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मानसी-सेवा का अद्भुत फल

उस बालक वे बाबा के शरीर को स्नान करा कर चन्दन लगाया, फूलमाला आदि पहना कर उनका पूजन-वंदन किया फिर परिक्रमा कर अंतिम क्रिया की । सभी लोग देखते रह गये, किसी की भी उसे रोकने-टोकने की हिम्मत नहीं हुई । कुछ ही देर बाद वह बालक अदृश्य हो गया ।

हजार नामों के समान फल देने वाले भगवान श्रीकृष्ण के 28...

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में पाप नहीं रह पाता है । वह मनुष्य एक करोड़ गो-दान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ और एक हजार कन्यादान का फल प्राप्त करता है ।

विभिन्न प्रकार की सिद्धियां और उनके लक्षण

मनुष्य सिद्धि प्राप्ति के लिए अनेक कष्ट सहकर विभिन्न उपाय करता है परन्तु भगवान श्रीकृष्ण उद्धवजी को कहते हैं कि जो मुझ एक परमात्मा को अपने हृदय में धारण करता है, सब सिद्धियां उसके चरणतले आ जाती हैं और चारों मुक्तियां उसकी दासी बन कर सदैव उसके पास रहती हैं ।

संत एकनाथ और सेवक भगवान श्रीकृष्ण

भगवान पृथ्वी, गौ, देवता और मनुष्यों की रक्षा के लिए तो अवतार ग्रहण करते हैं किन्तु भक्तों के प्रेम पर रीझ कर उनके सेवक क्यों बन जाते है ?

श्रीकृष्ण पर्यावरण संरक्षण के सबसे बड़े रोल मॉडल

श्रीकृष्ण ने अपने आदर्श जीवन में जो कुछ किया है, उसकी कहीं तुलना नहीं है । इसलिए सच्चे कृष्णभक्त कहलाने का हक हमें तभी है जब हम उनकी तरह अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए ज्यादा-से ज्यादा पेड़ लगाएं, नदियों को कचरा-मुक्त रखें, पोलीथिन व प्लास्टिक प्रयोग ना करने की शपथ लें ।

श्रीकृष्ण अपने पैर का अंगूठा क्यों पीते थे ?

श्रीकृष्ण द्वारा अपने पैर के अंगूठे को पीने की बाललीला देखने, सुनने अथवा पढ़ने में तो छोटी-सी तथा सामान्य लगती है किन्तु इसे कोई हृदयंगम कर ले और कृष्ण के सम्मुख हो जाय तो उसका तो बेड़ा पार होकर ही रहेगा ।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की परम्परा कब शुरु हुई ?

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा—‘हे अच्युत ! आप कृपा करके यह बतायें कि जन्माष्टमी (आपका जन्मदिन) महोत्सव मनाने की परम्परा कब शुरु हुई और इसका पुण्य क्या है ?’

नंदोत्सव के बधाई गीत

भगवान के जन्म महोत्सव पर बधाइयां गाना भगवान की सेवा ही है अत: यह भक्ति का ही एक अंग है । बधाइयों में भगवान के प्राकट्य पर व्रजवासियों के आनंद का गायन किया जाता है ।

स्त्रियां अपने मन में कोई बात क्यों नहीं छिपा पाती हैं...

एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं पचती है ।’ यह केवल कहावत नहीं है वरन् सच्चाई है जिसका वर्णन महाभारत के शान्तिपर्व में है ।

परमात्मा की प्राप्ति में भाव ही प्रधान है

बालगोपाल बोले—‘तुमने मेरा अर्चन किया ही कब ? तुम तो जड़ मूर्ति का पूजन करते रहे । तुमने मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा तो की पर उसमें मेरी उपस्थिति का भाव तुम्हें कभी नहीं आया । आज जब तुम्हें उस जड़ मूर्ति में मेरी उपस्थिति का आभास हुआ कि मैं मां को अर्पित किए गए हवन और भोग की गन्ध ग्रहण कर रहा हूँ तो मैं तुम्हारे सामने साक्षात् प्रत्यक्ष हो गया ।’