bhagwan krishna evening moonlight photo

ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त चराचर जगत–जो प्राकृतिक सृष्टि है, वह सब नश्वर है । तीनों लोकों के ऊपर जो गोलोकधाम है, वह नित्य है । गोलोकपति परमात्मा श्रीकृष्ण ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के एकमात्र ईश्वर और पूर्ण ब्रह्म हैं, जो प्रकृति से परे हैं । उनका विग्रह सत्, चित और आनन्दमय है । ब्रह्मा, शंकर, महाविराट् और क्षुद्रविराट्–सभी उन परमब्रह्म परमात्मा का अंश हैं । प्रकृति भी उन्हीं का अंश कही गयी है ।  गोलोकपति परमात्मा श्रीकृष्ण ने जब अवतार धारण किया, वह भी पूर्णावतार था; क्योंकि वेद में कहा गया है—

ऊँ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।

अर्थात्–वह पूर्ण है, यह पूर्ण है, पूर्ण से ही पूर्ण की वृद्धि होती है । पूर्ण में से पूर्ण लेने पर भी पूर्ण ही बच रहता है । इसी प्रकार भगवान अंशयुक्त होने पर भी पूर्ण हैं ।

परमात्मा श्रीकृष्ण ही सृष्टि के बीजरूप हैं । सृष्टि के अवसर पर परब्रह्म परमात्मा दो रूपों में प्रकट हुए–प्रकृति और पुरुष । उनका आधा दाहिना अंग ‘पुरुष’ और आधा बांया अंग ‘प्रकृति’ हुआ । वही प्रकृति परमब्रह्म में लीन रहने वाली उनकी सनातनी माया हैं । समस्त ब्रह्माण्ड, ग्रह-नक्षत्र उन्हीं के इशारों पर अपना काम करते हैं । 

अनन्त ब्रह्माण्डों के अधीश्वर हैं भगवान श्रीकृष्ण : कथा

श्रीकृष्ण असंख्य ब्रह्माण्डों के स्वामी है । प्रत्येक ब्रह्माण्ड में एक सृष्टिकर्ता, एक पालनकर्ता और एक संहारकर्ता होता है । श्रीकृष्ण की द्वारकालीला के समय इस ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता ब्रह्मा उनके दर्शन के लिए आए । उन्होंने द्वारपाल से अपने आने की सूचना श्रीकृष्ण को भिजवाई । 

श्रीकृष्ण ने द्वारपाल से कहा–’कौन ब्रह्मा आए हैं, उनका क्या नाम है ?’

द्वारपाल ने ब्रह्मा के पास जाकर श्रीकृष्ण के कहे अनुसार पूछा । यह सुनकर ब्रह्माजी को बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने कहा–’मैं सनक पिता चतुर्भुज ब्रह्मा हूँ ।’ 

द्वारपाल ने जाकर सब बात श्रीकृष्ण को बताई ।  श्रीकृष्ण की आज्ञा से ब्रह्मा जब अंदर पहुंचे तो उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा–’आपने द्वारपाल से यह क्यों पूछा कि कौन ब्रह्मा आए हैं ? क्या ब्रह्माण्ड में मेरे सिवा कोई और ब्रह्मा भी है ?’

ब्रह्मा की बात सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कराए और तत्काल ही सभा में अनेक ब्रह्मा प्रकट हो गए । कोई दसमुख का था, तो कोई बीस मुख का, कोई सौ मुख का, कोई सहस्त्रमुख का तो किसी के अनन्तमुख थे । इन अनन्त ब्रह्माओं के साथ असंख्य इन्द्र भी प्रकट हो गए और सभी लोग श्रीकृष्ण के चरणकमल में अपना मुकुट स्पर्श कर वन्दन करने लगे । 

सभी आए हुए ब्रह्मा और इन्द्रों ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा–’भगवन् आपने हम दासों को क्यों याद किया ?’ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा–’बस आप लोगों को देखने की इच्छा से ही बुलाया है ।’

सब लोग भगवान को प्रणाम कर विदा हो गए । चतुर्मुख ब्रह्मा यह सब दृश्य विस्मित होकर देख रहे थे । उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा–भगवन् ! अब मेरा संशय दूर हो गया ।’ ऐसा कह कर वे अपने धाम को चले गए । स्पष्ट है कि अनन्त ब्रह्माण्डों के अधीश्वर भगवान श्रीकृष्ण ही हैं ।

श्रीमद्भागवत (२।९।३२) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–‘सृष्टि के पूर्व भी मैं ही था, मुझसे भिन्न कुछ भी नहीं था और सृष्टि के उत्पन्न होने के बाद जो कुछ भी यह दिखायी दे रहा है, वह मैं ही हूँ । जो सत्, असत् और उससे परे है, वह सब मैं ही हूँ तथा सृष्टि के बाद भी मैं ही हूँ एवं इन सबका नाश हो जाने पर जो कुछ बाकी रहता है, वह भी मैं ही हूँ ।’

समस्त ग्रह-नक्षत्र भी श्रीकृष्ण के अधीन

रही बात ग्रह-नक्षत्रों की तो वे भी भगवान के ही सगे-सम्बन्धी हैं और उन्हीं के अधीन हैं । जानते हैं कैसे—

किस ग्रह का श्रीकृष्ण से क्या है सम्बन्ध ?

