बन गए नन्दलाल लिलहारी,
लीला गुदवाय लेओ प्यारी,
लहंगा पहर ओढ़ सिर सारी,
अंगिया पहरी जापै जड़ी किनारी,
शीश पर शीसफूल बैना,
लगाय लियो काजल दोउ नैना,
पहन लियो नखशिख सों गहना,
नखशिख गहनों पहनकें करि सोलह सिंगार,
बलिहारी नंदनन्दन की बन गए नर सों नार,
बन गए नर सों नार, कि झोली कन्धा पै डारी,
बन गए नन्दलाल लिलहारी,
लीला गुदवाय लेओ प्यारी।।
लिलहारिन या लालिहारण का अर्थ
जिस प्रकार फूल बेचने वाली को ‘मालिन’, चूड़ी बेचने वाली को ‘मनिहारिन’ व पानी भरने वाली को ‘पनहारिन’ कहते हैं, वैसे ही जो लोग ‘शरीर पर गोदना गोदते हैं’, या ‘लीला गोदते हैं’ उन्हें ‘लिलहारिन’ या ‘लालिहारिण’ या ‘लालिहारण’ कहते हैं। वर्तमान समय में इसे ‘टैटू बनाने वाला’ कह सकते हैं। ‘लीला गोदना’ या ‘गोंदना गोदने’ की प्रथा हमारे समाज में बहुत प्राचीन समय से प्रचलित रही है। इसमें लोग अपने शरीर पर विशेष कर हाथ में गायत्री मन्त्र, ‘राम’, अपना नाम, अपने माता-पिता का नाम, गांव या शहर का नाम, फूल या जो भी आकृति पसन्द हो; गुदवाया करते थे। लीला गोदने का काम प्राय: मेलों में व गांव-गांव में घूमकर लिलहारिन (लालिहारण, लालिहारिन) किया करते थे।
भगवान श्रीकृष्ण की कथाओं व लीलाओं का कोई अंत नहीं है क्योंकि उनका व्रज में अवतार अपने भक्तों को आनन्द देने के लिए हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के रसिकभक्तों व संतों द्वारा गाई गयी मन को गुदगुदाने वाली एक लीला है–’लिलहारिन लीला’।
जब बरसाने की गलियों में श्रीकृष्ण बने लिलहारिन
राजा वृषभानु की पुत्री नवकिशोरी श्रीराधा बरसाने की लाड़ली बेटी थी अत: उन्हें कई नामों से पुकारा जाता है; जैसे–श्रीलाड़िलीजी, किशोरीजी, श्रीजी आदि। चूंकि इस कथा का सम्बन्ध बरसाने से हैं अत: यहां श्रीराधा के साथ ‘किशोरीजी’, ‘श्रीजी’ शब्द का प्रयोग भी किया गया है।
एक बार किशोरीजी किसी बात पर श्रीकृष्ण से रुठकर बैठ गयीं। अनेक दिन बीत गए पर वो श्रीकृष्ण से मिलने नहीं आईं। श्रीकृष्ण के भी चकोररूप नयन श्रीराधा के चन्द्रमुख का दर्शन करने के लिए व्याकुल होने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण के आह्लाद की स्वामिनी श्रीकिशोरीजी हैं। आनन्दकन्द श्रीकृष्ण से त्रिभुवन को आनन्द प्राप्त होता है, परन्तु श्रीकृष्ण को आनन्दित करती हैं श्रीराधा। श्रीकृष्ण का रूपमाधुर्य कोटि-कोटि कामदेवों के सौन्दर्य पर विजय प्राप्त कर चुका है, पर श्रीकृष्ण के नेत्र श्रीराधा के रूप-सौन्दर्य का दर्शन करके ही शीतल होते हैं। श्रीकृष्ण की वंशीध्वनि का माधुर्य चौदह भुवनों को आकर्षित करता है, पर श्रीकृष्ण के कान श्रीराधा के वचनों से ही तृप्त होते हैं।
चौदह भुवन-लोकत्रय-स्वामी अखिल जगत आधार।
सोइ नित जाके हाथ बिकानो, करत रहत मनुहार।।
श्रीराधा को मनाने व उनके प्रेम की परीक्षा के लिए लीलाधर श्रीकृष्ण को एक लीला सूझी। ब्रज में लीला गोदने वाली स्त्री को लालिहारिन (पुरुष हो तो लालिहारण) कहा जाता है। मायापति श्रीकृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारिन का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में घूमने लगे।
‘श्रीराधे! तुम्हारी प्रेमडोर में बंधे हुए भगवान श्रीकृष्ण पतंग की भांति सदा तुम्हारे आस-पास ही चक्कर लगाते रहते हैं, तुम्हारे हृदय के भाव का अनुसरण करके तुम्हारे पास ही रहते तथा क्रीडा करते और कराते हैं।’
लालिहारिन बने श्रीकृष्ण की अद्भुत रूपमाधुरी
भगवान श्रीकृष्ण ने लालिहारिन का अद्भुत वेष धारण कर रखा था। उन्होंने सुन्दर लहंगा-चुनरी पहनकर घूंघट ओढ़ रखा था। दोनों कमलनयनों में काजल लगाकर केशों में बड़ी कुशलता से वेणी सजाई हुई थी। चलते समय उनके पैरों से नूपुरों की मधुर झनकार हो रही थी। कमर की करधनी में लगी छोटी-छोटी घण्टियां भी मधुर खनखनाहट कर रहीं थीं। माथे का शीशफूल बालसूर्य के समान चमक रहा था। हाथों में कंगन, बांहों में बाजूबन्द, ऊंगलियों में मुद्रिकाएं व गले में गजमुक्ता के हार व नाक में मोती की बुलाक उनके श्यामरंग पर अपूर्व शोभा दे रही थी। इस प्रकार श्रीकृष्ण नखशिख श्रृंगार करके नर से पूरे नारी बन गए थे।
