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भगवान की पूजा या सेवा
सामान्य भाषा में भगवान की ‘सेवा’ और ‘पूजा’ दोनों का समान अर्थ माना जाता है; लेकिन वैष्णव आचार्यों ने भाव के अनुसार इनमें बहुत बड़ा अंतर माना है । जानते हैं, भगवान की सेवा और पूजा में अंतर क्या अंतर है ?
पूजा में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का क्या महत्व हैं ?
किसी भी देवता के पूजन में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का बहुत महत्व है । पूजा के सरलतम रूप जिसे पंचोपचार पूजन कहते हैं; उसमें भगवान का पांच ही चीजों से पूजन करने का विधान है और ये पांच उपचार हैं—१. गंध, २. पुष्प, ३. नैवेद्य, ४. धूप और ५. दीप ।
मल मास को ‘खर मास’ क्यों कहते हैं ?
पौराणिक ग्रंथों में खर मास की कथा भगवान सूर्य से जुड़ी हुई है; इसलिए इन दिनों में सूर्य उपासना का विशेष महत्व बतलाया गया है । मार्कण्डेय पुराण में खर मास के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख है ।
धार्मिक अनुष्ठान में की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं का अर्थ
किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न करते समय विभिन्न क्रियाएं की जाती हैं, जैसे—स्वस्तिवाचन, पवित्री धारण, आचमन, शिखा-बंधन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी-पूजन, संकल्प, यज्ञोपवीत बदलना, चंदन धारण, रक्षा सूत्र आदि । जानतें हैं इन सबका क्या है आध्यात्मिक अर्थ और महत्व ।
पूजा-पाठ से मनचाहा परिणाम क्यों नहीं मिलता ?
ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधक में नदी की तरह का दीवानापन होना चाहिए । जब तक यह दीवानापन नहीं होगा कोई मन्त्र क्या करेगा ? और जब साधक में ऐसी मस्ती या दीवानापन होगा तो क्या मन्त्र और क्या किसी से पथ पूछना ? जिधर पांव ले जाएंगे वहीं प्रियतम प्यारा खड़ा मिलेगा ।
भगवान का आशीर्वाद है चरणामृत
शालग्राम शिला या भगवान की प्रतिमा के चरणों से स्पर्श किए व उनके स्नान के जल को ‘चरणामृत’ या ‘चरणोदक’ कहते हैं; इसलिए चरणामृत को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है । हिन्दू धर्म में चरणामृत को अमृत के समान और अत्यंत पवित्र माना गया है ।
जप योग
शास्त्रों में भी यज्ञों की अपेक्षा जप-यज्ञ को श्रेष्ठ बतलाया गया है । इसमें तो चाहे बालक हो, चाहे बूढ़ा, चाहे स्त्री हो या पुरुष, सभी को जप करने का समान अधिकार है । जानें, जप कितने प्रकार का होता है ?
विभिन्न प्रकार की सिद्धियां और उनके लक्षण
मनुष्य सिद्धि प्राप्ति के लिए अनेक कष्ट सहकर विभिन्न उपाय करता है परन्तु भगवान श्रीकृष्ण उद्धवजी को कहते हैं कि जो मुझ एक परमात्मा को अपने हृदय में धारण करता है, सब सिद्धियां उसके चरणतले आ जाती हैं और चारों मुक्तियां उसकी दासी बन कर सदैव उसके पास रहती हैं ।
दीपावली पर्व पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय
दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ सभी देवताओं का पूजन कर उन सबका अपने घर में शयन का प्रबन्ध करना चाहिए जिससे वे लक्ष्मीजी के साथ वहीं निवास करें । नयी शय्या, नया बिस्तर व कमल आदि से सजा कर लक्ष्मीजी को घर में स्थिरभाव से निवास करने की प्रार्थना करनी चाहिए। इससे लक्ष्मी घर में स्थिर रूप से निवास करती हैं ।
अकाल मृत्यु से मुक्ति का पर्व है धनतेरस
धनतेरस का सम्बन्ध यमराज से है । यमुनाजी यमराज की बहन हैं इसलिए इस दिन यमुना-स्नान का भी विशेष महत्व है और प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है ।