भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष की अष्टमी ’श्रीराधाष्टमी’ के नाम से जानी जाती है । इस दिन श्रीराधा का जन्म उत्सव मध्याह्नकाल (दोपहर) में गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवैद्य से करें । फिर श्रीराधा की जन्म-आरती करें । एक बार सात्विक भोजन करें । इस व्रत को करने से मनुष्य राधाजी के सांनिध्य में श्रीधामवृन्दावन में वास करता है ।
राधा-राधा जे कहैं, ते न परैं भवफंद ।
जासु कंध पर करकमल धरे रहत व्रजचंद ।।
इस पोस्ट में श्रीराधाष्टमी के अवसर पर उनकी जन्म के समय गायी जाने वाली आरती, बधाई और पलना के पद दिए जा रहे हैं—
श्रीराधा की जन्म-आरती
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आरति श्रीबृषभानुलली की ।
सत्-चित-आनंदकंद कली की ।।
भयभंजनि भवसागर तारिनी,
पाप-ताप कलि-कल्मष हारिनी,
दिव्यधाम गोलोक बिहारिनी,
जनपालिनी जग जननि भली की ।।
अखिल बिस्व आनंद बिधायिनी,
मंगलमयी सुमंगल दायिनी,
नंदनन्दन पद-प्रेम प्रदायिनी,
अमिय राग-रस-रंग रली की ।।
नित्यानंदमयी आह्लादिनी,
आनंदघन आनंद प्रसाधिनी,
रसमयि रसमय मन उन्मादिनी,
सरस कमलिनी कृष्ण अली की ।।
नित्य निकुंजेश्वरि रासेश्वरि,
परम प्रेमरूपा परमेश्वरि,
गोपीगणाश्रयि गोपिजनेश्वरी,
बिमल विचित्र भाव अवली की ।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
श्रीराधा के जन्म की बधाई
श्रीराधा के जन्म का समाचार सुनकर व्रजवासी, जामा, पीताम्बरी, पटका पहनकर सिर पर दूध, दही और माखन से भरी मटकियां लेकर गाते-बजाते वृषभानु-भवन पहुंच गए और राजा वृषभानु को बधाइयां देने लगे । तान भर-भर कर सोहिलें (बधाई) गायी जाने लगीं । राजा वृषभानु के ऊंचे पर्वत पर बने महल के जगमोहन में श्रीराधा के पालने के दर्शन हो रहे थे । आंगन में बैठे गोप और बारहद्वारी में बैठी महिलाएं सुरीले गीत गा रहीं थीं ।
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हृदय आनन्द भर बोलो बधाई है ! बधाई है !
हमारे भाग्य हैं जागे, जो ‘लाली’ (बेटी) घर में आई है ।।
धन्य बृषभानुपुर सुन्दर,
धन्य बृषभानु-नृप मन्दिर,
धन्य वह कक्ष मंगलकर,
अजन्मा जहां जाई है ।।
शुभ सित (शुक्ल) पक्ष, भादौं मास,
शुभ अति अष्टमी सुख रास,
शुभ नक्षत्र अभिजित खास,
जिनमें राधा आई है ।।
काम की कालिमा हरकर,
प्रेम की छबि प्रकाशित कर,
रस-सुधा से विषय-विष हर,
प्रेम की बाढ़ छाई है ।।
खोलकर नेह के झरने,
सुखी निज स्याम को करने,
हृदय आनन्द से भरने,
स्वयं श्यामा जु आई हैं ।।
हृदय है यह कन्हैया की,
प्राण है यह कन्हैया की,
आत्मा यह कन्हैया की,
सुधा बरसाती आई हैं ।।
एक ही दो बने हैं जो,
दो रहकर एक ही हैं सो,
रसास्वादन कराने को,
यह रस की सरिता आई है ।।
पुकारो भानु नृप की जय,
औ मैया कीर्ति की जय-जय,
हुआ दम्पत्ति का भाग्योदय,
जिनकी कन्या कहाई है ।।
हृदय आनन्द भर बोलो बधाई है ! बधाई है !
हमारे भाग्य हैं जागे, जो ‘लाली’ (बेटी) घर में आई है ।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
श्रीराधाजी का पालना-झूलन का गीत
राजा वृषभानु ने श्रीराधा के झूलने के लिए चंदन की लकड़ी का पालना बनवाया जिसमें सोने-चांदी के पत्र और जवाहरात लगे थे। पालने में श्रीजी के झूलने के स्थान को नीलमणि से बने मोरों की बेलों से सजाया गया था । श्रीराधाजी को प्रसन्न करने के लिए उनको पालने में झुलाकर यह पलना गीत गाएं—
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रसिकनी राधा पलना झूले ।
देखि-देखि गोपीजन फूले ।।
रतन जटित कौ पलना सोहे ।
निरखि-निरखि जननी मन मोहे ।।
शोभा की सागर सुकुमारी ।
उमा रमा रति वारी डारी ।।
डोरी खेंचत भौंह मरोरे ।
बार-बार कुंवरी तृन तोरे ।।
तिहिं छिन की शोभा कछु न्यारी ।
अखिल भुवनपति हाथ संवारी ।।
मुख पर अंबर वारति मैया ।
आनंद भयो परमानंद भैया ।।
परमात्मा श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर जो रसधारा व्रज में बही, उससे दुगुनी मात्रा में वह श्रीराधा के जन्मोत्सव में उमड़ चली—
‘जो रस नंदभवन में उमग्यौ,
तातैं दूनों होत री ।।