रावण जिसने श्रीराम से शत्रुता कर पाई परम गति

कई बार मन में यह प्रश्न उठता है कि रावण जैसा प्रकाण्ड विद्वान जिसने अपने शीश अर्पण कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, ‘शिव ताण्डव स्तोत्र’ जैसे काव्य की रचना की; वह सीताहरण जैसे निन्दनीय कर्म को कैसे कर सकता है ? क्या वह इतना अज्ञानी था या इसके पीछे उसका कोई गुप्त उद्देश्य था ?

सीता जी की चूड़ामणि

प्रभु श्रीराम के विवाह के बाद मां जानकी की मुंहदिखाई की रस्म शुरु हुई । कृपा की मूर्ति महारानी सुमित्रा ने जब घूंघट की ओट से जनकदुलारी का मुख देखा तो वे बस उन्हें देखती ही रह गईं और वात्सल्यवश नववधू को सौभाग्य का आशीर्वाद देते हुए उन्होंने अपने केशों से सजी चूडामणि को निकाल कर जानकी जी के जूड़े में सजा दिया ।

भगवान सूर्य का परिवार

भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं । आदित्य लोक में भगवान सूर्य साकार रूप से विद्यमान हैं । वे रक्त कमल पर विराजमान हैं, उनका वर्ण हिरण्यमय है । उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें दो हाथों में वे पद्म धारण किए हुए हैं और दो हाथ अभय तथा वर मुद्रा से सुशोभित हैं । वे सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं और गरुड़ के छोटे भाई अरुण उनके रथ के सारथि हैं ।

भगवान श्रीसीताराम का विवाहोपहार : कनक भवन

सीता-स्वयंवर के बाद जब श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न विवाहित होकर अयोध्या लौटे तो महारानी कैकयी ने उस नव-निर्मित कनक भवन को अपनी बहू सीताजी को भेंट कर दिया । इसके बाद कनक भवन श्रीराम और सीताजी का आवास बन गया ।

कलियुग का खेल

जैसे द्वार की देहरी पर रखा दीपक कमरे में और कमरे के बाहर भी प्रकाश फैला देता है, वैसे ही यदि तुम अपने बाहर और भीतर प्रकाश चाहते हो तो जीभ की देहरी पर राम-नाम का मणिद्वीप रख दो ।

भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न बाँसुरियां

‘श्रीकृष्ण’ शब्द का अर्थ है ‘सबको अपनी ओर आकर्षित करने वाला।’ श्रीकृष्ण बाँसुरी की दिव्य मधुर ध्वनि से समस्त जीवों को अपनी ओर आकर्षित...

जानकी जी की रुदन लीला

भगवान शंकर और श्रीरामजी में अनन्य प्रेम है । जब-जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तब-तब भोले-भण्डारी भी अपने आराध्य की मनमोहिनी लीला के दर्शन के लिए पृथ्वी पर उपस्थित हो जाते हैं । भगवान शंकर एक अंश से अपने आराध्य की लीला में सहयोग करते हैं और दूसरे रूप में उनकी लीलाओं को देखकर मन-ही-मन प्रसन्न होते हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण का लीला संवरण कर गोलोक गमन

श्रीकृष्ण निपट मनुष्य होकर रह गए । दारुक भी चला गया । श्रीकृष्ण के पास कोई नर नहीं रहा, न ही नारायण का कोई साज रहा । जिस धरती पर वे बचपन में नंगे पैर चले, उसी की धूलि में सने श्रीकृष्ण जाने कब चले गए, किसी मनुष्य ने नहीं देखा । केवल विधाता, देवता और पितर ही उस उजड़ती धरती को देख सके । इस रोती हुई पृथ्वी को अनाथ करके भगवान गोलोक पधार गए । भगवान श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे इस लोक से सत्य, धर्म, धैर्य, कीर्ति और श्रीदेवी भी चली गयीं ।

संकट मोचन और चतुर-शिरोमणि हनुमान जी

श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमान जी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मण जी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा--जैसे अनेक कार्य हनुमान जी ने अपने अद्भुत बुद्धि-चातुर्य से किए । आज भी कितने भी संकट में कोई क्यों न हो, हनुमान जी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमान जी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं ।

महर्षि वाल्मीकि और उनका आदिकाव्य ‘वाल्मीकीय रामायण’

सरस्वतीजी कवित्व की शक्ति हैं । सरस्वतीजी की प्रेरणा से ही उनके मुख की वह वाणी, जो उन्होंने क्रौंची को सान्त्वना देने के लिए कही थी, छन्दमय (कविता) बन गयी । यह श्लोक देवी सरस्वती के कृपा प्रसाद से ही महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था । वेदों की बात तो अलग है; परन्तु अब तक लोक में छन्द में बद्ध रचना का प्रारम्भ नहीं हुआ था । पहली बार वाल्मीकिजी के मुख से छन्द में बद्ध पद्य (कविता) फूट पड़ी थी ।