पुरुषोत्तम मास सब मासों का अधिपति है । भगवान श्रीकृष्ण ही पुरुषोत्तम हैं; इस मास को अपना नाम देकर वे इसके स्वामी बन गए ।
पुरुषोत्तम मास का प्रादुर्भाव (उत्पत्ति)
▪️ ऐसा माना जाता है कि हिरण्यकशिपु ने ऐसा वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी प्राणी—नर हो या नारायण, किसी भी अस्त्र से, किसी भी सामान्य जगह पर और किसी भी सामान्य काल में उसे मार नहीं सकता था । भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए बड़ी चतुराई से सभी शर्तों का पालन करते हुए हिरण्यकशिपु के वध की योजना बनाई । उन्होंने असाधारण प्राणी—नृसिंह (आधा नर आधा सिंह) का रूप धरकर, खंभे से प्रकट होकर, असाधारण जगह—अपनी जंघा पर लिटाकर, न दिन और न रात में—गोधूलि की वेला में, असाधारण शस्त्र से—अपने नाखूनों से उसकी छाती फाड़ दी । इसके लिए भगवान ने असाधारण समय—बारह महीनों में से किसी भी महीने को न लेकर तेरहवें मास का प्रादुर्भाव किया जिसे अधिक मास या मल मास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है ।
▪️ अधिक मास — सूर्य का एक वर्ष (सौर वर्ष) 365 दिनों का होता है और चांद वर्ष 354 दिनों का होता है। दोनों के एक वर्ष की अवधि में 11 दिनों का अंतर होता है। अत: पंचागगणना के लिए हर तीसरे चांद वर्ष में एक अतिरिक्त चांद मास जोड़कर सौर वर्ष और चांद वर्ष का समय समान कर दिया जाता है । यही अधिक मास कहलाता है । अधिक मास 28 से 36 महीनों के बाद आता है ।
▪️ इस मास को मल मास या मैला मास इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें सूर्य की संक्रान्ति नहीं होती है । इसमें शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं इसलिए इसे निन्दनीय माना गया ।
श्रीकृष्णकृपा से ‘मल मास’ बना ‘पुरुषोत्तम मास’
जिस पर श्रीकृष्ण अपना वरद्हस्त रख देते हैं वह त्रिलोकी में सर्वश्रेष्ठ और पूजनीय हो जाता है, सभी उसे सिर-आंखों पर बिठा लेते हैं । ऐसा ही कुछ मल मास के साथ हुआ ।
मल मास में सूर्य की संक्रान्ति नहीं होने के कारण देवता व पितरों की पूजा और शुभकार्य वर्जित होने से सभी उसकी निन्दा करने लगे । लोकापमान से दु:खी होकर मल मास वैकुण्ठ में पहुंचा और भगवान विष्णु से रो-रोकर बोला—‘मैं ऐसा अभागा हूँ जिसका न कोई नाम है न स्वामी और न कोई आश्रय । इसलिए सब लोगों ने मेरा तिरस्कार और अपमान किया है ।’ यह कहकर वह भगवान विष्णु के चरणों में शरणागत हो गया ।
शरणागत वत्सल भगवान विष्णु मल मास को लेकर गोलोक पहुंचे जहां चिन्मय ज्योति के मध्य नीलकमल के समान साकार रुप वाले सांवले श्रीकृष्ण स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान थे । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘हमारे गोलोक में शोक-मोह के लिए स्वप्न में भी जगह नहीं है फिर ये कांपता हुआ, आंसू बहाता हुआ मेरे सम्मुख कौन रो रहा है ?’