लीला गुदवा लो प्यारी
अखिल ब्रह्माण्डनायक व चौदहों लोकों के स्वामी श्रीकृष्ण लालिहारिन बने किशोरीजी के दर्शन के लिए बरसाने की गलियों में श्रीजी के महल के नीचे गुहार लगा रहे हैं–
मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी।
दीदार की मैं प्यासी हूँ, मुझे दर्शन दो वृषभानुदुलारी।।
हाथ जोड़ विनती करूँ, अर्ज ये मान लो हमारी।
आपकी गलिन में गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी।।
श्रीराधा ने की सारे श्रीअंग पर लीला गुदवाने की फरमाइश–‘रोम रोम पे लिखदे मेरे रसिया रासबिहारी’
जब किशोरीजी ने यह मधुर पुकार सुनी तो तुरंत विशाखासखी को जाकर उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा। घूंघट में अपने मुंह को छिपाते हुए श्रीकृष्ण किशोरीजी के सामने पहुंचे। लालिहारिन की बांकी चितवन, मधुर वाणी, चाल-ढाल और मनोहर मुसकान को देखकर श्रीराधा ने लालिहारिन से कहा–’सखी! तुम्हारा रूप मुझे बहुत प्यारा लग रहा है क्योंकि तुम्हारी आकृति मेरे प्राणबल्लभ व्रजराजकुमार जैसी है।’
मायापति नटवर श्रीकृष्ण तुरन्त बात बदलते हुए श्रीराधा का हाथ पकड़ कर बोले–’कहो सुकुमारी, तुम्हारे हाथ पर किसका नाम लिखूं?’
किशोरीजी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्रीअंग पर लीला गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरीजी बता रही हैं–
शीश पै लिख दे श्रीगिरधारी,
माथे पै लिख मदनमुरारी,
दृगन पै लिख दे दीनदयाला,
नासिका पै लिख दे नन्दलाला,
कपोलन पै लिख कृष्णगुपाला,
श्रवणन पर लिख सांवरो, अधरन आनन्दकन्द।
ठोड़ी पै ठाकुर लिखौ, गले पै गोकुलचन्द।।
छाती पै लिख छलिया, बांहन पै लिखौ बिहारी।
बन गए नन्दलाल लिलहारी, लीला गुदवाय लेओ प्यारी।।
हस्तन पै हलधरजी को भैया,
अंगुरिन पर आनन्द करैया,
पेट पै लिख दे परमानन्द,
नाभि पर लिख नंदनदन,
जांघ पर लिख दे जयगोविन्द,
घोंटुन में घनश्याम लिख, पिड़रिन में प्रतिपाल।
चरणन में चितचोर लिख, जगपति जयगोपाल।।
हिय में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी।
रोम रोम में लिखौ रमापति, राधावर बनवारी।।
जब श्रीकृष्ण ने सुना कि श्रीराधा अपने रोम-रोम पर उनका नाम लिखवाना चाहती हैं, तो वे खुशी से बौरा गए। उन्हें अपनी सुध नहीं रही। वे खड़े होकर जोर-जोर से नाचने और उछलने लगे और भूल गए कि वो वृषभानुमहल में एक लालिहारण के वेश में श्रीराधा के सामने ही बैठे हैं–
लीला गोद प्रेम गस आयौ जी,
तन मन कौ सब होश गमायौ जी,
खबर झोली झंडा की नाय,
धरन पै चरन नांय ठहरांय,
सखी सब देखत ही रह जांय।
खुल गई श्रीकृष्ण की पोल
उनके इस व्यवहार से श्रीराधाजी और उनकी सब सखियों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस लालिहारिन को क्या हो गया? तभी श्रीकृष्ण का घूंघट गिर गया और ललितासखी को उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया; श्रीराधा ने उनके अंगवस्त्र में छिपी वंशी को देख लिया और वो जोर से बोल उठीं–’ये तो छलिया नंदनन्दन है।’
देखत ही सखी सब रह गईं,
छलिया है ढोटा नन्द कौ,
अंगिया में वंशी छिप रही,
राधे ने लई निकार के,
हे प्यारे! हे प्यारी! कही,
भेटे हैं भुजा पसार के,
‘घासीराम’ जुगल जोड़ी पै बार बार बलिहारी,
बन गए नन्दलाल लिलहारी,
लीला गुदवाय लेओ प्यारी।
श्रीकृष्ण और श्रीराधा दोनों बांहें फैलाकर एक-दूसरे से मिले। इस प्रकार दोनों प्रिया-प्रियतम का मिलन हुआ। अपने प्रेम के इज़हार पर (सारे शरीर पर कृष्णनाम लिखवाने को लेकर) किशोरीजी बहुत लज्जित हो गयीं और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के अलावा कोई रास्ता न था। उधर श्रीकृष्ण भी किशोरीजी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकार गद्गद हो गए। श्रीराधा नंदनन्दन को देखकर परमानन्द में निमग्न हो गयीं क्योंकि उनका श्रीकृष्ण दर्शन का मनोरथ पूर्ण हो गया। भगवान श्रीकृष्ण के ऐसे अद्भुत चरित्रों को भक्तिभाव से सुनने और पढ़ने से मनुष्य कृतार्थ हो जाता है।
प्रेम के खिलौना दोऊ, खेलत हैं प्रेम खेल।
प्रेम फूल फूलन सों प्रेमसेज रची है।
प्रेम ही की चितवन, मुसकिन प्रेम ही की,
प्रेम रंगी बातै करैं, प्रेम-केलि मची है।।