मथुरा नगरी को तीन लोक से न्यारा कहा गया है; क्योंकि यहां मृत्यु के देवता यमराज जिन्हें ‘धर्मराज’ भी कहते हैं, का मंदिर है । पूरे कार्तिक मास कार्तिक-स्नान करने वाली स्त्रियां यमुना-स्नान कर उनकी पूजा करती हैं ।
जिस प्रकार पूरे विश्व में ब्रह्माजी का मंदिर केवल पुष्कर (राजस्थान) में है; उसी प्रकार यमराज का मंदिर संसार में केवल मथुरा में है और वे यहां इस मंदिर में अपनी बहिन यमुना के साथ विराजमान हैं ।
मथुरा में यह मंदिर ‘विश्राम घाट’ पर स्थित है । यह वही स्थान है, जहां कंस के वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने विश्राम किया था । हिरण्याक्ष के वध के बाद भगवान वाराह ने और लवणासुर का वध कर शत्रुघ्न ने भी यही विश्राम किया था ।
यमराज जिनका नाम सुन कर ही पसीना आने लगता है, वास्तव में बारह प्रमुख महाभागवतों में से एक माने जाते हैं । जीवों को कर्मानुसार अच्छा या बुरा फल प्रदान कर उन्हें शुद्ध और पवित्र बनाते हैं; इसलिए ‘धर्मराज’ कहलाते हैं । विशेष रूप से दण्ड द्वारा जीव को शुद्ध कर भगवत्प्राप्ति योग्य बनाना ही इनका कार्य है । जैसे अशुद्ध सोने को अग्नि में तपाते हुए शुद्ध किया जाता है; वैसे ही यमराज नरक की यातनाओं द्वारा जीव के पापों के मल को दूर कर उसे पवित्र बनाते हैं ।
इनका भयंकर रूप केवल नारकीय प्राणियों के लिए है । बुरे कर्म और अधर्म का आचरण करने वालों को ये अपना विकराल रूप दिखाते हैं; किंतु जो पुण्यात्मा हैं, भक्त हैं, संत हैं, धर्मात्मा हैं, परोपकारी है, दानी हैं, दूसरों की सेवा करने वाले हैं; उन्हें वे अपने सौम्य रूप—शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए साक्षात् परम भागवत विष्णु के रूप में दर्शन देते हैं ।
धर्मराज के मथुरा में निवास करने के पीछे एक बहुत ही रोचक प्रसंग है—
यमराज और यमुना भगवान सूर्य की संतान हैं । दोनों भाई-बहनों में बहुत प्रेम था । दुनिया भर के लोगों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा कर उन्हें उचित दण्ड देने के काम में यमलोक में धर्मराज यम परेशान हो गए । उनके जीवन में कोई आनंद नहीं रह गया था । इससे वह अत्यंत दु:खी रहने लगे । उनकी यह हालत उनकी बहिन यमुना से देखी नहीं गई ।
एक बार भाई की प्रसन्नता और दीर्घायु के लिए यमुना जी ने कार्तिक शुक्ल द्वितीया को व्रत करके अपने भाई को तिलक कर सुस्वादु भोजन कराया । इससे प्रसन्न होकर धर्मराज ने बहिन यमुना से वर मांगने को कहा ।
कहते हैं कि यमराज ने अपनी बहिन यमुना को वर दिया था कि जो भाई-बहिन यम द्वितीया (कार्तिक शुक्ल द्वितीया) को विश्राम घाट पर यमुना-स्नान करेंगे, उन्हें यमयातना नहीं भोगनी पड़ेगी अर्थात वे यमलोक नहीं जाएंगे । साथ ही इस दिन जो पुरुष बहन के हाथ का भोजन करता है, उसे धन, यश, आयु, धर्म, अर्थ और सुख की प्राप्ति होगी ।
इसके बाद से इस दिन को ‘भैया दूज’ और ‘यम द्वितीया’ पर्व मनाया जाने लगा । इस पर्व में तीन चीजों का माहात्म्य है—१. यमुना-स्नान, २. यम-पूजन और ३. बहिन के घर भाई का भोजन ।
इस दिन मथुरा में विश्रामघाट पर भाई-बहिनों द्वारा हाथ पकड़ कर यमुना-स्नान करने का बहुत माहात्म्य हैं । स्नान करने के बाद धर्मराज के मंदिर’ में दीपक जला कर पूजन करते हैं—
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज ।
पाहि मां किकरै: सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते ।।
बहिन भाई के मस्तक पर तिलक करती है और भाई उपहार देता है । इस प्रकार करने से भाई की आयु वृद्धि और बहिन के सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है । यही कारण है कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाई-दौज) के दिन भाई-बहिन चुम्बक की तरह मथुरा की ओर खिंचे चले आते हैं ।
ऐसी है मथुरा नगरी की महिमा, जिसकी बराबरी अन्य कोई स्थान नहीं कर सकता है 🌹