भगवान विष्णु ने उन्हें मल मास की सारी व्यथा सुनाई । तब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा—
‘सद्गुण, कीर्ति, प्रभाव, षडैश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान देना आदि जितने भी सद्गुण मुझ पुरुषोत्तम में हैं, उन सबको आज से मैंने मल मास को सौप दिया है । मेरा नाम जो वेद, लोक और शास्त्र में प्रसिद्ध है, आज से उसी ‘पुरुषोत्तम’ नाम से यह मल मास विख्यात होगा । मैं स्वयं इस मास का स्वामी हो गया हूँ । इस मास में मेरी आराधना करने वालों को मैं परम दुर्लभ पद (गोलोकधाम) प्रदान करुंगा ।’
अथर्ववेद में इसे भगवान का घर बताया गया है—‘त्रयोदशो मास इन्द्रस्य गृह: ।’
पुरुषोत्तम मास में भगवान श्रीविष्णु/श्रीकृष्ण को कैसे करें प्रसन्न
इस मास में श्रद्धा-भक्ति से भगवान की पूजा-आराधना, व्रत आदि करने से मनुष्य के दु:ख-दारिद्रय और पापों का नाश होकर अंत में भगवान के धाम की प्राप्ति होती है । इसके लिए ये उपाय करने चाहिए—
—इस मास में भगवान के ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादशाक्षर मन्त्र का या श्रीराम या श्रीकृष्ण के मन्त्र ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे’ का या शिव पंचाक्षर मन्त्र ‘नम: शिवाय’ का या ‘ॐ नमो नारायणाय’ मन्त्र के जप का अनन्त फल होता है । अंत जितना हो सके, किसी भी मन्त्र का अधिक-से-अधिक जप करना चाहिए ।
—घर के मन्दिर में घी का अखण्ड दीपक पूरे महीने जलायें ।
—शालग्राम भगवान की मूर्ति स्थापित करके स्वयं या ब्राह्मण द्वारा विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए ।
—गीता के पुरुषोत्तम नाम के १५वें अध्याय का नित्य अर्थ सहित पाठ करना चाहिए ।
—इस मास में श्रीमद्भागवत की कथा का पाठ करना या कराने का बहुत पुण्य है ।
—यदि हो सके तो इस एक महीने में सवा लाख तुलसीदल पर राम, ॐ या कृष्ण—इनमें से कोई भी नाम चन्दन से लिखकर भगवान पर चढ़ाना चाहिए ।
—इस मास में भगवान शिव और विष्णु/श्रीकृष्ण दोनों की ही आराधना का अत्यन्त महत्त्व है ।
—इस मास में भगवान के दीपदान और ध्वजादान की भी बहुत महिमा है ।
—इस मास में पुरुषोत्तम-माहात्म्य का पाठ भी अत्यन्त फलदायी है ।
—इस महीने वैष्णवों की सेवा और उनको भोजन कराना बहुत पुण्यप्रद कहा गया है ।
—इस मास में गौओं को घास खिलानी चाहिए ।
—यदि कांसे का बर्तन हो तो उसमें अन्यथा स्टील के बर्तन में तीस मालपुआ रखकर ब्राह्मण को दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।
—अपनी श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार सोना-चांदी, गाय, घी, अन्न, वस्त्र, जूता, छाता व धार्मिक पुस्तकों का दान करना चाहिए ।
पुरुषोत्तम मास के नियम
—इस मास में सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करके इस मन्त्र द्वारा पुरुषोत्तम भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए—
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम् ।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् ।।
—नील वस्त्र धारण करने वाली श्रीराधा सहित पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें।
—दिन में सोना नहीं चाहिए ।
—देवता, ब्राह्मण, गुरु, साधु-संन्यासी की निन्दा न करे ।
पुरुषोत्तम-व्रत करने वालों के लिए भोजन के नियम
—इस महीने व्रत करने वालों को एक समय भोजन करना चाहिए । भोजन में गेहूं, चावल, जौ, मूंग, तिल, बथुआ, मटर, चौलाई, ककड़ी, केला, आंवला, दूध, दही, घी, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सोंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल, शहतूत , मेथी आदि खाने का विधान है । फलाहार पर रहना या चान्द्रायण व्रत करना बहुत अच्छा है ।
—पुरुषोत्तम व्रत करने वालों को मांस, शहद, चावल का मांड़, उड़द, राई, मसूर, मूली, प्याज, लहसुन, बासी अन्न, नशीले पदार्थ आदि नहीं खाने चाहिए ।
—सामर्थ्य हो तो मास के अंत में उद्यापन, होम आदि करना चाहिए ।
पुरुषोत्तम मास में वर्जित कार्य
—इस मास में फलप्राप्ति की आशा से कोई कार्य नहीं करना चाहिए ।
—विवाह, नामकरण, श्राद्ध, कर्णछेदन व देव-प्रतिष्ठा आदि शुभकर्मों का भी इस मास में निषेध है।
कामनारहित (निष्काम भाव) से दान करने से होती है धन-धान्य व पुत्र-पौत्रों की वृद्धि
पुरुषोत्तम मास में भगवान पुरुषोत्तम को जानने की इच्छा से व्रत पूजन दान आदि करना चाहिए । गीता (१५।११) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—
यो मामेव सम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।।
अर्थात्—जो तत्वदर्शी ज्ञानी पुरुष मुझको पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वविद् सब प्रकार से निरन्तर मुझ पुरुषोत्तम को ही भजता है ।’
इस प्रकार पूरे पुरुषोत्तम मास को एक अनुष्ठान-उत्सव की तरह मनाना चाहिए ।