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क्या भगवान को देखा जा सकता है ?

गीता के इस श्लोक में भगवान ने अनन्य भक्ति द्वारा सुलभ होने वाली तीन बातें कहीं हैं—१. भगवान को प्रत्यक्ष देखना, २. भगवान को जानना और ३. भगवान में प्रवेश करना अर्थात् उनमें एकाकार हो जाना । इन तीनों बातों के सुंदर उदाहरण हमें पुराणों में अनेक प्रसंगों में मिलते हैं ।

शरणागति

जानें, कैसी है भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम की शरणागतवत्सलता ?

श्रीराधा-उद्धव संवाद

श्रीराधा ने अत्यन्त गम्भीर स्वर में कहा--’जब तक वे निश्चिन्त होकर न आ सके, तब तक उनका न आना ही ठीक है । हम केवल उन्हें पाकर ही सुखी नहीं होती, उनके मुख पर मुस्कान देखकर ही सुखी होती हैं । हे उद्धव ! मुझे ऐसा लगता है कि मथुरा में कृष्ण कोई दूसरे होंगे, मेरे कृष्ण तो मेरे साथ ही रहते हैं, मुझे छोड़ कर वे गए ही नहीं हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण का विशिष्ट श्रृंगार

श्रीअंग में कर्पूर-चंदन का लेप लगाए, कपोलों पर गेरु से सुन्दर पत्ररचना किए हुए, कानों तक फैले विशाल नेत्रों वाले, मकराकृत कुण्डल, नाक में नथबेसर, टोड़ी पर झिलमिल हीरा पहने व मुख पर मधुर मुसकान लिए श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण छोटे से कहे जाते हैं; पर उनका तनिक-सा दृष्टिपात करते ही समस्त लोकों की सृष्टि हो जाती है; इनका तनिक-सा सुयश सुनने से ही प्राणी परमपद को पा जाता है;

भगवान श्रीकृष्ण : ‘नक्षत्रों में मैं चंद्रमा हूँ’

भगवान की दिव्य विभूति वे वस्तुएं या प्राणी हैं, जिनमें भगवान के तेज, बल, विद्या, ऐश्वर्य, कांति और शक्ति आदि विशेष रूप से हों । संसार में जो भी ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, वह सब भगवान के तेज का अंश होने से उनकी विभूति हैं ।

कर्मयोग के प्रथम श्रोता भगवान सूर्य देव

अर्जुन ने आश्चर्यचकित होकर भगवान से पूछा—‘सूर्य का जन्म तो आपके जन्म से बहुत पहले हुआ था; इसलिए यह कैसे माना जाए कि आपने यह विद्या सूर्य को दी थी ?’ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘अर्जुन ! मेरे और तुम्हारे दोनों के अनेक जन्म हो चुके हैं । मैं उन सबको जानता हूँ; किंतु तुम नहीं जानते ।’

‘हरे राम हरे कृष्ण’ मंत्र का अर्थ

द्वापर के अंत में नारद जी ब्रह्मा जी के पास जाकर बोले—‘भगवन् ! मैं पृथ्वीलोक में किस प्रकार कलि के दोषों से बच सकता हूँ ।’ ब्रह्माजी ने कहा—‘भगवान आदिनारायण के नामों का उच्चारण करने से मनुष्य कलि के दोषों से बच सकता है ।’ नारद जी ने पूछा—‘वह कौन-सा नाम है ?’

क्या भगवान का जन्म मनुष्यों की भांति होता है ?

‘हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ । साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप-कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ ।’

कल्पवृक्ष के समान श्रीकृष्ण के नाम

भगवान श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है--सब अभिलाषित फलों को देने वाला है। यह स्वयं श्रीकृष्ण है, पूर्णतम है, नित्य है, शुद्ध है, सनातन है। भगवान के नाम अनन्त हैं, उनकी गणना कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। यहां कुछ थोड़े से प्रचलित नामों का अर्थ दिया जा रहा है ।

भगवान श्रीकृष्ण की अर्जुन का गर्व-हरण लीला

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा अर्जुन का गर्व-हरण कैसे किया ?