shri krishna tula daan

हिन्दू संस्कृति में दान और त्याग मुख्य हैं जबकि आसुरी संस्कृति में भोग और संचय की प्रधानता रहती है ।  पुराणों व स्मृतियों में सोलह महादान बताए गए हैं—

  1. तुलादान या तुलापुरुष दान
  2. हिरण्यगर्भ दान
  3. ब्रह्माण्ड दान
  4. कल्पवृक्ष दान
  5. गोसहस्त्र दान
  6. हिरण्यकामधेनु दान
  7. हिरण्याश्व दान
  8. हिरण्याश्वरथ दान
  9. हेमहस्तिरथ दान
  10. पंचलांगलक दान
  11. धरा दान
  12. विश्वचक्र दान
  13. कल्पलता दान
  14. सप्तसागर दान
  15. रत्नधेनु दान तथा
  16. महाभूतघट दान

ये दान सामान्य दान नहीं है, अपितु सर्वश्रेष्ठ दान हैं । ये सभी दान सामान्य आर्थिक स्थिति वालों के लिए संभव नहीं है । इनमें से एक भी दान यदि किसी के द्वारा सम्पन्न हो जाए तो उसका जीवन ही सफल हो जाता है । जो निष्काम भाव से इन सोलह महादानों को करता है, उसे पुन: इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता है, वह मुक्त हो जाता है ।

तुलादान या तुलापुरुष दान

सोलह महादानों में पहला महादान तुलादान या तुलापुरुष दान है । तुलादान अत्यन्त पौराणिक काल से प्रचलन में है । सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने तुलादान किया था, उसके बाद राजा अम्बरीष, परशुरामजी, भक्त प्रह्लाद आदि ने इसे किया । कलिकाल में यह तुलादान प्राय: काफी प्रचलन में है । 

 इसमें तुला की एक ओर तुला दान करने वाला तथा दूसरी ओर दाता के भार के बराबर की वस्तु तौल कर ब्राह्मण को दान में दी जाती है । तुला दान में इन्द्रादि आठ लोकपालों का विशेष पूजन होता है । तुलादान करने वाला अंजलि में पुष्प लेकर तुला की तीन परिक्रमा इन मन्त्रों का उच्चारण करके करता है—

नमस्ते सर्वभूतानां साक्षिभूते सनातनि ।
पितामहेन देवि त्वं निर्मिता परमेष्ठिना ।।
त्वया धृतं जगत्सर्वं सहस्थावरजंगमम् ।
सर्वभूतात्मभूतस्थे नमस्ते विश्वधारिणि ।।

‘हे तुले ! तुम पितामह ब्रह्माजी द्वारा निर्मित हुई हो । तुम्हारे एक पलड़े पर सभी सत्य हैं और दूसरे पर सौ असत्य हैं । धर्मात्मा और पापियों के बीच तुम्हारी स्थापना हुई है । मुझे तौलती हुई तुम इस संसार से मेरा उद्धार कर दो । तुलापुरुष नामधारी गोविन्द आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है ।’

ऐसा कहकर दानदाता तुला के एक तरफ बैठ जाए और ब्राह्मणगण तुला के दूसरे पलड़े पर दान की जाने वाली वस्तु को तब तक रखते जाएं, जब तक कि तराजू का पलड़ा भूमि को स्पर्श न कर ले ।

तुलादान में ध्यान रखने योग्य बात

इसके बाद तुला से उतरकर दानदाता को तौले गए दान की गयी वस्तु तुरन्त ब्राह्मणों को दे देनी चाहिए । देर तक घर में रखने से दानदाता को भय, व्याधि तथा शोक की प्राप्ति होती है । शीघ्र ही दान दे देने से मनुष्य को उत्तम फल की प्राप्ति होती है ।

किन वस्तुओं का होता है तुलादान ?

प्राचीन समय में मनुष्य के शरीर के भार के बराबर स्वर्ण तौला जाता था किन्तु कलियुग का स्वर्ण अन्न है, इसलिए कलियुग में स्वर्ण के स्थान पर सप्त धान्य या अन्न से तौला जाता है ।

  • रोगों की शान्ति के लिए भगवान मृत्युंजय को प्रसन्न करने के लिए लौहे से तुलादान किया जाता है ।
  • विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए
    • रत्न
    • चांदी
    • लोहा आदि धातु
    • घी
    • लवण (नमक)
    • गुड़
    • चीनी
    • ️चंदन
    • कुमकुम
    • वस्त्र
    • सुगन्धित द्रव्य
    • कपूर
    • फल व
    • विभिन्न अन्नों से तुलादान किया जाता है ।
  • सौभाग्य की इच्छा रखने वाली स्त्री को कृष्ण पक्ष की तृतीया को कुंकुम, लवण (नमक) और गुड़ का तुलादान करना चाहिए ।

तुलादान की महिमा

  • तुलादान करने से मनुष्य ब्रह्महत्या, गोहत्या, पितृहत्या व झूठी गवाही जैसे अनेक पापों से मुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है ।
  • आधि-व्याधि, ग्रह-पीड़ा व दरिद्रता के निवारण के लिए तुलादान बहुत श्रेष्ठ माना जाता है । इसको करने से  मनुष्य को अपार मानसिक शान्ति प्राप्त होती है ।
  • यदि नि:स्वार्थभाव से भगवान की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए भगवदर्पण-बुद्धि से तुलादान किया जाए तो तुलापुरुष का दान करने वाले को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है । अनेक कल्पों तक वहां रहकर जब पुण्यों के क्षय होने पर पुन: जन्म लेता है तो धर्मात्मा राजा बनता है ।
  • इतना ही नहीं, इस प्रसंग को पढ़ने-सुनने या तुलादान को देखने या स्मरण करने से भी मनुष्य को दिव्य लोक की प्राप्ति होती है ।
  • यदि किसी कामना से तुलादान किया जाए तो वह दाता की मनोकामना पूर्ति में सहायक होता है ।

किस स्थान पर करें तुलादान ?

तीर्थस्थान में, मन्दिर, गौशाला, बगीचा, पवित्र नदी के तट पर, अपने घर पर, पवित्र तालाब के किनारे या किसी पवित्र वन में तुलादान करना श्रेष्ठ होता है ।

भारत में द्वारकापुरी में द्वारकाधीश मन्दिर के पास एक तुलादान मन्दिर है । ऐसा माना जाता है कि सत्यभामाजी ने इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण का तुलादान किया था । इस मन्दिर में सभी प्रकार के कष्टों के निवारण के लिए तुलादान किया जाता है ।

कामना-रहित यह दान-धर्म, परम श्रेय सोपान है ।
जो दान-धर्म में दृढ़ रहता, उनका सब दिन कल्याण है ।।

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