सृष्टि के आरम्भ से ही ब्रह्मा आदि सभी देवता, रामावतार में भगवान श्रीराम, ऋषि-मुनि, यक्ष, विद्याधर, सिद्धगण, पितर, दैत्य, राक्षस, पिशाच, किन्नर आदि विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों का पूजन करते आए हैं। जहां शिवलिंग की उपासना से देवताओं को स्वर्ग का राज्य, कुबेर को लंका का निवास, मन के समान वेगशाली पुष्कर विमान, लोकपाल का पद तथा राज्य-सम्पत्ति प्राप्त हुई; मार्कण्डेय, लोमश आदि ऋषियों को दीर्घ आयु, ज्ञान आदि की प्राप्ति हुई; वहीं पृथ्वी पर राजाओं ने शिवपूजन से अष्ट सिद्धि नवनिधि के साथ चक्रवर्ती साम्राज्य प्राप्त किया । इसलिए लिंग के रूप में सदैव भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए । लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु व ऊपरी भाग में प्रणव रूप में भगवान शिव विराजमान रहते हैं । लिंग की वेदी पार्वती हैं और लिंग महादेव हैं । जो वेदी के साथ लिंग की पूजा करता है उसने शिव और पार्वती का पूजन कर लिया ।
देवताओं के द्वारा विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों का पूजन
ब्रह्माजी की आज्ञा से विश्वकर्मा ने विभिन्न पदार्थों से शिवलिंगों का निर्माण कर देवताओं को दिए ।
किस देवता ने की किस प्रकार के शिवलिंग की पूजा
- विष्णु ने सदा नीलकान्तमणि (नीलम) से बने लिंग की पूजा की;
- इन्द्र ने पद्मरागमणि (पुखराज) से निर्मित लिंग की;
- कुबेर ने सोने के लिंग की;
- विश्वेदेवों ने चांदी के शिवलिंग की;
- वसुओं ने चन्द्रकान्तमणि से बने लिंग की;
- वायु ने पीतल से बने लिंग की;
- अश्विनीकुमारों ने मिट्टी से बने लिंग की;
- वरुण ने स्फटिक के लिंग की;
- आदित्यों ने तांबे से बने लिंग की;
- सोमराट् ने मोती से बने लिंग की
- अनन्त आदि नागों ने प्रवाल (मूंगा) निर्मित लिंग की;
- दैत्यों और राक्षसों ने लोहे से बने लिंग की;
- चामुण्डा आदि सभी मातृशक्तियों ने बालू से बने लिंग की;
- यम ने मरकतमणि (पन्न) से बने लिंग की;
- रुद्रों ने भस्मनिर्मित लिंग की;
- लक्ष्मी ने लक्ष्मीवृक्ष बेल से बने लिंग की;
- गुह ने गोयम (गोबर) लिंग की;
- मुनियों ने कुश के अग्रभाग से निर्मित लिंग की;
- वामदेव ने पुष्पलिंग की;
- सरस्वती ने रत्नलिंग की;
- मन्त्रों ने घी से निर्मित लिंग की;
- वेदों ने दधिलिंग की; और
- पिशाचों ने सीस से बने लिंग की पूजा की ।
विभिन्न प्रकार के शिवलिंग की पूजा का फल
सुन्दर घर, बहुमूल्य आभूषण, सुन्दर पति/पत्नी, मनचाहा धन, अपार भोग और स्वर्ग का राज्य—ये सब शिवलिंग की पूजा के फल हैं । शिवोपासना करने वाले मनुष्य की न तो अकालमृत्यु होती है और न सर्दी या गर्मी आदि से ही उसकी मृत्यु होती है । लिंग विभिन्न वस्तुओं से बनाए जाते हैं और उनके पूजन का फल भी अलग होता है अत: अपनी मनोकामना के अनुसार शिवलिंग का चयन कर पूजन करना चाहिए ।
- दो भाग कस्तूरी, चार भाग चंदन तथा तीन भाग कुंकुम से गंध लिंग बनाया जाता है । इसकी पूजा से शिव सायुज्य की प्राप्ति होती है ।
