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जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के अनमोल जीवन-सूत्र

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के साक्षात् अवतार माने जाते हैं । इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की लम्बी सूची है । सभी देशों के विचारकों और दार्शनिकों ने इनके सामने सिर झुकाया है । इनके द्वारा मनुष्य के कल्याण के लिए कुछ अनमोल जीवन-सूत्र बताए गए हैं ।

भगवान शिव सर्पों को आभूषण के रूप में क्यों धारण करते...

संसार में जो कुछ भी अनाकर्षक है व असुन्दर है और जिसे संसार ने ठुकराया उसे भगवान शिव ने अपनाया । जैसे—कालकूट विष, आक-धतूरा, श्मशान, राख, और सर्प । सर्पों की परोपकारता से भगवान शिव ने उन्हें अपने गले का हार बना लिया ।

भगवान शिव की कमल-पुष्पों से आराधना का फल

महर्षि लोमश बड़े-बड़े रोम होने के कारण ‘लोमश’ कहलाते हैं । भगवान शिव के वरदान से दिव्य शरीर प्राप्त होने पर लोमशजी को कहीं भी इच्छानुसार जाने की शक्ति, पूर्वजन्मों का ज्ञान और काल का ज्ञान प्राप्त हो गया । जब कल्प का अंत होता है, अर्थात् ब्रह्माजी का एक दिन व्यतीत होता है, तब लोमशजी के बाएं घुटने के ऊपर का एक रोम गिर पड़ता है । ऐसा माना जाता है कि अभी उनके बाएं घुटने के बीच का भाग ही रोम-रहित हुआ है ।

शिवालय और शिव के विभिन्न प्रतीकों का क्या है रहस्य ?

प्राय: सभी शिव-मन्दिरों में प्रवेश करते ही सबसे पहले नन्दी के दर्शन होते हैं । उसके बाद कच्छप (कछुआ), गणेश, हनुमान, जलधारा, नाग आदि सभी शिव-मन्दिरों में विराजित रहते हैं । भगवान के इन प्रतीकों में बड़ा ही सूक्ष्म-भाव व गूढ़ ज्ञान छिपा है।

शिव-स्तुतियों में विशेष शिव ताण्डव स्तोत्र की कथा, अर्थ व लाभ

भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलास पर्वत को दबा दिया । दशानन का कंधा और हाथ पर्वत के नीचे दब गए तो वह जोर-जोर से रुदन करने लगा । पार्वतीजी के कहने पर भगवान ने अपने पैर का अंगूठा पर्वत से उठा लिया । दीर्घकाल तक रुदन करते-करते उसने भगवान शंकर की स्तुति की, जो ‘ताण्डव स्तुति’ के नाम से प्रसिद्ध है ।

काशी को ‘आनन्दवन’ क्यों कहते हैं ?

जीव का मृत्युकाल निकट आने पर जब भगवान शंकर उस मरणासन्न प्राणी को अपनी गोद में रखकर उसे तारक मन्त्र का उपदेश करने लगते हैं; उस समय अत्यंत करुणामयी देवी अन्नपूर्णा उस मरणासन्न प्राणी की व्याकुलता को देखकर अत्यंत द्रवित हो जाती हैं और कस्तूरी की गंध वाले अपने आंचल से उस प्राणी की हवा करने लगती हैं और उसकी समस्त व्याकुलता दूर कर देती हैं ।

कलियुग में जाग्रत कामाख्या शक्ति पीठ

कामाख्या देवी योगमाया हैं, उन्हें महामाया भी कहते हैं, क्योंकि वे ज्ञानिजनों की भी चेतना को बलात् आकर्षित करके मोहरूपी गर्त में डाल देती हैं । शिव और शक्ति सदैव एक साथ रहते हैं । कामाख्या शक्ति पीठ के भैरव ‘उमानन्द शिव’ हैं । यहां देवी कामाख्या की पूजा-उपासना तन्त्रोक्त आगम-पद्धति से की जाती है ।

जगत के कल्याण के लिए भगवान शिव का ताण्डव नृत्य

संसार में अणु से लेकर बड़ी-से-बड़ी शक्ति में जो स्पन्दन दिखायी पड़ता है, वह उसके नृत्य एवं नाद का ही परिणाम है । भगवान शिव का नृत्य जब प्रारम्भ होता है, तब उनके नृत्य-झंकार से सारा विश्व मुखर और गतिशील हो उठता है ।

भगवान शिव ने ‘नटराज’ अवतार क्यों धारण किया ?

भगवान शिव नृत्य-विज्ञान के प्रवर्तक माने जाते हैं । वे सबका कल्याण करने वाले हैं, उन्होंने ‘नटराज’ स्वरूप (सुनर्तक नटावतार) क्यों ग्रहण किया ? इस सम्बन्ध में बहुत-सी कथाएं प्रचलित हैं । भगवान शिव के नटराज अवतार की विभिन्न कथाएं ।

भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले है शिव

भोले-भण्डारी भगवान शिव भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले के समान हैं । भगवान शंकर इतने दयालु हैं कि अपने भक्तों के कल्याण के लिए लिए कभी नौकर बन जाते हैं तो कभी भिखारी का वेश धारण करने में भी जरा-सा संकोच नहीं करते हैं । भगवान शिव की भक्त की लाज बचाने की भक्ति कथा ।