Home Tags Shri krishna

Tag: shri krishna

आली री मोहे लागे वृंदावन नीको

वृंदावन, मथुरा और द्वारका भगवान के नित्य लीला धाम हैं; परन्तु पद्म पुराण के अनुसार वृंदावन ही भगवान का सबसे प्रिय धाम है । भगवान श्रीकृष्ण ही वृंदावन के अधीश्वर हैं । वे ब्रज के राजा हैं और ब्रजवासियों के प्राणवल्लभ हैं । उनकी चरण-रज का स्पर्श होने के कारण वृंदावन पृथ्वी पर नित्य धाम के नाम से प्रसिद्ध है ।

भगवान श्रीकृष्ण और श्वपच भक्त वाल्मीकि

एक बार राजा युधिष्ठिर ने यज्ञ किया जिसमें चारों दिशाओं से ऋषि-मुनि पधारे । भगवान श्रीकृष्ण ने एक शंख स्थापित करते हुए कहा कि यज्ञ के विधिवत् पूर्ण हो जाने पर यह शंख बिना बजाये ही बजेगा । यदि नहीं बजे तो समझिये कि यज्ञ में अभी कोई त्रुटि है और यज्ञ पूरा नहीं हुआ है । पूर्णाहुति, तर्पण, ब्राह्मणभोज, दान-दक्षिणा—सभी कार्य संपन्न हो गए, परंतु शंख नहीं बजा । सभी लोग चिंतित होकर शंख न बजने का कारण जानने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के पास आए ।

रानी तेरो चिर जियो गोपाल

नंदबाबा ब्रज के राजा हैं तो माता यशोदा ब्रज की रानी हैं । गोपियां लाला को आशीर्वाद देते हुए कहती है— ‘रानी ! तेरा गोपाल चिरंजीवी हो । ये जल्दी से बड़ा होकर सुंदर नवयुवक हो । माता ! ये तुम्हारे पुण्यों से तुम्हारी कोख से जन्मा है । ये समस्त ब्रज का जीवनप्राण है, आंख का तारा है; लेकिन शत्रुओं के हृदय का कांटा है । तमाल वृक्ष की तरह इस श्याम-वर्ण श्रीकृष्ण को देख कर मन को कितना सुख मिलता है । इसकी चरण-रज के लगाने से ही ब्रजवासियों के सारे रोग-शोक और जंजाल मिट जाएंगे ।

नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा

जो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । गोलोक में नन्दबाबा भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया ।

प्रेम की आंख और द्वेष की आंख

जितना ही मनुष्य दूसरों से प्रेम करेगा, उनसे जुड़ता जाएगा; उतना ही वह सुखी रहेगा । जितना ही दूसरों को द्वेष-दृष्टि से देखोगे, उनसे कटते जाओगे उतने ही दु:खी होओगे । जुड़ना ही आनन्द है और कटना ही दु:ख है मित्रता या प्रेम की आंख से पृथ्वी स्वर्ग बनती है और द्वेष की आंख से नरक का जन्म होता है ।

भक्त माधवदास जिनके सेवक बने भगवान जगन्नाथ

भगवान में प्रेम वह मादक मदिरा है, जिसने भी इसे चढ़ा लिया वह मस्त हो गया । उस मतवाले की बराबरी कोई नहीं कर सकता । संसार के शहंशाह भी उसके गुलाम हैं । त्रिलोकी का राज्य उसके लिए तिनके के समान है । वह तो सदा अपनी मस्ती में ही मस्त रहता है । भगवान के प्रेमी-भक्त को वे सारे पदार्थ और व्यक्ति बाधक लगने लगते हैं, जो भगवान से जुड़े नहीं हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण का सबसे लोकप्रिय मन्त्र (अर्थ सहित)

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं—‘अर्जुन ! जो मेरे नामों का गान करके मेरे निकट नाचने लगता है, या जो मेरे नामों का गान करके मेरे समीप प्रेम से रो उठते हैं, उनका मैं खरीदा हुआ गुलाम हूँ; यह जनार्दन दूसरे किसी के हाथ नहीं बिका है–यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ ।’

संत नागाजी का हठ और भगवान श्रीराधा-कृष्ण

स्वामिनीजी वृषभानुनन्दिनी श्रीराधा वहां पधारीं और उन्होंने नागाजी को विश्वास दिलाया कि ये ही निकुंज के श्यामसुन्दर हैं । अपने आराध्य श्रीराधाश्यामसुन्दर के दर्शन कर श्रीनागाजी ने उन्हें अपनी जटा सुलझाने की अनुमति दे दी । ठाकुरजी ने अपने चार हाथ प्रकट कर उनकी जटा सुलझा दीं ।

श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा है न्यारी

जो मनुष्य जीवन भर श्रीराधा के इस सोलह नामों का पाठ करेगा, उसको इसी जीवन में श्रीराधा-कृष्ण के चरण-कमलों में भक्ति प्राप्त होगी । मनुष्य जीता हुआ ही मुक्त हो जाएगा ।

भगवान विष्णु का सद्गुरु रूप में ‘दत्तात्रेय’ अवतार

भगवान विष्णु ने दत्तात्रेयजी के रूप में अवतरित होकर जगत का बड़ा ही उपकार किया है । उन्होंने श्रीगणेश, कार्तिकस्वामी, प्रह्लाद, परशुराम आदि को अपना उपदेश देकर उन्हें उपकृत किया । कलियुग में भी भगवान शंकराचार्य, गोरक्षनाथजी, महाप्रभु आदि पर दत्रात्रेयजी ने अपना अनुग्रह बरसाया । संत ज्ञानेश्वर, जनार्दनस्वामी, एकनाथजी, दासोपंत, तुकारामजी—इन भक्तों को दत्तात्रेयजी ने अपना प्रत्यक्ष दर्शन दिया ।