- सुगन्धित पुष्पों से पुष्प लिंग बनाकर पूजा करने से राज्य की प्राप्ति होती है ।
- बालु से ‘बालुकामय लिंग’ बनाकर पूजन करने से व्यक्ति शिव सायुज्य पाता है ।
- आरोग्य लाभ के लिए मिश्री से ‘सिता खण्डमय लिंग’ का निर्माण किया जाता है ।
- हरताल, त्रिकटु को लवण में मिलाकर ‘लवणज लिंग बनाया जाता है। यह वशीकरण करने वाला और सौभाग्य देने वाला है ।
- भस्ममय लिंग सर्वफल प्रदायक माना गया है ।
- जौ, गेहूँ और चावल के आटे का बने यव गोधूम शालिज लिंग के पूजन से स्त्री, पुत्र तथा श्री सुख की प्राप्ति होती है ।
- तिल को पीस कर तिलपिष्टोत्थ लिंग बनाया जाता है । यह मनोकामना पूर्ण करता है ।
- गुडोत्थ लिंग प्रीति में बढ़ोतरी करता है ।
- वंशांकुर निर्मित लिंग बांस के अंकुर से बनाया जाता है । इससे वंश बढ़ता है ।
- केशास्थि लिंग शत्रुओं का नाश करता है ।
- दूध, दही से बने शिवलिंग का पूजन कीर्ति, लक्ष्मी और सुख देता है ।
- रत्ननिर्मित लिंग लक्ष्मी प्रदान करने वाला है ।
- पाषाण लिंग समस्त सिद्धियों को देने वाला है ।
- धातुनिर्मित लिंग धन प्रदान करता है ।
- काष्ठ लिंग भोगसिद्धि देने वाला है ।
- दूर्वा से बना लिंग अकालमृत्यु का नाश करता है ।
- कर्पूरज लिंग मुक्ति देने वाला है ।
- मौक्तिक लिंग सौभाग्य देने वाला है ।
- स्वर्ण लिंग महामुक्तिप्रद है ।
- धान्यज लिंग धान्य देने वाला है ।
- फलोत्थ लिंग फलप्रद है ।
- नवनीत लिंग कीर्ति और सौभाग्य देने वाला है ।
- धात्रीफल (आंवला) से बना लिंग मुक्ति देने वाला है।
- पीतल और कांसे का लिंग मुक्ति देने वाला है ।
- सीसे का लिंग शत्रुनाशक है ।
- अष्टधातुज लिंग सर्वसिद्धि देने वाला है ।
- स्फटिक लिंग सर्वकामप्रद होता है ।
- मिट्टी से बना पार्थिव लिंग सभी सिद्धियों को देने वाला और शिवसायुज्य को देने वाला है ।
- पारद लिंग का सबसे अधिक माहात्म्य है। ‘पारद’ शब्द में प=विष्णु, आ=कालिका, र= शिव, द= ब्रह्मा—ये सब स्थित होते हैं। पारदलिंग की एक बार भी पूजा करने से धन, ज्ञान, सिद्धि और ऐश्वर्य मिलते हैं ।
- नर्मदा नदी के सभी कंकर ‘शंकर’ माने गए हैं। इन्हें नर्मदेश्वर या बाणलिंग भी कहते हैं। लिंगार्चन में बाणलिंग का अपना अलग ही महत्व है। यह हर प्रकार के भोग व मोक्ष देने वाला है।
कलियुग में इन चीजों से बने शिवलिंग की पूजा का है निषेध
तांबा, सीसा, रक्तचंदन, शंख, कांसा, लोहा—इनसे बने लिंगों की पूजा कलियुग में वर्जित है ।
अपनी कामना के अनुसार करें शिवलिंग का चयन
शिव की उपासना में जहां रत्नों व मणियों से बने लिंगों की पूजा में अपार वैभव देखने को मिलता है, वहीं मिट्टी से शिवलिंग बनाकर केवल, जल, चावल और बिल्वपत्र अर्पित कर देने व ‘बम-बम भोले’ कहने से ही शिव कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है।
औढरदानी उदार अपार जु नैक सी सेवा तें ढुरि जावैं।
दमन अशान्ति, समन संकट विरद विचार जनहिं अपनावै ।।
ऐसे कपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहिं चलि जावैं ।
बड़भागी नरनारि सोई जो साम्ब सदाशिव को नित ध्यावैं ।। (शिवाष्टक)