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कल्पवृक्ष के समान श्रीकृष्ण के नाम

भगवान श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है--सब अभिलाषित फलों को देने वाला है। यह स्वयं श्रीकृष्ण है, पूर्णतम है, नित्य है, शुद्ध है, सनातन है। भगवान के नाम अनन्त हैं, उनकी गणना कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। यहां कुछ थोड़े से प्रचलित नामों का अर्थ दिया जा रहा है ।

भगवान श्रीकृष्ण और श्वपच भक्त वाल्मीकि

एक बार राजा युधिष्ठिर ने यज्ञ किया जिसमें चारों दिशाओं से ऋषि-मुनि पधारे । भगवान श्रीकृष्ण ने एक शंख स्थापित करते हुए कहा कि यज्ञ के विधिवत् पूर्ण हो जाने पर यह शंख बिना बजाये ही बजेगा । यदि नहीं बजे तो समझिये कि यज्ञ में अभी कोई त्रुटि है और यज्ञ पूरा नहीं हुआ है । पूर्णाहुति, तर्पण, ब्राह्मणभोज, दान-दक्षिणा—सभी कार्य संपन्न हो गए, परंतु शंख नहीं बजा । सभी लोग चिंतित होकर शंख न बजने का कारण जानने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के पास आए ।

मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण प्रेम, आनन्द और माधुर्य के अवतार माने जाते हैं । अपनी व्रज लीला में उन्होने सबको इन्हीं का ही वितरण किया । अपनी माधुर्य शक्ति से वे जीव को अपनी ओर आकर्षित कर कहते हैं--’तुम यहां आओ ! मैं ही सच्चा आनन्द हूँ । मैं तुमको आत्मस्वरूप का दान करने के लिए बुलाता हूँ ।’

सबके प्यारे, सबसे न्यारे भगवान श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को उपदेश दिया कि कलियुग में मुख्यरूप से ब्रह्मचर्य और गृहस्थ दो ही आश्रम रहेंगे । इसलिए उन्होंने अर्जुन, उद्धव, अक्रूर और गोपियां आदि गृहस्थों को ही अपना दिव्य ज्ञान दिया । भगवान ने यह बतलाया कि गृहस्थाश्रम में रहकर संसार के समस्त व्यवहारों को करते हुए किस प्रकार भगवान की प्राप्ति हो सकती है ।

श्रीराधा : एक साधारण गोपी या अलौकिक चरित्र

श्रीकृष्ण ने नंदबाबा ले कहा—कहा--’जैसे दूध में धवलता होती है, दूध और धवलता में कभी भेद नहीं होता; जैसे जल में शीतलता, अग्नि में दाहिका शक्ति, आकाश में शब्द, भूमि में गन्ध, चन्द्रमा में शोभा, सूर्य में प्रभा और जीव में आत्मा है; उसी प्रकार राधा के साथ मुझको अभिन्न समझो । तुम राधा को साधारण गोपी और मुझे अपना पुत्र न जानो । मैं सबका उत्पादक परमेश्वर हूँ और राधा ईश्वरी प्रकृति है ।

हजार नामों के समान फल देने वाले भगवान श्रीकृष्ण के 28...

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में पाप नहीं रह पाता है । वह मनुष्य एक करोड़ गो-दान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ और एक हजार कन्यादान का फल प्राप्त करता है ।

संत एकनाथ और सेवक भगवान श्रीकृष्ण

भगवान पृथ्वी, गौ, देवता और मनुष्यों की रक्षा के लिए तो अवतार ग्रहण करते हैं किन्तु भक्तों के प्रेम पर रीझ कर उनके सेवक क्यों बन जाते है ?

श्रीकृष्ण पर्यावरण संरक्षण के सबसे बड़े रोल मॉडल

श्रीकृष्ण ने अपने आदर्श जीवन में जो कुछ किया है, उसकी कहीं तुलना नहीं है । इसलिए सच्चे कृष्णभक्त कहलाने का हक हमें तभी है जब हम उनकी तरह अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए ज्यादा-से ज्यादा पेड़ लगाएं, नदियों को कचरा-मुक्त रखें, पोलीथिन व प्लास्टिक प्रयोग ना करने की शपथ लें ।

श्रीकृष्ण अपने पैर का अंगूठा क्यों पीते थे ?

श्रीकृष्ण द्वारा अपने पैर के अंगूठे को पीने की बाललीला देखने, सुनने अथवा पढ़ने में तो छोटी-सी तथा सामान्य लगती है किन्तु इसे कोई हृदयंगम कर ले और कृष्ण के सम्मुख हो जाय तो उसका तो बेड़ा पार होकर ही रहेगा ।

इस बार कुछ अलग तरीके से मनायें जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए इस बार हम ऐसी इको-फ्रेन्डली जन्माष्टमी मनायें जो वातावरण को प्रदूषित न करें । जानिए कैसे ?