अन्य देवताओं की तरह ब्रह्माजी की पूजा क्यों नहीं की जाती...

भगवान ब्रह्मा त्रिदेवों में सबसे पहले आते हैं । ये लोकपितामह होने के कारण सभी के कल्याण की कामनाकरते हैं क्योंकि सभी इनकी प्रजा हैं । देवी सावित्री और सरस्वतीजी के अधिष्ठाता होने के कारण ज्ञान, विद्या व समस्त मंगलमयी वस्तुओं की प्राप्ति के लिए इनकी आराधना बहुत फलदायी है । वे ही ‘विधाता’ कहलाते हैं ।

कलियुग केवल नाम अधारा

सभी मुनिगण वेदव्यासजी के आश्रम में पहुंचे और उनसे बोले—‘हम यह जानना चाहते हैं कि आपने स्नान करते समय ‘कलि तुम धन्य हो’, ‘कलि तुम साधु हो’—ऐसा कहकर कलियुग का गुणगान क्यों किया ?’

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है । प्रत्येक नाम का अर्थ वह परमात्मा ही है। भगवान विविध नामों में और विचित्र रूपों में अवतीर्ण होकर विचित्र भाव और रस के खेल खेलकर माया से मोहित सांसारिक जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते है और उनको सब प्रकार के दुखों से मुक्त करके अपना परमानन्द देने का प्रयास करते हैं । इससे अधिक उनकी करुणा का परिचय क्या हो सकता है ?

विभिन्न प्रकार की सिद्धियां और उनके लक्षण

मनुष्य सिद्धि प्राप्ति के लिए अनेक कष्ट सहकर विभिन्न उपाय करता है परन्तु भगवान श्रीकृष्ण उद्धवजी को कहते हैं कि जो मुझ एक परमात्मा को अपने हृदय में धारण करता है, सब सिद्धियां उसके चरणतले आ जाती हैं और चारों मुक्तियां उसकी दासी बन कर सदैव उसके पास रहती हैं ।

दीपावली पर्व पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय

दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ सभी देवताओं का पूजन कर उन सबका अपने घर में शयन का प्रबन्ध करना चाहिए जिससे वे लक्ष्मीजी के साथ वहीं निवास करें । नयी शय्या, नया बिस्तर व कमल आदि से सजा कर लक्ष्मीजी को घर में स्थिरभाव से निवास करने की प्रार्थना करनी चाहिए। इससे लक्ष्मी घर में स्थिर रूप से निवास करती हैं ।

धनत्रयोदशी : समृद्धि की कामना का प्रथम दिन

लक्ष्मीजी दीपक की ज्योति में लीन होकर चारों दिशाओं में फैल गईं और भगवान विष्णु देखते ही रह गये । दूसरे दिन तेरस को किसान ने लक्षमीजी के बताये अनुसार ही कार्य किया । उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया । अब तो किसान हर साल तेरस को लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा । और यह तिथि ‘धनतेरस’ कहलाने लगी ।

अकाल मृत्यु से मुक्ति का पर्व है धनतेरस

धनतेरस का सम्बन्ध यमराज से है । यमुनाजी यमराज की बहन हैं इसलिए इस दिन यमुना-स्नान का भी विशेष महत्व है और प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है ।

दीपावली को लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी व अन्य देवी-देवताओं की पूजा...

जानें, क्यों कार्तिक कृष्ण अमावस्या—दीपावली के दिन शुभ मुहुर्त में देवी महालक्ष्मी के साथ गणेशजी और अन्य देवी-देवताओं जैसे—शंकरजी, हनुमानजी, दुर्गाजी, सरस्वतीजी आदि की मिट्टी की नयी प्रतिमाओं का विशेष पूजन किया जाता है ।

मन्दिर में ध्वजा क्यों चढ़ाई जाती है और क्या है उसका...

प्राय: लोग किसी मनोकामना पूर्ति के लिए हनुमानजी या देवी के मन्दिर में ध्वजा लगाने की मन्नत रखते हैं । हनुमानजी व देवी की पूजा बिना ध्वजा-पताका के पूरी नहीं होती है । देवी का तो पौषमास की शुक्ल नवमी को ध्वजा नवमी व्रत होता है जिसमें उनको ध्वजा अर्पण की जाती है ।

पितरों की शान्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथि है सर्वपितृ अमावस्या

श्राद्ध के द्वारा पितृ-ऋण उतारना आवश्यक है । पितृ ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्चा भी नहीं है । केवल वर्ष में एक बार पितृ पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि पर या अमावस्या को, आसानी से सुलभ जल, तिल, जौ, कुशा और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध और तर्पण करें और गो-ग्रास देकर अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से पितृ ऋण उतर जाता है ।