यमयातना से मुक्ति देने वाली यमुनाजी
भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला में प्रवेश और उसका दर्शन यमुनाजी की कृपा से सहज ही हो जाता है क्योंकि भगवान श्रीराधाकृष्ण यमुनाजी के तट पर ही रास विहार करते हैं । रास लीला में प्रवेश केवल गोपियों को है किन्तु कृष्णप्रिया श्रीयमुना की कृपा से यह अलौकिक फल भी पुष्टि मार्गीय वैष्णव प्राप्त कर लेता है कि उसे भगवान का दिव्य वेणुनाद भी सुनाई देने लगता है ।
धर्मशास्त्रों में काला या कृष्ण धन
जब साक्षात् धर्मराज की काले धन ने ऐसी स्थिति कर दी तो फिर सामान्य मनुष्य की तो बात ही क्या ? काला धन मनुष्य के विनाश का कारण बन जाता है ।
एक यशोदा कलियुग की
मां लीलावती और उसके बालकृष्ण दोनों ही लाड़ लड़ाते हुए एक-दूसरे की इच्छा पूरी करने लगे । लीलावती ने सदा-सदा के लिए अपने बालकृष्ण को पा लिया और बालकृष्ण ने भी उसका दुग्धपान कर उसे कलियुग में दूसरी यशोदा मां का दर्जा दे दिया ।
भगवान श्रीराधाकृष्ण का सांझी उत्सव
श्रीराधा ने कस्तूरी, चंदन और केसर के घोल से दीवाल को लीप कर कामधेनु गाय के गोबर से सांझी बनायी और उसे फूलों से सजाया । श्रीराधा ने धूप-दीप दिखाकर स्वयं सांझी की आरती की और फिर मंगलगीत गाने लगीं ।
भगवान रंगनाथ की प्रेम-पुजारिन आण्डाल
जैसे ही आण्डाल ने मन्दिर में प्रवेश किया, वह भगवान की शेषशय्या पर चढ़ गयी । चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और लोगों के देखते-ही-देखते आण्डाल सबके सामने भगवान श्रीरंगनाथ में विलीन हो गयी ।
श्रीकृष्ण का छठी पूजन महोत्सव
पुराणों में षष्ठी देवी को ‘बालकों की अधिष्ठात्री देवी’, उनको दीर्घायु प्रदान करने वाली, उनकी धात्री (भरण-पोषण करने वाली) व उनकी रक्षा करने वाली और सदैव उनके पास रहने वाली माना गया है ।
श्रीराधा कृष्ण की युगल उपासना स्तोत्र : युगलकिशोराष्टक
हिन्दी अर्थ सहित --
नवजलधर विद्युद्धौतवर्णौ प्रसन्नौ,
वदननयन पद्मौ चारूचन्द्रावतंसौ ।
अलकतिलक भालौ केशवेशप्रफुल्लौ,
भज भजतु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ।।१।।
नरसी मेहता को रासलीला का दर्शन
नरसी ने गाने में लिखा—तुमने मुझे जो कटु शब्द कहे, उनके कारण ही मैंने गोलोकधाम में गोपीनाथ का नृत्य देखा और धरती के भगवान ने मेरा आलिंगन किया ।
अहंकार से बचने के लिए क्या कहती है गीता
अर्जुन को लगता था कि भगवान श्रीकृष्ण का सबसे लाड़ला मैं ही हूँ । उन्होंने मेरे प्रेम के वश ही अपनी बहिन सुभद्रा को मुझे सौंप दिया है, इसीलिए युद्धक्षेत्र में वे मेरे सारथि बने । यहां तक कि रणभूमि में स्वयं अपने हाथों से मेरे घोड़ों के घाव तक भी धोते रहे । यद्यपि मैं उनको प्रसन्न करने के लिए कुछ नहीं करता फिर भी मुझे सुखी करने में उन्हें बड़ा सुख मिलता है ।
भगवान कहां रहते हैं
मनुष्य की आत्मा में स्थित सत्यस्वरूप परमात्मा उसे अच्छे-बुरे की पहचान करा देता है । इसी बात को कबीरदासजी ने इस प्रकार कहा है—‘तेरा साहिब है घर मांही, बाहर नैना क्यों खोले ।’