parvati ji doing shiv puja

हरितालिका तीज व्रत भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है । पार्वती जी ने कठोर तप के द्वारा इस दिन भगवान शिव को प्राप्त किया था । कुंवारी लड़कियों द्वारा इस व्रत को करने से उन्हें मनचाहे पति की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियां इस व्रत को करती हैं तो उन्हें अखण्ड सुहाग की प्राप्ति होती है । यह कठिन व्रत बहुत ही त्याग और निष्ठा के साथ किया जाता है । इस व्रत में मुख्य रूप से शिव-पार्वती और गणेश जी का पूजन किया जाता है ।

हरितालका तीज : व्रत-पूजन विधि

इस दिन प्रात:काल स्नानादि करके सुन्दर व स्वच्छ वस्त्र धारण करें । फिर शिव-पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा लेकर उन्हें सुन्दर वस्त्र धारण कराएं । भगवान शिव को एक धोती और गमछा पहनाएं और पार्वतीजी पर साड़ी ब्लाउज और सुहाग का सामान चढ़ाएं । रोली, चंदन, इत्र आदि लगाएं । पुष्पमाला पहनाएं, धूप, दीप दिखा कर भोग अर्पित करें । अंत में आरती करें व कथा सुनें । हो सके तो रात्रि को जागरण करें ।

इस दिन पार्वती जी की पूजा करते समय उनके इन नामों का उच्चारण करना चाहिए—

मां पार्वती के आठ नाम देते हैं सौभाग्य का वरदान

१. पार्वती, २. ललिता, ३. गौरी, ४. गान्धारी, ५. शांकरी, ६. शिवा, ७. उमा और ८. सती

ये आठ नाम अत्यन्त सौभाग्यदायक हैं । पूजा के समय या सुबह-सुबह इनका उच्चारण किया जाए तो शिवप्रिया पार्वती रूप, सौभाग्य, दाम्पत्य-सुख, संतान, धन व ऐश्वर्य आदि की सभी कामनाएं पूरी कर देती हैं व उमामहेश्वर की पूजा करने वालों को कभी शोक नहीं होता है ।

सौभाग्य व आरोग्य प्राप्ति का मन्त्र

यदि इस मन्त्र का अपनी सुविधानुसार ११, २१, या १०८ बार (एक माला का) जप कर लिया जाए तो मनुष्य सुख-सौभाग्य व आरोग्य प्राप्त करता है–

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

अर्थात्–मां मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो । परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध्र आदि शत्रुओं का नाश करो ।।

दाम्पत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए मन्त्र

यथा न देवि देवेशस्त्वां परित्यज्य गच्छति ।
तथा मां सम्परित्यज्य पतिर्नान्यत्र गच्छतु ।। (उत्तरपर्व २६।३०)

अर्थ–’देवि ! जिस प्रकार देवाधिदेव भगवान महादेव आपको छोड़कर अन्य कहीं नहीं जाते, उसी प्रकार मेरे पति मुझे छोड़कर कहीं न जाएं ।’

दूसरे दिन ब्राह्मण व ब्राह्मणी को भोजन कराएं । ब्राह्मण को भगवान शिव को अर्पित किए गए धोती व गमछा और दक्षिणा दें । ब्राह्मणी को पार्वतीजी को चढ़ाई गई साड़ी, ब्लाउज, सुहाग-पिटारी व दक्षिणा देकर विदा करें ।

इस प्रकार भगवान शिव व शिवप्रिया पार्वती जी की पूजा करने से पति-पत्नी बहुत समय तक सांसारिक सुखों को भोग कर अंत में शिवलोक को प्राप्त करते हैं ।

हरितालिका तीज व्रत की कथा

इस व्रत को सबसे पहले पार्वती जी ने किया जिसके फलस्वरूप भगवान शिव उन्हें पति रूप में प्राप्त हुए थे; इसलिए इस व्रत में स्त्रियां वह कथा भी सुनती हैं, जो पार्वती जी के जीवन में घटित हुई थी ।

दक्ष-यज्ञ में सती जब अपने पति शिव का अपमान न सहन कर सकीं, तो वे योगाग्नि में भस्म हो गईं । फिर पर्वतराज हिमाचल और मैना के यहां वे पार्वती के रूप में प्रकट हुईं । पूर्व जन्म के संस्कार के कारण वे इस जन्म में भी शिव-चिंतन में लगी रहतीं थीं । वयस्क होने पर वे मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए पिता की आज्ञा से वन में जाकर निराहार तप करने लगीं ।

एक दिन नारद जी पर्वतराज हिमाचल के घर पधारे और कहा—‘भगवान विष्णु आपकी कन्या का वरण करना चाहते हैं, उन्होंने मेरे द्वारा यह संदेश आप तक कहलवाया है । आपका जो विचार हो, उसे मुझे बताएं ।’

राजा हिमाचल पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करने को राजी हो गए ।

देवर्षि नारद पार्वती जी के पास जाकर बोले—‘अब तुम यह कठोर तपस्या छोड़ो, तुम्हें अपनी साधना का फल मिल गया है । तुम्हारे पिता ने भगवान विष्णु के साथ तुम्हारा विवाह पक्का कर दिया है ।’

नारद जी की बात सुन कर पार्वती जी को बहुत कष्ट हुआ और वे मूर्च्छित होकर गिर पड़ीं । सखियों के उपचार करने पर जब वे स्वस्थ हुईं तो उन्होंने सखियों को अपने शिव-प्रेम के बारे में बताया । सखियों ने उनसे कहा—‘तुम्हारे पिता तुम्हें लिवा ले जाने के लिए आते ही होंगे । हम लोगों को जल्दी से किसी दूसरे गहन वन में जाकर छिप जाना चाहिए ।’

पार्वती जी अपनी सखियों के साथ वहां से निकल कर एक पर्वत की कंदरा (गुफा) में पहुंची । वहां पार्वती जी ने एक शिवलिंग बना कर उसकी आराधना शुरु कर दी । पार्वती जी की कठोर आराधना से भगवान शिव का आसन डोलने लगा । वे प्रसन्न होकर पार्वती जी के समक्ष प्रकट हो गए और उन्हें पत्नी रूप में वरण करने का वचन देकर अन्तर्धान हो गए ।

कुछ समय बाद पर्वतराज हिमाचल अपनी पुत्री को खोजते हुए वहां पहुंच गए । जब उनको सब बातें पता चलीं तो उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शंकर के साथ कर दिया ।

‘सखियों के द्वारा पार्वती जी हरी गयी’—इस कारण इस व्रत का नाम ‘हरितालिका व्रत’ हुआ । यह व्रत स्त्री के सुहाग की रक्षा कर अखण्ड सौभाग्य प्रदान करता है ।

वायना

१४ या १६ नग मिठाई के ऊपर श्रद्धानुसार रूपये रखकर वायना मिंस दें और अपनी सासुजी को देकर पांव छुएं । यदि मिट्टी की प्रतिमा का पूजन किया है तो उसे पूजन-सामग्री सहित नदी या तालाब में विसर्जित कर दें । फिर व्रती स्त्रियां जल व भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करती हैं । 

इस व्रत में फलाहार की बात तो दूर स्त्रियां जल तक ग्रहण नहीं करती हैं । व्रत के दूसरे दिन वायना आदि देकर ही व्रत का पारण किया जाता है ।

व्रत पूजन का फल

इस प्रकार हरितालका तीज का व्रत करने से सुख, सौभाग्य, धन और पुत्र आदि की प्राप्ति होती है ।

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