shani dev bhagwan shiv

शनिपीड़ा से मुक्ति के लिए करें इन तीन नामों का जाप

गाधिश्च कौशिकश्चैव पिप्पलादो महामुनि: ।
शनैश्चर कृतां पीडां नाशयन्ति स्मृतास्त्रय: ।। (शिवपुराण, शतरुद्रसंहिता 25।20)

अर्थात्—मुनि गाधि, कौशिक और पिप्पलाद—इन तीनों का नाम स्मरण करने से शनिग्रह की पीड़ा दूर हो जाती है ।

मुनि पिप्पलाद के नाम-स्मरण से क्यों दूर होती है शनिपीड़ा ?

महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी सुवर्चा महान शिभक्त थे । शिवजी के ही आशीर्वाद से महर्षि दधीचि की अस्थियां वज्र के समान हो गयी थीं । महर्षि और उनकी पत्नी की शिवभक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनके यहां ‘पिप्पलाद’ नाम से अवतार धारण किया ।

वृत्रासुर आदि दैत्यों से पराजय के बाद देवतागण महर्षि दधीचि के आश्रम पर उनकी अस्थियां मांगने गए क्योंकि उनकी अस्थियां शिवजी के तेज से युक्त थी जिससे वे वज्र का निर्माण कर दैत्यों को हराना चाहते थे । उन्होंने किसी कार्य के बहाने उनकी पत्नी सुवर्चा को दूसरे आश्रम में भेज दिया । महर्षि ने ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए अपने प्राणों को खींचकर शिवतेज में मिला दिया और देवताओं ने उनकी अस्थियों से वज्र बनाकर दैत्यों पर विजय प्राप्त की । चारों तरफ सुख-शान्ति छा गयी ।

महर्षि की पत्नी जब आश्रम वापिस आईं तो सारी बात जानकर सती होने लगीं तब आकाशवाणी हुई—‘तुम्हारे गर्भ में महर्षि दधीचि का ब्रह्मतेज है जो भगवान शंकर का अवतार है । उसकी रक्षा आवश्यक है ।’

आकाशवाणी सुनकर सुवर्चा पास ही में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गयीं और एक दिव्य बालक को जन्म दिया । सुवर्चा ने शिवावतार उस बालक की स्तुति करते हुए कहा—

‘हे परमेश्वर ! तुम इस पीपल के वृक्ष के नीचे चिरकाल तक स्थित रहो और सभी प्राणियों के लिए सुखदाता होओ ।’ ऐसा कहकर वे सती हो गयीं ।

सभी देवताओं ने साक्षात् शिव का अवतार जानकर उस बच्चे के संस्कार किए और ब्रह्माजी ने उसका नाम रख दिया ‘पिप्पलाद’

पिप्पलाद’ का अर्थ

शिव का अवतार यह बालक पीपल वृक्ष के नीचे अवतरित हुआ, माता की आज्ञा से पीपल वृक्ष के नीचे रहा, पीपल के पत्तों का ही भोजन किया तथा पीपल वृक्ष के मूल में रहकर तपस्या की । इसलिए इनके जीवन में पीपल वृक्ष का ही प्रमुख स्थान रहा ।

पिप्पलाद के कष्टमय बचपन का कारण शनिपीड़ा

महामुनि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा कि क्या कारण है कि मेरे जन्म से पूर्व ही मेरे पिता दधीचि मुझे छोड़कर चले गए और जन्म होते ही माता भी सती हो गयीं ?

