shri krishna, naag daman, krishna

भगवान श्रीकृष्ण के नाग-नृत्य मन्त्र के जाप से हो जाता है कालसर्प दोष दूर

समस्त कलाओं के आदिगुरु भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को नाग के सिर पर नृत्य करने की कला सिखाई । कालिय-नाग को नाथ कर श्रीकृष्ण ने उस पर विजय पायी इसलिए यदि कुण्डली में कालसर्प योग हो तो प्रतिदिन और विशेषकर जन्माष्टमी के दिन कालिय नाग-दमन की कथा का पाठ या श्रीकृष्ण के नाग-नृत्य मन्त्र का जाप करने से हर प्रकार का कालसर्प दोष दूर हो जाता है ।

भगवान श्रीकृष्ण का नाग-नृत्य मन्त्र इस प्रकार है—

कालियस्य फणामध्ये दिव्यं नृत्यं करोति तं ।
नमामि देवकीपुत्रं नृत्यराजानमच्युतम् ।।

कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति यदि इसकी एक माला रोज करे, तो दोष की शान्ति अवश्य हो जाएगी क्योंकि भगवान के नाम व लीला का गान करने से बड़े-से बड़ा कष्ट दूर हो जाता है ।

भगवान श्रीकृष्ण की कालिय-नाग दमन लीला

व्रज में यमुनाजी में कालिय नाग का हृद था जो विष की आग से इतना खौलता रहता था कि कोई चिड़िया भी उसके ऊपर से निकले तो वह उसमें गिरकर मर जाती थी । कालिय नाग से निपटने के लिए श्रीकृष्ण एक ऊंचे कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गए और वहां से कालिय हृद में कूद पड़े । नागपत्नियों ने श्रीकृष्ण को बहुत समझाया कि ‘अरे ओ बालक ! भाग जा यहां से, अभी हमारे नागराज शयन कर रहे हैं, जागने पर तुम्हें भस्म कर देंगे ।’

भगवान श्रीकृष्ण पर नागपत्नियों की बातों का कोई असर नहीं हुआ । उन्होंने कालिय नाग पर एक लात जमा दी । अब तो ‘चक्षुश्रवा’ जाग गया । संस्कृत में सांप को चक्षुश्रवा कहते हैं क्योंकि वह आंख से ही सुनता और देखता है । पैर के प्रहार से जागने पर कालिय नाग ने एक अत्यन्त सुकुमार, मधुर मुस्कान युक्त, पीताम्बर व श्रीवत्स चिह्न धारी बालक को देखा तो वह उनसे लिपट गया । आज अमृतरूप श्रीकृष्ण को जहररूपी कालिय काटने जा रहा है ।

यह देखकर सभी गोप-गोपियां अपना काम छोड़कर यमुना तट पर पहुंचे और कालिय हृद में घुसने का प्रयास करने लगे किन्तु बलरामजी श्रीकृष्ण की शक्ति से परिचित थे । उन्होंने सब व्रजवासियों को रोक दिया । तभी श्रीकृष्ण कालिय नाग के सिर पर चढ़ गए जिस पर लाल रंग के अनेक रत्न लगे थे । उनके प्रकाश में श्रीकृष्ण के चरण और भी लाल दिखने लगे । श्रीकृष्ण ने अपने शरीर को फैला दिया जिससे कालिय का शरीर टूटने लगा और वह रुधिर की उल्टी करने लगा ।

योगी-मुनि जिनके चरणकमलों का क्षण भर के लिए भी स्पर्श प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं, उन चरणों का स्पर्श आज कालिय नाग को प्राप्त हो गया । देवलोक में कालिय नाग के सौभाग्य की जय जयकार होने लगी । कालिय के सिर पर भगवान को नृत्य करते हुए देखकर आकाश में देवी-देवता, गंधर्व, विभिन्न प्रकार के बाजे बजाने लगे । उन सब बाजों की ताल से ताल मिलाकर श्रीकृष्ण कालिय नाग के सिर पर और जोर से नृत्य करने लगे । जो भी फण वह उठाता, श्रीकृष्ण उसे पैर के अद्भुत ताण्डव नृत्य से रौंद देते । श्रीकृष्ण के ताण्डव में भी मधुरता है । एक ओर तो भगवान अपने नृत्य का आनन्द ले रहे हैं और दूसरी ओर उनकी दुष्ट दमन की लीला भी चल रही थी ।

