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भगवान सूर्य का परिवार
भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं । आदित्य लोक में भगवान सूर्य साकार रूप से विद्यमान हैं । वे रक्त कमल पर विराजमान हैं, उनका वर्ण हिरण्यमय है । उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें दो हाथों में वे पद्म धारण किए हुए हैं और दो हाथ अभय तथा वर मुद्रा से सुशोभित हैं । वे सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं और गरुड़ के छोटे भाई अरुण उनके रथ के सारथि हैं ।
दु:ख नाश के लिए करें शनि देव के 10 नामों का...
शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए उनके दस नामों का नित्य पठन-मनन करना बहुत लाभदायक माना गया है । शनि का दण्ड मिलते-मिलते प्राणी यदि स्वयं में सुधार कर लेता है तो सजा की अवधि समाप्त होने पर वह उसे अपार धन-दौलत, वैभव, ऐश्वर्य, दीर्घायु और दार्शनिक चिन्तन शक्ति प्रदान करते हैं ।
राजा नल को कैसे मिली शनि पीड़ा से मुक्ति ?
नवग्रहों में शनि को दण्डनायक व कर्मफलदाता का पद दिया गया है । यदि कोई अपराध या गलती करता है तो उनके कर्मानुसार दण्ड का निर्णय शनिदेव करते हैं । वे अकारण ही किसी को परेशान नहीं करते हैं, बल्कि सबको उनके कर्मानुसार ही दण्ड का निर्णय करते हैं ।
शनिपीड़ा से मुक्ति के लिए करें इन तीन नामों का जाप
शनि ने वचन दिया कि वह चौदह वर्ष तक की आयु के जातकों को अपनी साढ़ेसाती से मुक्त रखेंगे । पिप्पलाद ने कहा—जो व्यक्ति इस कथा का ध्यान करते हुए पीपल के नीचे शनिदेव की पूजा करेगा, उसके शनिजन्य कष्ट दूर हो जाएंगे ।
शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है ?
हनुमानजी रामसेतु की दौड़कर प्रदक्षिणा करने लगे । इससे उनकी विशाल पूंछ, जिसमें शनिदेव बंधे हुए थे, वानर व भालुओं द्वारा रखे गये बड़े-बड़े पत्थरों से टकराने लगी । बजरंगबली बीच-बीच में अपनी पूंछ को पत्थरों पर पटक भी देते थे ।
शनि की पीड़ा से मुक्ति का सबसे प्रभावशाली उपाय
शनिदेव को प्रसन्न करने का प्रभावशाली उपाय जिसको करने से मिलती है शनिदोष से मुक्ति
शनिदेव की दृष्टि में कौन-से कार्य हैं अपराध
‘जाको प्रभु दारुण दु:ख देहीं, ताकी मति पहले हरि लेहीं’ जिस व्यक्ति को शनिदेव को दण्ड देना होता है, पहले उसकी बुद्धि हर लेते हैं।