रामावतार की यज्ञ-सीताओं और गोपियों का क्या है सम्बन्ध ?

गोपियों का एक यूथ ‘रामावतार में यज्ञ में स्थापित सीताजी की प्रतिमाओं’ का था । कैसे यज्ञ-सीताएं गोपी रूप में अवतरित हुईं—वहीं प्रसंग इस ब्लॉग में दिया जा रहा है ।

महर्षि वाल्मीकि और उनका आदिकाव्य ‘वाल्मीकीय रामायण’

सरस्वतीजी कवित्व की शक्ति हैं । सरस्वतीजी की प्रेरणा से ही उनके मुख की वह वाणी, जो उन्होंने क्रौंची को सान्त्वना देने के लिए कही थी, छन्दमय (कविता) बन गयी । यह श्लोक देवी सरस्वती के कृपा प्रसाद से ही महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था । वेदों की बात तो अलग है; परन्तु अब तक लोक में छन्द में बद्ध रचना का प्रारम्भ नहीं हुआ था । पहली बार वाल्मीकिजी के मुख से छन्द में बद्ध पद्य (कविता) फूट पड़ी थी ।

कलियुग का खेल

जैसे द्वार की देहरी पर रखा दीपक कमरे में और कमरे के बाहर भी प्रकाश फैला देता है, वैसे ही यदि तुम अपने बाहर और भीतर प्रकाश चाहते हो तो जीभ की देहरी पर राम-नाम का मणिद्वीप रख दो ।

रावण जिसने श्रीराम से शत्रुता कर पाई परम गति

कई बार मन में यह प्रश्न उठता है कि रावण जैसा प्रकाण्ड विद्वान जिसने अपने शीश अर्पण कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, ‘शिव ताण्डव स्तोत्र’ जैसे काव्य की रचना की; वह सीताहरण जैसे निन्दनीय कर्म को कैसे कर सकता है ? क्या वह इतना अज्ञानी था या इसके पीछे उसका कोई गुप्त उद्देश्य था ?

जैसी वीर माता अजंना वैसे महावीर पुत्र हनुमान

माता अंजना लक्ष्मणजी के मन के भाव ताड़ गईं और बोली—‘ऐसा लगता है कि छोटे राजकुमार को मेरे दूध पर संदेह हो रहा है । मैं इन्हें अभी अपने दूध का प्रभाव दिखाती हूँ ।’ यह कह कर माता ने अपने स्तन से दूध की एक धार सामने के पर्वत पर छोड़ी । दूध की धार से वह समूचा पर्वत फट गया । यह देख कर सभी आश्चर्यचकित रह गए ।

श्रीहनुमंतलला का अलौकिक बालचरित्र

हनुमंतलला का बालपन भी कितना दिव्य था । सदाचारिणी, परम तपस्विनी, सद्गुणी माता अंजना अपने दूध के साथ श्रीरामकथा रूपी अमृत उन्हें पिलाती थीं । हनुमंतलला उस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो जाते । कथा कहते हुए यदि माता सो जाती को हनुमंतलला उन्हें हाथों से झकझोर कर और रामकथा सुनाने के लिए हठ करते थे |

भगवान श्रीकृष्ण का लीला संवरण कर गोलोक गमन

श्रीकृष्ण निपट मनुष्य होकर रह गए । दारुक भी चला गया । श्रीकृष्ण के पास कोई नर नहीं रहा, न ही नारायण का कोई साज रहा । जिस धरती पर वे बचपन में नंगे पैर चले, उसी की धूलि में सने श्रीकृष्ण जाने कब चले गए, किसी मनुष्य ने नहीं देखा । केवल विधाता, देवता और पितर ही उस उजड़ती धरती को देख सके । इस रोती हुई पृथ्वी को अनाथ करके भगवान गोलोक पधार गए । भगवान श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे इस लोक से सत्य, धर्म, धैर्य, कीर्ति और श्रीदेवी भी चली गयीं ।

श्रीराम जिन पर शत्रु की स्त्रियां भी करती हैं नाज

महारानी मन्दोदरी के ज्ञान-चक्षु खुल गए । उन्हें समझ आ गया कि उनके प्रियतम पति लंकाधिपति रावण में चरित्र-बल नहीं था, इसी कारण वे अपने भाई, पुत्र तथा पौत्रों सहित मारे गए ।

सूर्य देव को लाल चंदन और कनेर के पुष्प अत्यंत प्रिय...

भगवान सूर्य ने विश्वकर्मा के कथनानुसार अपने सारे शरीर में इनका लेप किया, जिससे उनकी सारी वेदना मिट गयी । उसी दिन से लाल चंदन और कनेर (करवीर) के पुष्प भगवान सूर्य को अत्यंत प्रिय हो गए और उनकी पूजा में प्रयुक्त होने लगे ।

भगवान सूर्य का परिवार

भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं । आदित्य लोक में भगवान सूर्य साकार रूप से विद्यमान हैं । वे रक्त कमल पर विराजमान हैं, उनका वर्ण हिरण्यमय है । उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें दो हाथों में वे पद्म धारण किए हुए हैं और दो हाथ अभय तथा वर मुद्रा से सुशोभित हैं । वे सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं और गरुड़ के छोटे भाई अरुण उनके रथ के सारथि हैं ।