कालिय के फणों से बहता हुआ रक्त ऐसा मालूम दे रहा था मानो वह भगवान के चरणों पर रक्त पुष्प समर्पित कर रहा हो । लेकिन उसके जीवन के दीपक मानो बुझते जा रहे थे । कितनी देर तक यह सब सह सकता था बेचारा । अब उसके शरीर में शक्ति नहीं रही तो उसका शरीर झुककर स्वयं भगवान के चरणों पर न्यौछावर हो गया । पहले भगवान के चरणकमल उसके फणों पर नाच रहे थे अब श्रीकृष्ण का हस्तकमल उसके मस्तक पर टिक गया, मानो कालिय को भगवान ने सदैव के लिए सुरक्षित कर दिया । श्रीकृष्ण ने कालिय को मारा नहीं है केवल नाथा है ।

पति कालिय का मरणकाल देखकर उसकी पत्नियां भगवान के शरणागत होकर उनकी स्तुति करने लगीं—‘प्रभु आपके चरणों की धूलि से ही जीव का कल्याण हो जाता है परन्तु कालिय का सौभाग्य तो अत्यन्त दुर्लभ है । हमें लगता है इस कालिय नाग ने पूर्वजन्म में कोई बहुत बड़ी तपस्या की थी कि इसको आपके चरणों की धूलि मिल गयी ।’  

कालिय नाग ने भी एक युक्ति खोज ली । उसने भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनसे प्रार्थना करते हुए कहा—‘इस विश्व में नाना प्रकार के स्वभाव, योनि व आकृतियों वाले जीवों का निर्माण किसने किया ? आपने किया । इस संसार में विषैले जीव, हमारे जैसे क्रोधी, विषैले और भयानक आकृति वाले सर्प किसने बनाए ? आपने ही बनाए हैं । जब सब-कुछ आपने ही बनाया है और हम अपने स्वभाव के अनुसार गलती करते हैं तो आप हमको दण्ड क्यों देते हैं ? हमारे द्वारा की गयी गलतियों के मूल कारण तो आप ही हैं, हमारा क्या कसूर है ?’

भगवान श्रीकृष्ण का कालिय को वरदान

भगवान ने कालिय नाग से कहा—‘मैंने तुम्हारे सिर पर अपने चरणों की मुहर लगा दी है, अब तुम वैष्णव हो गए और मेरे नित्य पार्षदों में शामिल हो गए हो । तुम्हारी और गरुड़जी की जो दुश्मनी थी वह मेरे चरण-चिह्न अंकित होने से समाप्त हो गयी है । अब तुम अपने स्त्री, पुत्र और जाति भाइयों को लेकर समुद्र में चले जाओ । अब यह जल अमृत के समान हो जाएगा । हम इस कालिन्दी में लीला करेंगे और गौएं व मनुष्य इसका पान करेंगें ।’

श्रीकृष्ण ने यमुनाजी के उदर में निवास करने के कारण कालिय नाग का वध नहीं किया बल्कि उसको इसके स्थान रमणक द्वीप भेज दिया । जिस भूमि पर भगवान के चरणचिह्न अंकित हो जाते हैं वहां से सारा भय चला जाता है ।

भगवान श्रीकृष्ण ने कालिय नाग दमन लीला क्यों की ?

भगवान हैं ‘कृष्ण’ और उनकी पत्नी यमुनाजी हैं ‘कृष्णा’, इन दोनों के बीच आ गया ‘कालिय नाग’ । भगवान ने अपने और अपनी पत्नी के बीच से तीसरे को निकालने के लिए ही कालिय नाग-दमन लीला की ।

यमुनाजी भक्ति महारानी का रूप हैं । इनके अंदर कालिय नाग का निवास उचित नहीं है । कालिय नाग मनुष्य की इन्द्रियां हैं । इन्द्रियों के द्वारा विषयों का सेवन करना ही विष है । जब तक हम अपनी इन्द्रियों के साथ भगवान को नहीं मिलाएंगे, अपनी इन्द्रियों (जिह्वा, कान) पर भगवान का नाच नहीं कराएंगे तब तक उनका विष निचुड़ कर बाहर बहने वाला नहीं । भगवान ने कालिय को मारा नहीं बल्कि नाथा है । मनुष्य को भी अपनी इन्द्रियों का दमन कर उन्हें भगवान की ओर मोड़ना होगा तभी भक्ति रूपी अमृत की प्राप्ति संभव है ।

कालिय नाग-दमन लीला का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने इस लीला का महत्व बताते हुए कहा—‘मेरे इस प्रसंग का जो सुबह-शाम स्मरण-चिंतन करेगा, उसे कभी सांप का भय नहीं होगा, जगत का भय भी नहीं रहेगा क्योंकि यह संसार सर्प के समान ही है, विष की तरह मनुष्य को काटता रहता है । इस कालिय हृद में मैंने जो क्रीड़ा की है, उसके कारण इसमें जो मनुष्य स्नान कर इसके जल से देवताओं व पितरों का तर्पण करेगा वह सारे पापों से मुक्त हो जाएगा ।’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here