amavasya puja vidhi bhagwan vishnu

अमावस्या और पूर्णिमा ये दोनों पर्वतिथियां हैं । अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में पृथ्वी, चन्द्र और सूर्य तीनों समसूत्र (एक ही लाइन) में होते हैं । अमावस्या में चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में होता है । चन्द्रमा का जो अंश पृथ्वी की ओर होता है, उसमें सूर्य किरण का स्पर्श न होने से उस दिन चन्द्रमा दिखता नहीं है । जब चन्द्रमा क्षीण होकर दिखता नहीं, तब उस तिथि को ‘अमा’ कहते हैं । 

अमावस्या तिथि का महत्व

अमावस्या का महत्व इसलिए है कि सूर्य की सहस्त्र किरणों में प्रमुख अमा नाम की किरण इस दिन चन्द्रमा में निवास करती है । चन्द्रमा मन का स्वामी है । यह मनोबल बढ़ाने और पितरों का अनुग्रह प्राप्त कराने में सबसे ज्यादा सहायक होता है । अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में चन्द्रमा का विशेष प्रभाव पृथ्वी पर होता है जिससे पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के शरीर व मन दोनों ही अस्वस्थ और चंचल हो सकते हैं । इससे बचने के लिए अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में दान-पुण्य व व्रत आदि करने का विधान है ।

अमावस्या यदि सोमवार, भौमवार या गुरुवार व शनिवार को हो तो ऐसे योग में दान-पुण्य, ब्राह्मण-भोजन और व्रत से सूर्यग्रहण के समान फल प्राप्त होता है—

‘अमा सोमे शनौ भौमे गुरुवारे यदा भवेत् ।
तत्पर्वं पुष्करं नाम सूर्यपर्वशताधिकम् ।।

अमावस्या तिथि को किन चीजों का करें दान

अमावस्या के दिन प्रात: स्नान आदि से शुद्ध होकर सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, सोना, व गाय का दान करना चाहिए । इस दिन पितरों का श्राद्ध, ब्राह्मण-भोजन और भगवान के जप-ध्यान का बहुत पुण्य है । 

अमावस्या के दिन पितरों की पूजा विधि

पितरों का पूजन (श्राद्ध, तर्पण आदि) मनुष्य के जीवन में कृपा बरसाने वाला, सुख-शान्ति, धन-समृद्धि व पुत्र-पौत्र देने वाला होता है । प्रत्येक महीने की अमावस्या को और विशेषकर सोमवती अमावस्या को अपने परिवार की सुख-शान्ति के लिए पितरों की पूजा करनी चाहिए । 

इसके लिए किसी शुद्ध स्थान पर जमीन में रोली से सतिया (स्वास्तिक) बनायें और फिर उस पर जल व रोली के छींटे लगाकर पुष्प चढ़ा दें । कुछ मिठाई व दक्षिणा चढ़ावें और नमस्कार करें । इसके बाद एक ब्राह्मण दम्पति को भोजन करा कर तिलक करें व दक्षिणा देकर विदा करें । इस तरह पूजा करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं । 

ब्राह्मण-भोजन की व्यवस्था न हो तो पितरों के आशीर्वाद के लिए चावल, दूध और चीनी (खीर का सामान) ब्राह्मण या निर्धन को दान करें ।

अमावस्या को किए गए श्राद्ध का अन्न कैसे पहुंचता है पितरों को

पितरों के लिए अमावस्या का दिन शुभ माना गया है इसलिए इस तिथि को श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं । लेकिन श्राद्ध का अन्न पितरों को मिलता कैसे है ? इसका उत्तर है—

चन्द्रमा सूर्य से नीचा है; अत: पृथ्वी पर किए गए दान, पुण्य और भोजन के बाष्पयुक्त अंश (भाप रूप में) सूर्य की किरणों से आकर्षित होकर चन्द्रमण्डल में (जहां पितृगण रहते हैं) चले जाते हैं । इसी कारण अमावस्या को पितृ श्राद्धादि करने का विधान किया गया है ।

पितरों का आभार व्यक्त करने के लिए अत्यन्त शुभ तिथि है अमावस्या

नारदविष्णु पुराण के अनुसार बारहों महीनों की अमावस्या को की गयी पितरों की पूजा, ब्राह्मण-भोजन और गौ का दान अत्यन्त पुण्यदायक माना गया है । ज्येष्ठ की अमावस्या को वट-सावित्री व्रत होता है जो अखण्ड सुहाग को देने वाला है । आषाढ़, श्रावण और भाद्रप्रद मास में पितृ श्राद्ध, दान, होम और देवपूजा करने का अक्षय फल होता है । आश्विन की अमावस्या को गंगाजी के जल में या गयाजी में पितरों का श्राद्ध-तर्पण करने का अधिक महत्व है । कार्तिक की अमावस्या को देवमन्दिर, घर, नदी, बगीचे, गौशाला व बाजार में दीपदान व लक्ष्मीजी का पूजन करना चाहिए । इस दिन गौओं के सींग रंग कर उनकी पूजा की जाती है । मार्गशीर्ष मास में भी श्राद्ध कर्म करना चाहिए किन्तु पौष, माघ व फाल्गुन मास में अमावस्या को किया गया श्राद्ध व ब्राह्मण-भोजन गया में किए गए श्राद्ध-तर्पण से भी अधिक फल देने वाला माना गया है ।

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