से छूट जाता है । सभी के लिए इन स्थानों पर जाकर दर्शन करना संभव नहीं है अत: दर्शनों में अशक्त होने पर यदि मनुष्य नित्य प्रात:काल एकाग्र मन से देवी पार्वती के इन बारह विग्रहों का स्मरण करे तो वह सभी अपराधों से मुक्त हो जाता है ।