चहल पहल हो रही यात्री नहा रहे हैं,
कोई गंगाजी में दीपक बहा रहे हैं,
मारें डुबकी ‘हर हर गंगे’ बोल रहे हैं,
फूल-बताशे और नारियल अर्पण करके,
मन ही मन निज मनोकामना कह रहे हैं,
सजी-धजी नववधू-सरीखी सुघर किश्तियां,
थिरक रही हैं गंगाजी के आंचल में,
नावों में भंग घोंटकर, विश्वनाथ का,
भोग लगाते भक्त, छानकर गंगाजल में,
लक्कड़ वाले बाबा बैठे ताप रहे हैं,
पंडा जिजमानों की अंटी नाप रहे हैं,
कोई बना रहे रेती में दाल-बाटियां,
कोई गंगाजल में सत्तू घोल रहे हैं,
वेद शास्त्रों द्वारा वंदित गंगामाई,
वाल्मीकि-तुलसी-रवीन्द्र ने महिमा गाई ।। (हास्यकवि श्रीकाका हाथरसी)
कैसा सुन्दर और सजीव वर्णन है किया है कवि ने गंगाजी का ।
दस प्रकार के पापों के नाश का पर्व है ‘गंगा दशहरा’
ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता ।
हरते दश पापानि तस्माद् दशहरा स्मृता ।। (ब्रह्मपुराण)
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि ‘गंगा दशहरा’ कहलाती है । यह पृथ्वी पर गंगा के अवतरण की मुख्य तिथि मानी जाती है । इस दिन विशेष रूप से गंगास्नान, गंगा-पूजन, दान तथा गंगाजी के स्तोत्रपाठ करने का विशेष महत्त्व है । इससे दस प्रकार के पापों (तीन प्रकार के कायिक, चार प्रकार के वाचिक तथा तीन प्रकार के मानसिक पापों) का नाश होता है इसलिए इसे ‘दशहरा’ कहते हैं ।
दस प्रकार के पाप
तीन प्रकार के शारीरिक (कायिक) पाप
- बिना दिए हुए दूसरे की वस्तु लेना,
- हिंसा करना,
- परस्त्रीगमन करना,
चार प्रकार के वाचिक पाप
- कड़वा बोलना,
- झूठ बोलना,
- किसी का दोष बताना, चुगली करना,
- बेकार की अनाप-शनाप बातें करना,
तीन प्रकार के मानसिक पाप
- दूसरे के धन को हड़पने की सोचना,
- मन से दूसरे का बुरा सोचना,
- नास्तिक बुद्धि रखना ।
गंगा दशहरा के दस शुभ योग
ज्येष्ठमास, शुक्लपक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या के चंद्र व वृष के सूर्य—इन दसों के योग में जो मनुष्य गंगा स्नान करता है वो सब पापों से छूट जाता है ।
कैसे करें गंगा में स्नान ?
गंगाजी में स्नान करते समय शरीर को बिना मले (बिना साबुन या मुल्तानी मिट्टी लगाए) गंगाजल में सीधे डुबकी लगाएं और मन में यह धारणा करें कि भगवान विष्णु के चरणों से निकले ब्रह्मद्रव रूपी अमृत से साक्षात् मिलन हो रहा है । स्नान के बाद शरीर को पोंछना नहीं चाहिए क्योंकि शरीर से जो जल गिरता है वह अन्य योनियों में गए हुए पितरों को मिलता है । यदि बीमारी के कारण शरीर पोंछना आवश्यक हो तो गीले गमछे से पोंछ कर उसे निंचोड़ देना चाहिए । वह जल भी पितरों को तृप्त करता है ।
पूजाविधि व मन्त्र
इस दिन गंगाजी या किसी भी पवित्र नदी पर जाकर पूजा एवं तर्पण करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है । दशहरे के दिन मनुष्य को गंगाजी की दस प्रकार के फूलों, दस प्रकार की गन्ध (चंदन, रोली, अष्टगंध), दस प्रकार के नैवेद्य (भोग), दस ताम्बूल और दस दीपों से पूजा करनी चाहिए । इसके बाद इस मन्त्र की एक माला (108 बार या 11, 21, 31 बार, जितना हो सके) करनी चाहिए—
गंगाजी का मन्त्र है—‘ॐ नमो दशहरायै नारायण्यै गंगायै नम: ।’
गंगाजी के बारह (द्वादश) नाम
वैसे तो गंगा दशहरा को गंगाजी में स्नान का माहात्म्य है किन्तु आजकल की व्यस्त जिंदगी में यदि गंगातट या किसी नदी पर नहीं जा पाएं तो घर पर ही स्नान करते समय इन बारह नामों का स्मरण कर लिया जाए तो उस जल में गंगाजी का वास हो जाता है । ये बारह नाम हैं—
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा ।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी ।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी ।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशये ।।
