भगवान सूर्य का परिवार
भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं । आदित्य लोक में भगवान सूर्य साकार रूप से विद्यमान हैं । वे रक्त कमल पर विराजमान हैं, उनका वर्ण हिरण्यमय है । उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें दो हाथों में वे पद्म धारण किए हुए हैं और दो हाथ अभय तथा वर मुद्रा से सुशोभित हैं । वे सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं और गरुड़ के छोटे भाई अरुण उनके रथ के सारथि हैं ।
सीताजी का गायत्री-मन्त्र और 10 नाम की महिमा
श्रीरामवल्लभा सीताजी जीवों के लिए सभी प्रकार के श्रेय को देने वाली हैं । उन की कृपा से जीव भौतिक सुख और साधन पाकर इस संसार में सभी प्रकार की समृद्धियों का उपभोग करता है और लौकिक आनंद से आह्लादित होता है । यही सीताजी की महिमा है ।
श्रीरामनवमी व्रत व पूजन विधि
श्रीराम सर्वात्मा व विश्वमूर्ति हैं । उनका जीवन-मंत्र था—‘बहुतों के साथ चलने में ही सच्चा सुख है, अल्प में नहीं । अपने को शुद्ध करो, ज्ञान का विस्तार करो, सद्भाव व समभाव से जीवन को राममय बनाओ, स्वयं आनन्दित रहो और दूसरों को भी आनन्दित करते रहो—यही सच्चा रामत्व है ।’
भगवान श्रीसीताराम का विवाहोपहार : कनक भवन
सीता-स्वयंवर के बाद जब श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न विवाहित होकर अयोध्या लौटे तो महारानी कैकयी ने उस नव-निर्मित कनक भवन को अपनी बहू सीताजी को भेंट कर दिया । इसके बाद कनक भवन श्रीराम और सीताजी का आवास बन गया ।
हनुमानजी की चुटकी सेवा
सेवा का साकार रूप हनुमानजी बोले—‘प्रभु को जब जम्हाई आएगी, तब उनके सामने चुटकी बजाने की सेवा मेरी ।’ यह सुनकर सब चौंक गये । इस सेवा पर तो किसी का ध्यान गया ही नहीं था लेकिन अब क्या करें ? अब तो इस पर प्रभु की स्वीकृति हनुमानजी को मिल चुकी है । हनुमानजी का बुद्धि-चातुर्य दर्शाती एक रोचक कथा ।
श्रीराधा ने अपने प्रिय भक्त के लिए जब खीर बनाई
जब भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम की लालसा सभी भोगों और वासनाओं को समाप्त कर प्रबल हो जाती है, तभी साधक का व्रज में प्रवेश होता है । यह व्रज भौतिक व्रज नहीं वरन् इसका निर्माण भगवान के दिव्य प्रेम से होता है ।
सभी प्रकार के कष्टों का एक समाधान : तुलादान
सोलह महादानों में पहला महादान तुला दान या तुलापुरुष दान है । तुलादान अत्यन्त पौराणिक काल से प्रचलन में है । सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने तुलादान किया था, उसके बाद राजा अम्बरीष, परशुरामजी, भक्त प्रह्लाद आदि ने इसे किया । कलिकाल में यह तुलादान प्राय: काफी प्रचलन में है ।
देने से चलती है दुनिया
कलियुग का कल्पवृक्ष है दान । जिस प्रकार कल्पवृक्ष के नीचे जो भी वस्तु की याचना की जाती है, वह पूरी होती है, उसी तरह विभिन्न वस्तुओं के दान से मनुष्य की कौन-सी इच्छा पूरी होती है, पढ़ें एक ज्ञानवर्धक लेख ।
श्रीराम : ‘अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ’
भगवान श्रीराम के जन्मस्थान का दर्शन करने से प्रतिदिन सहस्त्रों कपिला गायों के दान का फल मिलता है । माता-पिता और गुरु-भक्ति का जो फल है, वह जन्मस्थान के दर्शन करने मात्र से मिल जाता है ।
भगवत्सेवा से बढ़कर है संत-सेवा
गृहस्थ में रहकर यदि मनुष्य अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार जीविका उपार्जन करता हुआ भगवान के भजन के साथ संत-सेवा और दान-पुण्य आदि कर्म करता रहे तो इससे भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं ।