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कर्मफलदाता शनिदेव : एक परिचय

शनिदेव का रंग काला, अवस्था वृद्ध, आकृति दीर्घ, लिंग नपुंसक, वाहन गिद्ध, वार शनिवार, धातु लोहा, रत्न नीलम, उपरत्न जमुनिया या लाजावर्त, जड़ी बिछुआ, बिच्छोलमूल (हत्था जोड़ी) व समिधा शमी है ।

राजा नल को कैसे मिली शनि पीड़ा से मुक्ति ?

नवग्रहों में शनि को दण्डनायक व कर्मफलदाता का पद दिया गया है । यदि कोई अपराध या गलती करता है तो उनके कर्मानुसार दण्ड का निर्णय शनिदेव करते हैं । वे अकारण ही किसी को परेशान नहीं करते हैं, बल्कि सबको उनके कर्मानुसार ही दण्ड का निर्णय करते हैं ।

शनिपीड़ा से मुक्ति के लिए करें इन तीन नामों का जाप

शनि ने वचन दिया कि वह चौदह वर्ष तक की आयु के जातकों को अपनी साढ़ेसाती से मुक्त रखेंगे । पिप्पलाद ने कहा—जो व्यक्ति इस कथा का ध्यान करते हुए पीपल के नीचे शनिदेव की पूजा करेगा, उसके शनिजन्य कष्ट दूर हो जाएंगे ।

शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है ?

हनुमानजी रामसेतु की दौड़कर प्रदक्षिणा करने लगे । इससे उनकी विशाल पूंछ, जिसमें शनिदेव बंधे हुए थे, वानर व भालुओं द्वारा रखे गये बड़े-बड़े पत्थरों से टकराने लगी । बजरंगबली बीच-बीच में अपनी पूंछ को पत्थरों पर पटक भी देते थे ।

शनिदेव की दृष्टि क्रूर क्यों है?

शनिदेव की क्रूर दृष्टि से क्यों हुआ श्रीगणेश का मस्तक छिन्न ?

शनि की पीड़ा से मुक्ति का सबसे प्रभावशाली उपाय

शनिदेव को प्रसन्न करने का प्रभावशाली उपाय जिसको करने से मिलती है शनिदोष से मुक्ति

शनिदेव की दृष्टि में कौन-से कार्य हैं अपराध

‘जाको प्रभु दारुण दु:ख देहीं, ताकी मति पहले हरि लेहीं’ जिस व्यक्ति को शनिदेव को दण्ड देना होता है, पहले उसकी बुद्धि हर लेते हैं।