भगवान विट्ठल और भक्त कूर्मदास
भगवान भक्त का ‘प्रेम’ ही चाहते हैं, बस प्रेम से उन्हें पुकारने, उनका नित्य स्मरण करने और उनके वियोग में विकल रहने की आवश्यकता है, उन्हें रीझते देर नहीं लगती, कोई पुकार करके तो देखे । यदि मनुष्य उनसे सच्चा प्रेम करें, तो वे अवश्य उसके हो जायेंगे फिर उसका जीवन ही धन्य हो जायेगा ।
स्त्रियां अपने मन में कोई बात क्यों नहीं छिपा पाती हैं...
एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं पचती है ।’ यह केवल कहावत नहीं है वरन् सच्चाई है जिसका वर्णन महाभारत के शान्तिपर्व में है ।
भगवान जगन्नाथजी का रथयात्रा उत्सव क्यों मनाया जाता है ?
भगवान जगन्नाथजी मानव-धर्म, मानव-संस्कृति और विराट विश्व-चेतना के साक्षात् मूर्तिमान रूप हैं । समस्त मानव जाति को दर्शन देने, दु:खी मनुष्यों का कल्याण करने व अज्ञानी और अविश्वासी लोगों का भगवान पर विश्वास बनाये रखने के लिए भगवान वर्ष में एक बार अपने साथ बड़े भाई और बहिन सुभद्रा को लेकर रथयात्रा करते हैं ।
जगन्नाथजी का महाप्रसाद अपवित्र और जूठा क्यों नहीं माना जाता है...
एक बार महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी पुरी आये तो प्रसाद में उनकी निष्ठा की परीक्षा करने के लिए किसी ने एकादशी के दिन मन्दिर में ही महाप्रसाद दे दिया । श्रीवल्लभाचार्यजी ने महाप्रसाद हाथ में लेकर उसका स्तवन करना शुरु कर दिया और एकादशी के पूरे दिन तथा रात्रि में महाप्रसाद का स्तवन करते रहे । दूसरे दिन द्वादशी में स्तवन समाप्त करके उन्होंने प्रसाद ग्रहण किया ।
परमात्मा की प्राप्ति में भाव ही प्रधान है
बालगोपाल बोले—‘तुमने मेरा अर्चन किया ही कब ? तुम तो जड़ मूर्ति का पूजन करते रहे । तुमने मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा तो की पर उसमें मेरी उपस्थिति का भाव तुम्हें कभी नहीं आया । आज जब तुम्हें उस जड़ मूर्ति में मेरी उपस्थिति का आभास हुआ कि मैं मां को अर्पित किए गए हवन और भोग की गन्ध ग्रहण कर रहा हूँ तो मैं तुम्हारे सामने साक्षात् प्रत्यक्ष हो गया ।’
कब है गीता का अध्ययन सार्थक ?
गीता भगवान श्रीकृष्ण का संसार को दिया गया प्रसाद है । गीता को समझने के लिए सिर्फ और सिर्फ आवश्यक है श्रीकृष्ण की शरणागति । इसीलिए गीता में शरणागति की बात मुख्य रूप से आई है । गीता शरणागति से ही शुरु होती है और शरणागति में ही समाप्त हो जाती है ।
श्रीराधा के कृष्णमय बत्तीस नाम
श्रीराधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं तो श्रीकृष्ण उनके जीवनधन हैं। भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार ने श्रीराधा के कृष्णमय नामों का वर्णन किया है जिनसे श्रीराधा के कृष्णमय भाव-स्वरूप का बोध होता है |
पुराणों के सर्वश्रेष्ठ वक्ता : रोमहर्षण सूतजी
एक बार राजा पृथु ने यज्ञ का आयोजन किया । यज्ञ में देवराज इन्द्र को हवि का भाग देने के लिए सोम-रस निचोड़ा जा रहा था कि यज्ञ कराने वाले ऋषियों की गलती से इन्द्र के हवि में बृहस्पति का हवि (आहुति) मिल गया और उसे ही इन्द्र को अर्पण कर दिया गया । इसी हवि से अत्यन्त तेजस्वी सूतजी की उत्पत्ति हुई ।
हर प्रकार की अशुभता दूर करने के लिए गाय के अचूक...
गाय के साथ भूलकर भी न करें ये गलतियां—गाय साक्षात् जगदम्बा है अत: कभी भूल कर भी गाय को जूठी वस्तु न खिलाएं । गाय को कभी लांघना नहीं चाहिए । गाय यदि घर पर रखी है तो कभी भी उसे भूखा प्यासा न रखें, न ही उसे धूप में बांधे । गाय के लिए पर्याप्त चारे, पानी व सर्दी-गर्मी से बचाव का ध्यान रखना चाहिए । गौओं को लात व लाठी से न मारें । गौओं को जो लाठी से पीटते हैं उन्हें बिना हाथ का होकर यमलोक जाना पड़ता है ।
पुण्डरीक जिसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ईंट पर खड़े हैं
महाराष्ट्र के शोलापुर में चन्द्रभागा (भीमा) नदी के तट पर पंढरपुर मन्दिर है जहां श्रीकृष्ण पण्ढरीनाथ, विट्ठल, विठोबा और पांडुरंग के नाम से जाने जाते हैं और महाराष्ट्र के संतों के आराध्य हैं । यह महाराष्ट्र का प्रधान तीर्थ है ।