सूर्य और चन्द्र ग्रहण : क्या करें, क्या न करें
ग्रहणकाल में जो अशुद्ध परमाणु होते हैं, कुशा डालने से डाली हुई वस्तु पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता है । इसलिए ग्रहण में जल और खाद्य-पदार्थों पर कुशा डालने से वे दूषित नहीं होते हैं । शास्त्रों में कुशा के आसन पर बैठकर भजन व योगसाधना का विधान है ।
गायत्री मन्त्र के द्रष्टा महर्षि विश्वामित्र
महर्षि विश्वामित्र के समान पुरुषार्थी ऋषि शायद ही कोई और हो l वे अपनी सच्ची लगन, पुरुषार्थ और तपस्या के बल पर क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बने । ब्रह्माजी ने बड़े आदर से इन्हें ब्रह्मर्षि पद प्रदान किया । सप्तर्षियों में अग्रगण्य हुए और वेदमाता गायत्री के द्रष्टा ऋषि हुए ।
छाता और जूता दान करने की प्रथा कैसे शुरु हुई ?
भगवान सूर्य ने महर्षि को शीघ्र ही छाता और जूता (उपानह)—ये दो वस्तुएं प्रदान कीं और कहा—‘यह छत्र मेरी किरणों का निवारण करके मस्तक की रक्षा करेगा तथा ये जूते पैरों को जलने से बचाएंगे । आज से ये दोनों वस्तुएं जगत में प्रचलित होंगी और पुण्य के अवसरों पर इनका दान अक्षय फल देने वाला होगा ।’
जप योग
शास्त्रों में भी यज्ञों की अपेक्षा जप-यज्ञ को श्रेष्ठ बतलाया गया है । इसमें तो चाहे बालक हो, चाहे बूढ़ा, चाहे स्त्री हो या पुरुष, सभी को जप करने का समान अधिकार है । जानें, जप कितने प्रकार का होता है ?
भद्रा कौन है और इसमें कौन-से कार्य करने का निषेध है...
एक पौराणिक कथा के अनुसार दैत्यों से पराजित देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर के शरीर से गर्दभ (गधे) के समान मुख वाली, कृशोदरी (पतले पेट वाली), पूंछ वाली, मृगेन्द्र (हिरन) के समान गर्दन वाली, सप्त भुजी, शव का वाहन करने वाली और दैत्यों का विनाश करने वाली भद्रा उत्पन्न हुई ।
श्रीजीवगोस्वामी विरचित मधुर रस से पूर्ण ‘युगलाष्टक’
श्रीजीवगोस्वामी का श्रीप्रिया-प्रियतम युगलसरकार के चरणों में परम अनुराग था । रामरस अर्थात् श्रृंगाररस के आप उपासक थे । परम वैरागी श्रीजीव गोस्वामी की भक्ति-भावना का कोई पार नहीं है । इनकी सेवा में चारों ओर से अपार धन आता किन्तु वे उस धन को यमुनाजी में फेंक देते थे । श्रीजीव गोस्वामी मूर्धन्य विद्वान समझे जाते थे ।
देवता और पितर दोनों को क्यों प्रिय हैं तिल ?
माघी पूर्णिमा के दिन कांस्य पात्र में तिल भरकर इस भावना से दान करें कि ‘मां इन तिलों की संख्या से अधिक दु:ख तुमने मेरे लिए सहन किए हैं । अत: इस तिलपात्र के दान से मैं तुम्हारे मातृ-ऋण से उऋण हो जाऊं ।’
इस प्रकार इस दिन माता के निमित्त जो भी कुछ दान दिया जाता है, वह अक्षय हो जाता है ।
देवी सरस्वती की पूजाविधि और मन्त्र
देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं और शब्द-ब्रह्म के रूप में इनकी उपासना की जाती है । विद्या को ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धन माना गया है । देवी सरस्वती की पूजा-उपासना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी (बसंत पंचमी) तिथि निर्धारित की गयी है ।
नेत्ररोग दूर करने की रामबाण उपासना ‘चाक्षुषी विद्या’
चाक्षुपोनिषद् सभी प्रकार के नेत्ररोगों को शीघ्र समाप्त करने वाला और नेत्रों को तेजयुक्त करने वाला चमत्कारी मन्त्र है । यह केवल पाठ करने से ही सिद्ध हो जाता है । इसे ‘चाक्षुपोनिषद्’, ‘चक्षुष्मती विद्या’, या ‘चाक्षुषी विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है।
चन्द्रमा की प्रसन्नता के लिए चान्द्रायण व्रत
कुण्डली में कमजोर चन्द्रमा को ठीक करने, पापों के नाश, किसी प्रायश्चित के लिए और चन्द्रलोक की प्राप्ति के लिए करें ‘चान्द्रायण’ व्रत ।