देवताओं ने मुनि पिप्पलाद को बताया कि उनके बाल्यकाल के कष्टों का कारण शनि की क्रूर दृष्टि (प्रकोप) है । शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही उनके बचपन में ऐसा कुयोग बना था ।

पिप्पलाद को यह बात चुभ गई कि शनि में इतना अंहकार है कि वह नवजात शिशुओं तक को नहीं छोड़ते, इसका दंड तो शनि को भुगतना पड़ेगा । घोर तपस्वी पिप्पलाद ने तीनों लोकों में शनि को ढूंढना प्रारम्भ कर दिया । एक दिन अकस्मात् उन्हें पीपल वृक्ष पर शनि के दर्शन हो गए । मुनि ने तुरन्त अपना ब्रह्मदण्ड उठाया और उसका प्रहार शनि पर कर दिया ।  शनि यह भीषण प्रहार सहन करने में असमर्थ थे और वे नक्षत्र-मण्डल (आकाश) से गिर गए । वह भागने लगे किंतु कही मार्ग ही न मिलता था । ब्रह्मदण्ड ने उनका तीनों लोकों में पीछा करना शुरू किया । जहां जाते ब्रह्मदण्ड आता दिख जाता । तब शनिदेव ब्रह्माजी के पास गए । ब्रह्माजी ने सुझाव दिया कि भगवान शिव ही इससे रक्षा कर सकते हैं । शनिदेव ने भागकर शिवजी की शरण ली ।

भगवान शिव ने पिप्पलाद को समझाया—शनि ने सृष्टि के नियमों का पालन किया है, इसमें शनि का कोई दोष नहीं है । शिवजी के कहने पर पिप्पलाद ने शनि को क्षमा कर दिया । पिप्पलाद ने ब्रह्मदण्ड की मारक क्षमता कम कर दी और ब्रह्मदण्ड शनि के पैर पर प्रहार करके लौट गया । शनिदेव नक्षत्र-मण्डल में पहले की तरह स्थित हो गए । उस दिन से शनिदेव पिप्पलाद से भयभीत रहने लगे ।

शनिपीड़ा की शांति के लिए पीपल क्यों उपयोगी है ?

शनि ने वचन दिया कि वह चौदह वर्ष तक की आयु के जातकों को अपनी साढ़ेसाती से मुक्त रखेंगे ।

पिप्पलाद ने कहा—जो व्यक्ति इस कथा का ध्यान करते हुए पीपल के नीचे शनिदेव की पूजा करेगा, उसके शनिजन्य कष्ट दूर हो जाएंगे ।

इसलिए मुनि पिप्पलाद के नाम-स्मरण करने (जो भगवान शंकर का ही रूप है) तथा पीपल का पूजन करने से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है ।

पिप्पलाद ने राजा अनरण्य की पुत्री पद्मा से विवाह किया । शिवपुराण में कहा गया है—

पिप्पलादस्य चरितं पद्माचरित संयुतम् ।
य: पठेच्छृणुयाद् वापि सुभक्त्या भुवि मानव: ।।
शनिपीड़ा विनाशार्थमेतच्चरितमुत्तमम् । (शिवपुराण शतरुद्रसंहिता 25।21-22)

अर्थात—जो मनुष्य महामुनि पिप्पलाद तथा उनकी पत्नी पद्मा के चरित्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है उसकी शनि की पीड़ा का नाश हो जाता है ।

शनिपीड़ा से मुक्ति पाने के लिए पीपल की उपासना

पीपल की उपासना शनिजन्य कष्टों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है । प्रमुख उपाय है—

  • पिप्पलेश्वर महादेव की अर्चना शनिजनित कष्टों से मुक्ति दिलाती है ।
  • शिवपुराण में कह गए इस पिप्पलाद श्लोक का या केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि की पीड़ा शान्त हो जाती है ।
  • पीपल की सेवा प्रत्येक शनिवार करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं । शनि की साढ़ेसाती और ढैया के प्रभाव से बचने के लिए हर शनिवार को पीपल के पेड़ पर गुड़, दूध मिश्रित जल चढ़ाएं । फिर पीपल की सात बार परिक्रमा करें । शाम को सरसों के तेल का दीपक जलाएं । ये नियम करने से शनि के सभी दोषों से मुक्ति मिलती है ।
  • शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और 7 परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसों के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here