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम् ।। (आचारप्रकाश)
गंगाजी को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र
ऊँ नम: शिवायै गंगायै शिवदायै नमोऽस्तु ते ।
नमस्ते विष्णुरूपिण्यै गंगायै ते नमो नम: ।।1।।
सर्वदेवस्वरूपिण्यै नमो भेषजमूर्तये ।
सर्वस्य सर्वव्याधीनां भिषक् श्रेष्ठे नमोऽस्तु ते ।।2।।
स्थाणुजंगमसम्भूतविषहन्त्रि नमोऽस्तु ते ।
संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमो नम: ।।3।।
तापत्रितयहन्त्र्यै च प्राणेश्वर्यै नमो नम: ।
शान्त्यै संतापहारिण्यै नमस्ते सर्वमूर्तये ।।4।।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नम: पापविमुक्तये ।
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भोगवत्यै नमो नम: ।।5।।
मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नम: ।
नमस्त्रैलोक्यमूर्त्तायै त्रिपथायै नमो नम: ।।6।।
नमस्ते शुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नम: ।
त्रिदशाशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमोऽस्तु ते ।।7।।
मन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नम: ।
नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नम: ।।8।।
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते ।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नम: ।।9।।
पृथ्व्यै शिवामृतायै च विरजायै नमो नम: ।
परावरगताद्यायै तारायै ते नमो नम: ।।10।।
नमस्ते स्वर्गसंस्थायै अभिन्नायै नमो नम: ।
शान्तायै च प्रतिष्ठायै वरदायै नमोऽस्तु ते ।।11।।
उग्रायै मुखजल्पायै संजीवन्यै नमोऽस्तु ते ।
ब्रह्मगायै ब्रह्मदायै दुरितघ्न्यै नमो नम: ।।12।।
प्रणतार्तिप्रभंजिन्यै जगन्मात्रे नमो नम: ।
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमोऽस्तु ते ।।13।।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मंगलायै नमो नम: ।
परापरे परे तुभ्यं नमो मोक्षप्रदे सदा ।।14।।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।15।।
परापरपरायै च गंगे निर्वाणदायिनि ।
गंगे ममाग्रतो भूया गंगे मे तिष्ठ पृष्ठत: ।।16।।
गंगे मे पार्श्वयोरेधि गंगे त्वय्यस्तु मे स्थिति: ।
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गांगते शिवे ।।17
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि ।
गंगे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नम: शिवे ।।18।।
स्तोत्रपाठ का फल
- इस स्तोत्र का प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य पहले बताये गए दस प्रकार के पापों से छूट जाता है । साथ ही मनुष्य के रोग, सब प्रकार के भय, शत्रु व बंधन दूर हो जाते हैं ।
- इस स्तोत्र को लिखकर जिस घर में इसकी पूजा की जाती है, वहां आग और चोर का भय नहीं रहता है ।
- उस मनुष्य की सब मनोकामना पूरी होती हैं और मृत्यु के बाद वह ब्रह्म में लीन होता है ।
- ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष की हस्त नक्षत्र सहित बुधवार की दशमी तिथि तीनों तरह के पापों को हरती है । उस दशमी के दिन जो कोई गंगाजल में खड़ा होकर इस स्तोत्र को दस बार पढ़ता है, वह दरिद्र हो या असमर्थ, उसे गंगाजी की पूजा करने का फल प्राप्त होता है ।
आजकल कितने ही लोग गंगास्नान तो करते हैं पर गंगा को स्वच्छ और निर्मल रखने का प्रयास नहीं करते हैं । गंगाजी के बढ़ते प्रदूषण पर कितनी सटीक चिन्ता करते हुए ‘नजीर बनारसी’ ने लिखा है—
डरता हूँ रुक न जाए कविता की बहती धारा ।
मैली है जब से गंगा मैला है मन हमारा ।।
श्रद्धाएं चीखती हैं विश्वास रो रहा है ।
खतरे में पड़ गया परलोक का सहारा है ।।