ganesh bhagwan

प्रकृति पुरुष तैं परे ध्यान गणपति को करिहै।
नसैं सकल तिनि विघ्न अवसि भवसागर तरिहै।।
पाठ-हवन पूजन करें, पाप रहित होवैं भगत।
सब विघ्ननि तैं छूटिकैं, लेंहिं जनम नहिं पुनि जगत।। (श्रीप्रभुदत्त ब्रह्मचारीजी)

श्री गणेश के पास है सभी समस्याओं का हल

श्रीरामनाम अनुरागी माता पिता श्रीशंकर-पार्वती के पुत्र श्री गणेश भी बड़े हरिनाम प्रिय हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार स्वयं परब्रह्म गोलोकनिवासी श्रीकृष्ण अपने अंश से पार्वतीमाता के पुण्यक व्रत से पुत्र गणेश के रूप में प्रकट हुए हैं। जैसे भगवान श्रीकृष्ण के नामोच्चारण से सभी संकट दूर हो जाते हैं, वैसे ही श्री गणेश के नामोच्चारण से सभी बाधाएं, विघ्न, शाप, शोक दूर हो जाते हैं।

विमाता (सौतेली माता) छाया ने दिया यमराज को शाप

भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा की तीन संतानें—वैवस्वत मनु, यम और यमुना हुए। संज्ञा सूर्य के तेज को सहन नहीं कर पा रहीं थीं। अत: एक दिन सूर्य के घर में अपनी छाया स्थापित कर वह अश्विनी (घोड़ी) के रूप में उत्तरकुरु देश (वर्तमान में हरियाणा)  तप करने चली गयीं। सूर्य को भी इस रहस्य का पता नहीं चला। छाया से सूर्य के चार संतानें—सावर्णि मनु, शनि, तपती और विष्ठि हुईं। छाया का अपने बच्चों पर बहुत प्रेम था।

सूर्य पत्नी छाया यम और यमुना से सौतेली माता का-सा व्यवहार करती थी। एक बार यमुना और तपती में विवाद हो गया और एक-दूसरे को शाप देकर वे नदी बन गयी।

एक दिन यम को छाया की वास्तविकता का पता चल गया। माता के बर्ताब से खिन्न यम ने पिता सूर्य के सामने छाया का सारा राज खोल देते हुए कहा—‘यह हम लोगों की माता नहीं है और इसका व्यवहार हम लोगों के साथ सौतेली माता के समान है।‘ यम ने क्रुद्ध होकर छाया को मारने के लिए पैर उठाया।

क्रोधित छाया ने यम को शाप दे दिया—‘तुमने मेरे ऊपर चरण उठाया है इसलिए तुम प्राणियों की प्राणहिंसा करने का कर्म करोगे। यदि तुम मेरे द्वारा शापित अपने पैर को पृथ्वी पर रखोगे तो कीड़े उसे खा जाएंगे।’

भगवान सूर्य को सारी बात का पता लगा तो उन्होंने अपने तेजोबल से शाप में सुधार करते हुए यम को वरदान दिया कि ‘पापात्माओं में तुमसे भय होगा और संत तुमसे पीड़ित न होंगे। ब्रह्माजी की आज्ञा से तुम लोकपाल पद प्राप्त करोगे।’ इसी कारण यम धर्मराज के रूप में प्रतिष्ठित होकर पाप-पुण्य का निर्णय करते हैं।

सूर्य ने कहा—‘यमुना का जल गंगाजल के समान पवित्र माना जाएगा और तपती का जल नर्मदाजल के तुल्य पवित्र होगा। आज से छाया सबकी देह में स्थित रहेगी।’

यम ने भी छाया और उसके पुत्र शनि को शाप देते हुए कहा—‘तुम्हारा सूर्य की किरणों से मेल न हो सकेगा और माता के दोष से शनि की दृष्टि में क्रूरता भरी रहेगी।’

माता के शाप से छूटने के लिए यमराज ने की श्रीगणेश आराधना

महिष पर चलने वाले, दक्षिण दिशा के स्वामी धर्मराज यम बारह महाभागवतों में से एक हैं। वे भक्ति के आचार्य माने जाते हैं। पुराणों में इनके नाम से विभिन्न यमगीताएं मिलती हैं। धर्मराज यम ने माता के शाप से छूटने के लिए नामलगांव (मराठावाड़) में आशापूरक गणेशजी की मूर्ति स्थापित कर आराधना की थी।

namal gaon bhagwan shri ganesh

यमराज द्वारा कहे गए श्रीगणेश के 108 नाम

यहां यमराज के द्वारा कहे गये भगवान गणेश के अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र (108 नामों के स्तोत्र) का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है।

यमराज अपने दूतों से कहते हैं—

हे दूतो! जो लोग (1) गणेश (2) हेरम्ब (3) गजानन (4) महोदर (5) स्वानुभवप्रकाशिन् (6) वरिष्ठ (7) सिद्धिप्रिय (8) बुद्धिनाथ! इस प्रकार उच्चारण करते हों, उनसे अत्यन्त भयभीत रहकर तुम उन्हें दूर से ही त्याग देना ।।1।।

जो हे (9) अनेकविघ्नान्तक (10) वक्रतुण्ड (11) स्वानन्दलोकवासिन् (12) चतुर्भुज (13) कवीश (14) देवान्तकनाशकारिन्—इस प्रकार उच्चारण करते हों, उनसे अत्यन्त डरे रहकर उन्हें छोड़ देना, उन्हें पकड़कर लाने की चेष्टा न करना ।।2।।

