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नवरात्र में दुर्गा पूजन की विधि
कलश-स्थापन क्यों किया जाता है? कौन-से योग व नक्षत्रों में कलश-स्थापन नहीं करना चाहिए? कैसे करें घट-स्थापना के लिए कलश तैयार? कलश पर नारियल स्थापित करते समय रखें इन बातों का ध्यान,
कलश में देवी-देवताओं का आवाहन, देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए करें ये विशेष उपाय ।
देवी भुवनेश्वरी का अद्भुत रूप : माता भ्रामरी
माता भ्रामरी ने अपने हाथ के और चारों तरफ के भ्रमरों को प्रेरित किया और वे असंख्य भ्रमर ‘ह्रीं-ह्रीं’ करते हुए अरुण दानव की ओर उड़ चले । उन काले-काले भ्रमरों से सूर्य छिप गया और चारों तरफ अंधकार छा गया । वे भ्रमर अरुण दानव और उसकी दैत्य सेना के शरीर से चिपक कर उसे काटने लगे । दानव असीम वेदना से छटपटाने लगे और जो जहां था, वहीं गिरकर मर गया ।
देवी दुर्गा के सोलह नाम और उनका अर्थ
सबसे पहले परमात्मा श्रीकृष्ण ने सृष्टि के आदिकाल में गोलोक स्थित वृन्दावन के रासमण्डल में देवी की पूजा की थी । दूसरी बार भगवान विष्णु के सो जाने पर मधु और कैटभ से भय होने पर ब्रह्माजी ने उनकी पूजा की। तीसरी बार त्रिपुर दैत्य से युद्ध के समय महादेवजी ने देवी की पूजा की । चौथी बार दुर्वासा के शाप से जब देवराज इन्द्र राजलक्ष्मी से वंचित हो गए तब उन्होंने देवी की आराधना की थी । तब से मुनियों, सिद्धों, देवताओं तथा महर्षियों द्वारा संसार में सब जगह देवी की पूजा होने लगी।
क्या है देवी दुर्गा के विभिन्न प्रतीकों का रहस्य ?
जब-जब लोक में दानवी बाधा उपस्थित हो जाती है, चारों ओर अनीति, अत्याचार फैल जाता है, तब-तब देवी पराम्बा विभिन्न नाम व रूप धारण कर प्रकट होती हैं और समाज विरोधी तत्वों का नाश करती हैं ।
घर पर देवी पूजा की सरल विधि
मां को अपने बच्चों से केवल प्रेम चाहिए और कुछ नहीं । अत: इनमें से जो भी वस्तु घर में उपलब्ध हो, अगर वह अपनी श्रद्धा और सामर्थ्यानुसार मां को अर्पित कर दी जाए तो वह उससे भी प्रसन्न हो जाती हैं । इतनी पूजा अगर रोज न कर सकें तो अष्टमी और नवरात्रों में इस पूजा-विधि को अपना सकते हैं ।
नवरात्र में मां जगदम्बा को किस दिन लगाएं कौन सा भोग
श्रीदेवीभागवतपुराण में मां जगदम्बा को प्रसन्न करने के लिए देवी पक्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक) में प्रतिदिन मां के अलग-अलग भोग बताए गए हैं और उन्हें दान करने का निर्देश है ।
देवी मंगलचण्डिका का मन्त्र व स्तोत्रपाठ करता है सर्वमंगल
दुर्गा को चण्डी कहते हैं और पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है; अत: जो मंगलग्रह की आराध्या हैं, उन्हें मंगलचण्डिका कहते हैं ।
करुणामयी मां शताक्षी (शाकम्भरी)
पुत्र कष्ट में हों तो मां कैसे सहन कर सकती है? फिर देवी तो जगन्माता हैं, उनके कारुण्य की क्या सीमा? त्रिलोकी की ऐसी व्याकुलता देखकर मां के अंत:स्तल में उठने वाला करुणा का आवेग अकुलाहट के साथ आंसू की धारा बनकर बह निकला। नीली-नीली कमल जैसी दिव्य आंखों में मां की ममता आंसू बनकर उमड़ आयी। दो आंखों से हृदय का दु:ख कैसे प्रकट होता? जगदम्बा ने कमल-सी कोमल सैंकड़ों आंखें बना लीं। सैंकड़ों आंखों से करुणा के आंसुओं की अजस्त्र धारा बह निकली।। इसी रूप में माता ने सबको अपने दर्शन कराए और जगत में ‘शताक्षी’ (शत अक्षी) कहलाईं। करुणार्द्र-हृदया मां व्याकुल होकर लगातार नौ दिन और नौ रात तक रोती रहीं।
आद्याशक्ति दुर्गा और नवरात्र
देवीपुराण के अनुसार दुर्गा शब्द में ‘द’कार दैत्यनाशक, ‘उ’कार विघ्ननाशक, ‘रेफ’ रोगनाशक, ‘ग’कार पापनाशक तथा ‘आ’कार भयशत्रुनाशक है। अत: ‘दुर्गा दुर्गतिनाशिनी’--का अर्थ ही है ‘जो दुर्गति का नाश करे’ क्योंकि यही पराशक्ति पराम्बा दुर्गा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति है।