यमराज—यमुनाजी भगवान की अष्ट पटरानियों में से एक हैं और यमराज उनके भाई हैं; इसलिए भगवान श्रीकृष्ण और यमराज जीजा-साले हैं । भगवान के साले, तो हमारे आराध्य के साले; इसलिए श्रीकृष्ण-भक्तों से तो वे दूर ही रहेंगे ।

सूर्यदेव—श्रीकृष्ण की पटरानी यमुनाजी के पिता हैं सूर्य; इसलिए भगवान के ससुर हैं सूर्यदेव । ससुर भला अपने दामाद के भक्तों का अहित क्योंकर करेगा ?

चंद्रमा—विष्णुरूप में लक्ष्मीजी और कृष्ण रूप में लक्ष्मीजी का अंश रुक्मिणीजी भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी हैं ।  चंद्रमा और लक्ष्मी जी समुद्र से प्रकट हुए हैं; इसलिए चन्द्रमा लक्ष्मी जी के भाई हैं । इस कारण चन्द्रमा भी भगवान के साले हुए ।  वे भी श्रीकृष्ण-आश्रितों पर अपनी कृपा ही बरसाते हैं ।

मंगल—भगवान वाराह और पृथ्वी देवी के पुत्र हैं ‘मंगल’ अर्थात् ये तो भगवान के पुत्र हुए । अतः भगवान श्रीकृष्ण की शरण लेने वालों को इनसे भी डरने की जरुरत नहीं है ।

बुध—बुध ग्रह से भी भगवान श्रीकृष्ण का ससुराल का नाता है । बुध चंद्रमा के पुत्र हैं, अर्थात् साले के पुत्र यानी श्रीकृष्ण बुध के फूफाजी हुए; इसलिए श्रीकृष्ण नाम-जप करने वालों पर बुध अपनी अनुकूल दृष्टि ही रखते हैं ।

बृहस्पति और शुक्र—बृहस्पति देवगुरु हैं और शुक्र दैत्यों के गुरु हैं । दोनों ही ब्रह्माजी के पौत्र हैं । दोनों परम विद्वान और सौम्य हैं । दोनों ने ही कठिन तप और पूजन से गुरु पद पाया है; इसलिए श्रीकृष्ण भक्तों पर उनका विशेष अनुग्रह होना स्वाभाविक है ।

शनिदेव—सूर्य के पुत्र और यमुनाजी के भाई हैं शनिदेव, तो वह भी भगवान श्रीकृष्ण के साले हुए । साथ ही शनिदेव श्रीकृष्ण के महान भक्त है; इसलिए श्रीकृष्ण-भक्तों को शनिदेव से भी डरने की आवश्यकता नहीं है ?

राहु-केतु—समुद्र-मंथन से प्राप्त अमृत जब देवता पी रहे थे तो राहु देवता का वेश बनाकर उनकी पंक्ति में जा बैठा और कुछ अमृत पी लिया । सूर्य और चन्द्रमा ने उसका भेद भगवान विष्णु को बता दिया । भगवान विष्णु ने तत्काल राहु का मस्तक अपने चक्र से काट दिया । राहु के अमृत पीने से वह मरा नहीं बल्कि अमर हो गया और उसे तारा मण्डल में छाया ग्रह का स्थान मिला । उसका मस्तकराहु’ और धड़ ‘केतु’ कहलाया । राहु-केतु तो बेचारे जिस दिन एक से दो हुए, उस दिन से आज तक भगवान के चक्र के पराक्रम को कभी नही भूले । भला वे कृष्ण-भक्तों की और टेढ़ी नजर से देखने की हिम्मत कैसे जुटा पाएँगे?

इस कारण श्रीकृष्ण के शरणागत होने पर किसी भी व्यक्ति को ग्रह-नक्षत्र की प्रतिकूलता से डरने की आवश्यकता नहीं है । संसार में कोई चाह कर भी उनका अनिष्ट नहीं कर सकता । करना केवल इतना ही है—

जिह्वे कीर्तय केशवं मुररिपुं चेतो भज श्रीधरं
पाणिद्वन्द्व समर्चयाच्युतकथां श्रोत्रद्वय त्वं श्रृणु ।
कृष्णं लोकय लोचनद्वय हरेर्गच्छांघ्रियुग्मालयं
जिघ्र घ्राण मुकुन्दपादतुलसीं मूर्द्धन्नमाधोक्षजम् ।।

‘हे जिह्वे ! केशव का कीर्तन कर ।  चित्त ! मुरारि को भज ।  युगल हस्त ! श्रीधर की अर्चना करो । हे दोनों कानों ! तुम अच्युत की कथा श्रवण करो ।  नेत्रो ! श्रीकृष्ण का दर्शन करो । युगल चरणों ! भगवत्स्थानों में भ्रमण करो ।  अरी नासिके ! भगवान मुकुन्द के चरणों की तुलसी की गन्ध ले और हे मस्तक ! भगवान अधोक्षज के सामने झुक ।’

2 COMMENTS

  1. जय माता! आपने भक्ती ज्ञान अर्चन से परम शाश्वत सत्य महिमा आनंद की जानीव दी। मै आपका ऋणी हू, आपके चरणोमें साष्टांग दंडवत प्रणाम।🌷💐🙏

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