जो हे (15) महेशनन्दन (16) गजदैत्यशत्रो (17) वरेण्यपुत्र (18) विकट (19) त्रिनेत्र (20) परेश  (21) पृथ्वीधर (22) एकदन्त—इस प्रकार उच्चारण करते हों, उनसे भयभीत रहकर उन्हें दूर से ही त्याग देना ।।3।।

हे (23) प्रमोद (24) मोद (25) नरान्तकारे (26) षडूर्मिहन्त: (27) गजकर्ण (28) ढुण्ढे (29) द्वन्द्वाग्निसिन्धो (30) स्थिरभावकारिन्—इस प्रकार उच्चारण करने वाले व्यक्तियों को उनसे डरते हुए दूर से ही छोड़ देना।।4।।

हे (31) विनायक (32) ज्ञानविघातशत्रो (33) पराशरात्मज (34) विष्णुपुत्र (35) अनादिपूज्य (36) आखुग (मूषकवाहन) (37) सर्वपूज्य—इस प्रकार उच्चारण करने वालों को भयभीत होकर छोड़ देना।।5।।

हे (38) विरंचिनन्दन (39) लम्बोदर (40) धूम्रवर्ण (41) मयूरपाल (42) मयूरवाहन (43) सुरासुरसेवितपादपद्म—ऐसा उच्चारण करने वाले व्यक्तियों को उनसे भय मानकर त्याग देना।।6।।

हे (44) करिन् (45) महाखुध्वज (46) शूपकर्ण (47) शिव (48) अज (49) सिंहवाहन (50) अनन्तवाह (51) दयासिन्धो (52) विघ्नेश्वर (53) शेषनाभे—ऐसा उच्चारण करने वाले व्यक्तियों को दूर से ही त्याग देना और उनसे अत्यन्त भयभीत रहना।।7।।

हे (54) सूक्ष्म से भी अत्यन्त सूक्ष्म और महान से भी अत्यन्त महान (55) रविपूज्य (56) योगेशज (57) ज्येष्ठराज (58) निधीश (59) मन्त्रेश (60) शेषपुत्र—ऐसा उच्चारण करने वाले व्यक्तियों को त्याग देना और उनसे अत्यन्त भयभीत रहना।।8।।

हे (61) वरप्रदाता (62) अदितिनन्दन (63) परात्परज्ञानद (64) तारकवक्त्र (65) गुहाग्रज (66) ब्रह्मप (67) पार्श्वपुत्र—ऐसा उच्चारण करने वालों को छोड़ देना और उनसे डरते रहना।।।9।।

हे (68) सिन्धुशत्रो (69) परशुप्रपाणे (70) शमीशपुष्पप्रिय (71) विघ्नहारिन् (72) दूर्वांकुरपूजित (73) देवदेव—ऐसा कहने वालों को दूर से ही त्याग देना और उनसे डरते रहना।।10।।

हे (74) बुद्धिप्रद (75) शमीप्रिय (76) सुसिद्धिदायक (77) सुशान्तिप्रदायक (78) अमेयमाय (79) अमितविक्रम—ऐसा कहने वालों को दूर से ही त्याग देना और उनसे डरते रहना।।11।।

हे (80) शुक्ल-कृष्ण-द्विविध (81) चतुर्थीप्रिय (82) कश्यपपूज्य (83) धनप्रदायक (84) ज्ञानपदप्रकाश (85) चिन्तामणे (86) चित्तविहारकारिन् —ऐसा जो उच्चारण करते हों, उनको दूर से ही त्याग देना और उनसे सदा डरते रहना।।12।।

हे (87) यमशत्रु (88) अभिमानशत्रु (89) विधूद्भवारे (कामनाशन) (90) कपिलपुत्र (91) विदेह (92) स्वानन्दस्वरूप (93) अयोगयोग गणेश—ऐसा जो उच्चारण करते हों, उनको दूर से ही त्याग देना और उनसे सदा डरते रहना।।13।।

हे (94) दैत्यगण और कमलासुर के शत्रु (95) समस्त भावों के ज्ञाता (96) भालचन्द्र गणेश (97) आदि, मध्य और अन्त से रहित (98) भय का नाश करने वाले—ऐसा जो उच्चारण करते हों, उनको दूर से ही त्याग देना और उनसे सदा डरते रहना।।14।।

हे (99) विभो (100) जगत्स्वरूप (101) गणेश (102) भूमन् (103) पुष्टिपते (104) आखुगते (105) अतिबोध (106) स्रष्टा (107) पालक (108) संहारक—ऐसा जो उच्चारण करते हों, उनको दूर से ही त्याग देना और उनसे सदा डरते रहना।।15।।

श्रीगणेश के 108 नामों के पाठ से मिलता है खुशहाली का वरदान

यह भगवान ढुण्ढिराज गणेश का स्तोत्र है। यमराज ने दूतों को आदेश दिया कि जो लोग नित्य इन एक सौ आठ नामों का पाठ करते हैं या सुनते हैं और जिन घरों में भगवान श्रीगणेश के चिह्न हों, उनसे सदैव भयभीत होकर दूर रहना, उस घर में प्रवेश न करना। इस अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य सभी प्रकार के भोग और मोक्ष प्राप्त करता है। भगवान गणेश जब प्रसन्न हो जाते हैं तब दसों दिशाओं से मनुष्य को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और सारे पाप दूर हो जाते हैं। गणेशजी का स्मरण सभी सुमंगलों की खान व कार्यों में सफलता देने वाला है

भाव-भगति से कोई शरणागत आवे।
संतत सम्पत सबही भरपूर पावे।।

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