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काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है

‘काशी’ इस शब्द का अर्थ है—जहां शिवस्वरूप ब्रह्मज्योति प्रकाशित होती है । माना जाता है कि यहां देह-त्याग के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी के कान में तारक-मंत्र सुनाते हैं, उससे जीव को तत्त्वज्ञान हो जाता है और उसके सामने शिवस्वरूप ब्रह्म प्रकाशित हो जाता है । ब्रह्म में लीन होना ही अमृत पद प्राप्त कर लेना या मोक्ष है ।

देवों के देव भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनके अर्थ

भगवान से ज्यादा उनके नाम में शक्ति होती है । आज की आपाधापी भरी जिंदगी में यदि पूजा-पाठ के लिए समय न भी मिले; तो यदि केवल भगवान के नामों का पाठ कर मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है । यह सम्पूर्ण संसार भगवान शिव और उनकी शक्ति शिवा का ही लीला विलास है । पुराणों में भगवान शिव के अनेक नाम प्राप्त होते हैं ।

भगवान शिव के पार्थिव पूजन की सरल विधि

कलियुग में पार्थिव शिवलिंगों की पूजा करोड़ों यज्ञों का फल देने वाली है । भगवान शिव का किसी पवित्र स्थान पर किया गया पार्थिव पूजन भोग और मोक्ष दोनों देने वाला है । पार्थिव पूजन करने का अधिकार स्त्री व सभी जातियों के लोगों को है ।

भगवान शिव के पूजन के लिए स्तुति एवं प्रार्थनाएं

आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में यदि भगवान शिव की पूजा के लिए समय न निकाल पाएं तो केवल मन के भावों को शब्दों में व्यक्त करके भी भगवान आशुतोष शिव को प्रसन्न किया जा सकता है । जानें, भगवान शिव की कुछ स्तुतियां ।

कर्मों की गति न्यारी : जुआरी बन गया त्रिलोक पति

यमराज सोचने लगे—‘अब यह नरक नहीं जायगा, अब तो यह इन्द्र ही होगा क्योंकि इस बार तो इसने विधिवत् पूरा इन्द्रलोक ही दान कर दिया है ।’ उसी पुण्य के प्रभाव से वही जुआरी अगले जन्म में महान भक्त प्रह्लाद का पौत्र राजा बलि हुआ ।

अक्षय फल देने वाली तिथि है सोमवती अमावस्या

यदि अमावस्या भगवान शिव को अति प्रिय सोमवार के दिन हो तो उसे ‘सोमवती अमावस्या’ या ‘सोमोती मावस’ कहते हैं । इस दिन किए गए छोटे-छोटे पुण्य-कार्यों से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है और मनुष्य का भाग्योदय होकर दु:ख के बादल सुख की वर्षा में बदल जाते हैं ।

केदारनाथ जहां आज भी इन्द्र नित्य शिवपूजन के लिए आते हैं

इन्द्र ने कहा—‘भगवन् ! मैं प्रतिदिन स्वर्ग से यहां आकर आपकी पूजा करुंगा और इस कुण्ड का जल भी पीऊंगा । आपने महिष के रूप में यहां आकर ‘के दारयामि’ कहा है, इसलिए आप केदार नाम से प्रसिद्ध होंगे ।’

भगवान शिव मस्तक पर चन्द्रमा और गले में मुण्डमाला क्यों धारण...

भगवान शिव के चन्द्रकला व मुण्डमाला धारण करने का गूढ़ रहस्य है । चन्द्रकला धारण करने का कारण है कि उनके ललाट की ऊष्मा, जो त्रिलोकी को भस्म करने में सक्षम हैं, उन्हें पीड़ित न करे । शिव का मुण्डमाल मरणशील प्राणी को सदैव मृत्यु का स्मरण कराता है जिससे वह दुष्कर्मों से दूर रहे।

किस कामना के लिए करें कौन से पुष्प से शिव पूजा

भगवान शिव की पूजा के पुष्प भगवान शिव पर फूल चढ़ाने का विशेष महत्व है । बिल्व पत्र और...

शिव पूजन में बम बम भोले क्यों कहते हैं ?

शिव पूजा चाहें वह श्रावण मास में करें या नित्य, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा के अंत में गाल बजाकर ‘बम बम भोले’ या ‘बोल बम बम’ का उच्चारण किया जाता है ।