ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार सृष्टि काल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था । वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थीं । भगवान श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम ‘सरस्वती’ हुआ । ये ही विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं । पुस्तक और कलम में मां सरस्वती का निवास-स्थान माना जाता है, इसलिए इनको कभी भी जूठे हाथों से नहीं छूना चाहिए और अपवित्र जगह पर नहीं रखना चाहिए ।
‘श्रीदेवीभागवत’ के अनुसार आद्याशक्ति ने अपने-आपको तीन भागों में विभक्त किया, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से जानी जाती हैं ।
मां सरस्वती की महिमा अपार है । इन्हें वेद में ‘वाग्देवी’ कहा गया है । वाग्देवी को प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य संसार के सारे सुख भोगता है क्योंकि विद्या को सभी धनों में सर्वश्रेष्ठ धन कहा गया है । विद्यार्थियों को विशेष रूप से मां सरस्वती का नाम-जप करना चाहिए । मां सरस्वती की कृपा से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है ।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने गंगा और सरस्वती को एक समान माना है । गंगा पापहारिणी है तो मां सरस्वती अविवेकहारिणी हैं ।
मां सरस्वती का द्वादश (12) नाम स्तोत्र
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती ।
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी ।।
पंचमं जगती ख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा ।
सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी ।।
नवमं बुधमाता च दशमं वरदायिनी ।
एकादशं चन्द्रकान्तिर्द्वादशं भुवनेश्वरी ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
जिह्वाग्रै वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती ।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विश्वरूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ।।
मां सरस्वती के द्वादश (12) नाम हिन्दी में
- भारती
- सरस्वती
- शारदा
- हंसवाहिनी
- ख्याता
- वागीश्वरी
- कुमुदी
- ब्रह्मचारिणी
- बुधमाता
- वरदायिनी
- चन्द्रकान्ति
- भुवनेश्वरी
मां सरस्वती के इन चमत्कारी सिद्ध 12 नामों के नित्य तीन बार पाठ करने से मनुष्य की जिह्वा के अग्र भाग पर सरस्वती विराजमान हो जाती है अर्थात् जो भी बात वह कहता है वह पूरी हो जाती है । महर्षि वाल्मीकि, व्यास, वशिष्ठ, विश्वामित्र और शौनक आदि ऋषि सरस्वतीजी की साधना से ही सिद्ध हुए ।