रावण का उत्कर्ष और पतन

अभिमानी दशानन ने कैलासपर्वत को मूल से उखाड़कर अपने कंधों पर उठा लिया। पर्वत हिलते देखकर शिवजी ने कहा--’यह क्या हो रहा है? पार्वतीजी ने हंसते हुए कहा--’आपका शिष्य आपको गुरुदक्षिणा दे रहा है।’ यह अभिमानी रावण का कार्य है, ऐसा जानकर शिवजी ने उसे शाप देते हुए कहा--’अरे दुष्ट! शीघ्र ही तुझे मारने वाला उत्पन्न होगा।’ शिवजी ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया। दशानन का कंधा और हाथ पर्वत के नीचे दब गए तो वह जोर-जोर से रुदन करने लगा। दीर्घकाल तक रुदन करते-करते उसने भगवान शंकर की स्तुति की, जो ताण्डव स्तुति के नाम से प्रसिद्ध है।

दीवाली पूजन में कुबेर पूजा क्यों?

नवनिधियों के स्वामी कुबेर राजाधिराज कुबेर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धन-सम्पदा के स्वामी होने के साथ देवताओं के भी धनाध्यक्ष (treasurer) हैं। संसार के गुप्त या...

श्रीहनुमान को भगवान श्रीराम का आलिंगनदान

भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के बुद्धिकौशल व पराक्रम को देखकर उन्हें अपना दुर्लभ आलिंगन प्रदान किया। भगवान श्रीराम हनुमानजी से कहते हैं--‘संसार में मुझ परमात्मा का आलिंगन मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। हे वानरश्रेष्ठ! तुम्हे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अत: तुम मेरे परम भक्त और प्रिय हो।’

त्रेतायुग की प्रतिज्ञा भगवान ने द्वापरयुग में पूरी की

हनुमानजी के मन में पूर्ण विश्वास था कि उनके आराध्य श्रीराम अपने भक्त की प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करेंगे। अत: वे वहां से चल दिए और रामदल में आकर श्रीरामजी से अपनी ‘प्रतिज्ञा’ और गिरिराजजी की ‘व्यथा’ निवेदन की। गिरिवर आप निराश न हों और मुझे क्षमा करें। द्वापरयुग के अंत में श्रीकृष्ण अवतार होगा, वे ही आपकी इच्छा पूर्ति करेंगे। जब इन्द्र की पूजा का खण्डन करके भगवान श्रीकृष्ण आपकी पूजा करवाएंगे तो इन्द्र कुपित होकर व्रज में उत्पात करने लगेगा। उस समय आप व्रजवासियों के रक्षक होंगे। मैं श्रीरामजी के पास जाकर विनती करुंगा। दीनबन्धु श्रीराम आपको दर्शन अवश्य देंगे।

मनुष्य का सच्चा साथी कौन है?

नाशवान संसार में केवल धर्म ही अचल है और मनुष्य का सच्चा साथी है।

श्रीराम की सेवा के लिए शंकरजी ने लिया हनुमान का अवतार

हनुमन्नाटक के एक प्रसंग में रावण मन-ही-मन यह सोचता है कि मेरे दसों सिरों को चढ़ाने से शिवजी तो प्रसन्न हो गए, परन्तु एकादश रुद्र को मैं संतुष्ट न कर सका (हनुमानजी ग्यारहवें रुद्र के अंश माने जाते हैं); क्योंकि मेरे पास ग्यारहवां सिर था ही नहीं। इसी कारण शिवकोप से ही मेरी लंका का दहन हुआ। मैंने शिव और रुद्र में भेद किया, मेरी मति मारी गयी थी जो मैंने ऐसा किया।

भगवान श्रीराम का शब्दावतार ‘श्रीरामचरितमानस’

गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान शंकर, मारुतिनंदन हनुमान, पराम्बा पार्वतीजी, परब्रह्म भगवान श्रीराम और शेषावतार लक्ष्मणजी ने समय-समय पर अपना दर्शन देकर श्रीरामचरितमानस उनसे लिखवाया और भगवान श्रीराम ने ‘शब्दावतार’ के रूप में श्रीरामचरितमानस में प्रवेश किया ।

नंदोत्सव के बधाई गीत

भगवान के जन्म महोत्सव पर बधाइयां गाना भगवान की सेवा ही है अत: यह भक्ति का ही एक अंग है । बधाइयों में भगवान के प्राकट्य पर व्रजवासियों के आनंद का गायन किया जाता है ।

सीताजी को किसके शाप के कारण श्रीराम का वियोग सहना पड़ा...

सीताजी के जीवन में आने वाले विरह दु:ख का बीज उसी समय पड़ गया । इसी वैर भाव का बदला लेने के लिए वही तोता अयोध्या में धोबी के रूप में प्रकट हुआ और उसके लगाये लांछन के कारण सीताजी को वनवास भोगना पड़ा ।