Home Tags Krishna leela

Tag: krishna leela

भगवान श्रीकृष्ण की शकट भंजन लीला

इस कृष्ण लीला में यही रहस्य है कि नंद-यशोदा श्रीकृष्ण के पास रहते हैं तो कोई राक्षस नहीं आता है । नंदबाबा श्रीकृष्ण को छोड़कर मथुरा गये तो पूतना आई । यशोदा माता श्रीकृष्ण को बैलगाड़ी के नीचे सुलाकर गोपियों के स्वागत में लगती हैं और लाला को भूल जाती हैं तो शकटासुर आता है । कहने का अर्थ यही है कि जब-जब नंद-यशोदा श्रीकृष्ण से दूर हुए हैं, तब-तब राक्षस (विपत्ति) आए हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण का गोप-गोपियों को वैकुण्ठ का दर्शन कराना

ब्रज में आकर गोप-गोपियों ने भी चैन की सांस लेते हुए कहा—‘वैकुण्ठ में जाकर हम क्या करेंगे ? वहां यमुना, गोवर्धन पर्वत, वंशीवट, निकुंज, वृंदावन, नन्दबाबा-यशोदा और उनकी गाय—कुछ भी तो नहीं हैं । वहां ब्रज की मंद सुगंधित बयार भी नहीं बहती, न ही मोर-हंस कूजते हैं । वहां कन्हैया की वंशीधुन भी नहीं सुनाई देती । ब्रज और नन्दबाबा के पुत्र को छोड़कर हमारी बला ही वैकुण्ठ में बसे ।

रोम रोम से श्रीकृष्ण नाम

भगवान के नाम में विलक्षण शक्ति है । जिस प्रकार किसी व्यक्ति का नाम लेने पर वही आता है; ठीक उसी तरह ‘श्रीकृष्ण’ नाम का उच्चारण करने पर वह तीर की तरह लक्ष्यभेद करता हुआ सीधे भगवान के हृदय पर प्रभाव करता है; जिसके फलस्वरूप मनुष्य श्रीकृष्ण कृपा का भाजन बनता है । जहाँ कहीं और कभी भी शुद्ध हृदय से ‘कृष्ण’ नाम का उच्चारण होता है; वहाँ-वहाँ स्वयं कृष्ण अपने को व्यक्त करते हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणीजी का गर्व-हरण

भगवान का स्वभाव है कि वे भक्त में अभिमान नहीं रहने देते; क्योंकि अभिमान जन्म-मरण रूप संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों और शोक को देने वाला है । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं । उस समय थोड़ा कष्ट महसूस होता है; लेकिन बाद में उसमें भगवान की करुणा ही दिखाई देती है ।

भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला

भक्तों को दिए वरदानों और उनके मनोरथों को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने व्रज में अनेक लीलाएं कीं । उनमें से एक अत्यंत रोचक लीला है ‘भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला’ ।

भगवान श्रीकृष्ण की दावाग्नि-पान लीला

भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत रहस्यमयी लीला है—‘दावाग्नि-पान लीला’ । भगवान श्रीकृष्ण ने यह लीला क्यों की और क्या है इसका रहस्य ? इस लीला का वर्णन श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के सत्रहवें अध्याय में किया गया है ।

कुब्जा प्रसंग द्वारा श्रीकृष्ण का संसार को संदेश

संसार में स्त्रियां कुंकुम-चंदनादि अंगराग लगाकर स्वयं को सज्जित करती हैं; किन्तु हजारों में कोई एक ही होती है जो भगवान को अंगराग लगाने की सोचती होगी और वह मनोभिलाषित अंगराग लगाने की सेवा भगवान तक पहुंच भी जाती है क्योंकि उसमें भक्ति-युक्त मन समाहित था । कुब्जा की सेवा ग्रहण करके भगवान प्रसन्न हुए और उस पर कृपा की ।

मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण प्रेम, आनन्द और माधुर्य के अवतार माने जाते हैं । अपनी व्रज लीला में उन्होने सबको इन्हीं का ही वितरण किया । अपनी माधुर्य शक्ति से वे जीव को अपनी ओर आकर्षित कर कहते हैं--’तुम यहां आओ ! मैं ही सच्चा आनन्द हूँ । मैं तुमको आत्मस्वरूप का दान करने के लिए बुलाता हूँ ।’

गुरु-भक्ति से युगल स्वरूप के दर्शन : भक्ति कथा

युगलस्वरूप के साक्षात् दर्शन करने से श्रीविट्ठलविपुलदेव के नेत्र स्तब्ध और देह जड़ हो गई, नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे । मुख से बोल निकले—‘हे रासेश्वरी ! आप करुणा करके मुझे अपनी नित्यलीला में स्थान दो । अब मेरे प्राण संसार में नहीं रहना चाहते हैं ।’

श्रीराधा-कृष्ण की अलौकिक लीला का साक्षी : श्रीराधाकुण्ड

श्रीराधाकृष्ण की लीला के महत्वपूर्ण स्थल हैं—श्रीराधाकुण्ड व श्रीकृष्णकुण्ड । श्रीरूपगोस्वामी ने कहा है—‘ठाकुर के सभी धाम पवित्र हैं पर उनमें भी वैकुण्ठ से मथुरा श्रेष्ठ है, मथुरा से रासस्थली वृन्दावन श्रेष्ठ है, उससे भी श्रेष्ठ गोवर्धन है लेकिन उसमें भी श्रीराधाकुण्ड अपने माधुर्य के कारण सर्वश्रेष्ठ है ।’