durga devi mangal chandika

मंगल-ही-मंगल करने व सभी शक्तियां देने वाली देवी मंगलचण्डिका

‘चण्डी’ शब्द का अर्थ ‘दक्ष या चतुर’ और ‘मंगल’ शब्द का अर्थ है ‘कल्याण’; अत: जो कल्याण करने में दक्ष हो उसे ‘मंगलचण्डिका’ कहते हैं । एक अन्य अर्थ के अनुसार दुर्गा को चण्डी कहते हैं और पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है; अत: जो मंगलग्रह की आराध्या हैं उन्हें मंगलचण्डिका कहते हैं ।

ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।। (सप्तश्लोकी दुर्गा)

भगवान शिव सृष्टिकार्य के लिए अर्धनारीश्वर बन गए जिनका दायां भाग पुरुष और बायां भाग प्रकृति या मूलप्रकृति कहा जाता है । इन्हीं मूलप्रकृति का अंश मां मंगलचण्डिका हैं । वे मूलप्रकृति के मुख से प्रकट हुई हैं और सभी प्रकार के मंगल प्रदान करने वाली हैं । उत्पत्ति के समय वे मंगलरूपा तथा संहार के समय कोपरूपा होती हैं । देवी मंगलचण्डिका मूलप्रकृति दुर्गा का ही एक रूप हैं । ये स्त्रियों की इष्टदेवी हैं ।

देवी का ‘मंगलचण्डिका’ नाम क्यों प्रसिद्ध हुआ

  • सभी प्रकार के मंगलों के बीच देवी प्रचण्ड मंगला हैं, इसलिए मंगलचण्डिका कहलाती हैं।
  • भूमिपुत्र मंगलग्रह की अभीष्ट देवी होने से मंगल इनकी पूजा करते हैं, इसलिए वे मंगलचण्डिका के नाम से जानी जाती हैं।
  • मनुवंश में उत्पन्न सम्पूर्ण पृथ्वी के स्वामी राजा मंगल की आराध्या होने से देवी मंगलचण्डिका कहलाती हैं।

भगवान शंकर ने की सर्वप्रथम देवी मंगलचण्डिका की पूजा

त्रिपुरासुर से युद्ध के समय भगवान शंकर संकट में पड़ गए । त्रिपुरासुर ने युद्ध में भगवान शंकर का विमान आकाश से नीचे गिरा दिया । इस दुर्गति को देखकर भगवान विष्णु व ब्रह्मा ने उन्हें देवी दुर्गा की स्तुति करने के लिए कहा । शंकरजी के स्तुति करने पर देवी दुर्गा रूप बदलकर मंगलचण्डिका के रूप में भगवान के सामने प्रकट हो गयीं और बोलीं–‘अब आपको कोई भय नहीं है, भगवान विष्णु वृषभरूप में आपका वाहन बनेंगे और मैं शक्तिरूप में आपकी सहायता करुंगी और आप उस दानव को मार डालोगे ।’  उसी क्षण वे शक्तिरूप से भगवान शिव में प्रविष्ट हो गयीं । विशेष शक्तिसम्पन्न होने से भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध कर दिया ।

देवी मंगलचण्डिका की पूजा के लिए मंगलवार का है विशेष महत्व

भगवान शंकर ने विभिन्न उपचारों (वस्तुओं) से सबसे पहले मंगलवार के दिन देवी मंगलचण्डिका का पूजन किया । इसलिए मंगलवार का दिन देवी मंगलचण्डिका की उपासना के लिए विशेष फलदायी है ।

देवी मंगलचण्डिका का मूल मन्त्र

भगवान शंकर ने यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा में कहे गए इक्कीस अक्षरों वाले मन्त्र से देवी को पाद्य, अर्घ्य, वस्त्र, पुष्प, नैवेद्य आदि विभिन्न वस्तुएं अर्पित कीं । यह मन्त्र है–

‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मंगलचण्डिके हुं हुं फट् स्वाहा ।’

यह मन्त्र दस लाख जप करने पर कल्पवृक्ष की भांति साधक की सभी कामनाएं पूरी कर देता है।

देवी मंगलचण्डिका का ध्यान

देवी मंगलचण्डिका सोलह वर्ष की आयुवाली सुस्थिर यौवना हैं, उनके बिम्बाफल के समान लाल होंठ हैं, चम्पा के समान श्वेत वर्ण है, कमल के समान मुख वाली हैं, आंखें जान पड़ती हैं मानो खिले हुए नीलकमल हों । सबका भरण-पोषण करने वाली ये देवी सबको सभी वस्तुएं प्रदान करने में समर्थ हैं । संसाररूपी घोर समुद्र में पड़े हुए व्यक्तियों के लिए वे ज्योति स्वरूप हैं ।

भगवान शंकर द्वारा की गयी देवी मंगलचण्डिका की स्तुति

जगत की माता देवी मंगलचण्डिके ! तुम सभी विपत्तियों का नाश करने वाली हो और हर्ष और मंगल प्रदान करने के लिए सदैव तैयार रहती हो । मेरी रक्षा करो, रक्षा करो । खुले हाथ सज्जनों को हर्ष और मंगल प्रदान करने वाली, तुम मंगलदायिका, शुभा, मंगलदक्षा, मंगला, मंगलार्हा तथा सर्वमंगलमंगला कहलाती हो । साधु पुरुषों को मंगल प्रदान करना तुम्हारा स्वाभाविक गुण है । तुम सबके लिए मंगलों की आश्रयरूपा हो । मंगलग्रह ने तुम्हें अपनी अधिष्ठात्री देवी मानकर मंगलवार के दिन तुम्हारी पूजा की है । मनुवंश में उत्पन्न राजा मंगल तुम्हारी निरन्तर पूजा करते हैं । तुम मंगलों के लिए भी मंगल हो । जगत के सभी मंगल तुम पर आश्रित हैं । मंगल की अधिष्ठात्री देवी ! तुम सबको मोक्षरूप मंगल प्रदान करती हो । मंगलवार के दिन पूजी जाने वाली देवी ! तुम जगत्सर्वस्व, मंगलाधार और सर्वमंगलमयी हो ।

इस स्तोत्र का श्रद्धा के साथ पाठ करने से सदा मंगल होता है, कभी भी अमंगल नहीं होता। पुत्र-पौत्र सहित परिवार में मंगल-ही-मंगल छाया रहता है ।

देवी मंगलचण्डिका का किस-किस ने किया पूजन

सबसे पहले भगवान शंकर ने सभी मंगलों को देने वाली देवी मंगलचण्डिका की पूजा मंगलवार को की थी । दूसरी बार मंगलग्रह ने, तीसरी बार राजा मंगल ने उनकी पूजा की । चौथी बार मंगलवार को कुछ सुन्दर महिलाओं ने और पांचवी बार अपना कल्याण चाहने वाले कुछ पुरुषों ने देवी मंगलचण्डिका का पूजन किया । तब से सभी देवताओं, मनुओं, मुनियों और मानवों द्वारा देवी का पूजन किया जाने लगा ।

सर्वमंगलमंगला देवी मंगलचण्डी पराक्रम, शक्ति, बल, विद्या, ओज और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हैं ।

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े ।
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले मंगला तेरी भेंट धरें ।।
सुन मंगलचण्डिके कर न विलम्बे संत खड़े जयकार करें ।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली जय देवी कल्याण करें ।।

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