मां बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं । बगला + मुखी अर्थात् बगला के समान मुख होने के कारण ये देवी बगलामुखी कहलाती हैं । स्वयं पीत वर्ण (पीले रंग) की हैं, पीले रंग के ही वस्त्र, आभूषण और माला धारण करती हैं इसलिए मां पीताम्बरा कहलाती हैं ।
शत्रुओं का स्तम्भन करने वाली देवी हैं मां बगलामुखी
मुकदमे में विजय प्राप्ति तथा शत्रुओं के स्तम्भन (रोकना), विनाश और वशीकरण के लिए मां बगलामुखी की उपासना रामबाण है । शत्रुओं के मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, अनिष्ट ग्रहों की शान्ति, मनचाहे व्यक्ति से मिलन, धन प्राप्ति और मुकदमे में विजय प्राप्त करने के लिए मां बगलामुखी की साधना की जाती है । इसके लिए इनसे बढ़कर और किसी देवता की उपासना नहीं है । शत्रु भय से मुक्ति व वाक् सिद्धि देने के कारण इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा (जीभ) और दूसरे में मुद्गर है । ये देवी वाणी, विद्या और गति को नियन्त्रित करती हैं । परमात्मा भी इनकी शक्ति से सम्पन्न होने पर ही जगत की रक्षा व पालन का कार्य करते हैं । इन्हीं की स्तम्भन शक्ति के कारण सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी और द्यौ आदि लोक अपनी मर्यादा में ठहरे हुए हैं ।
ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जानी जाती हैं मां बगलामुखी
जो संसार के व धर्म के नियमों का अतिक्रमण करते हैं, उनका नियन्त्रण करने और उनको अनुशासित करने में मां बगलामुखी परमात्मा की सहायिका रहती है । मनुष्य ही नहीं देवता भी दु:खों, अनिष्टों और शत्रुओं के नाश के लिए चिरकाल से मां बगलामुखी की साधना करते आए हैं और इनकी साधना कभी निष्फल नहीं जाती इसलिए इन्हें ‘ब्रह्मास्त्र’ कहते हैं ।
मां बगलामुखी की उपासना में ध्यान रखने योग्य बातें
- मां बगलामुखी की साधना गुरु के सांनिध्य में रह कर करनी चाहिए । गुरु से ही बगलामुखी मन्त्र ग्रहण कर सावधानीपूर्वक और सफलता की प्राप्ति होने तक साधना करते रहना चाहिए ।
- मां बगलामुखी की साधना में इन्द्रिय संयम, पवित्रता व ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है ।
- शुद्ध, एकान्त स्थान पर, घर पर, मन्दिर में, पर्वत की चोटी पर, घने जंगल या प्रसिद्ध नदियों के संगम पर अपनी सुविधानुसार रात या दिन में मां बगलामुखी का अनुष्ठान किया जाता है ।
- मां बगलामुखी की उपासना में सभी वस्तुएं पीली होनी चाहिए । जैसे साधना पीले वस्त्र पहनकर की जाती है । पूजा में हल्दी की माला व पीले आसन, पीले पुष्प—गेंदा, पीले कनेर, प्रियंगु (मालकंगनी) और पीले चावल का प्रयोग होता है ।
- साधक को दोपहर में दूध, चाय व फलाहार लेना चाहिए और रात्रि में पीली खीर, बेसन के लड्डू, बूंदी, पूड़ी शाक आदि का भोजन करना चाहिए ।
मां बगलामुखी पूजा विधि
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावें ।
पीत वसन देवी पहिरावै ।। ११।।
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।
अबीर गुलाल सुपारी चंदन ।।१२।।
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।
सबहिं चढ़ाइ धरै उर ध्याना ।।१३।।
धूप दीप कर्पूर की बाती ।
प्रेम सहित तब करै आरती ।।१४।।
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।
पूरण करहु मातु मनोरथ मोरे ।।१५।। (वगलामुखी चालीसा)
मां बगलामुखी के साधक को चाहिए कि वह स्नान आदि से पवित्र होकर पीले वस्त्र पहने, पूर्व की ओर मुख करके पीले आसन पर बैठे और पूजा की सभी सामग्री अपने पास रख ले । मां को पीला वस्त्र (पीली चुनरी) धारण कराए । मन्दिर में पूजा कर रहे हैं तो पीली ध्वजा चढाएं । घर पर साधना कर रहे हैं तो भी पीली ध्वजा घर के मन्दिर पर लगा सकते हैं । मां को पीला केसर चंदन, रोली, हल्दी, चावल, अबीर गुलाल, पीले पुष्प या माला चढ़ाएं । बेसन के लड्डू, पीले फल और पान सुपारी का भोग लगाकर धूप दीप से आरती करें । हाथ जोड़ कर मां की स्तुति (चालीसा आदि) का पाठ करने से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं ।
मां बगलामुखी का मन्त्र
३६ अक्षरों का मन्त्र इस प्रकार है—
‘ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा’।
इस मन्त्र का एक लाख या दस हजार जप, २१ दिन, ११ दिन, ९ दिन या ७ दिन में करें । किसी शुद्ध स्थान पर एक छोटी चौकी या पट्टे पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर पीले चावल से अष्टदल कमल बना कर उस पर मां बगलामुखी का चित्र स्थापित करें । आवाहन और षोडशोपचार पूजन कर जप आरम्भ करें । पहले दिन जितनी संख्या में जप करें, उतना ही प्रतिदिन करना चाहिए । बीच में ज्यादा या कम जप करने से जप खंडित हो जाता है ।
पीले पदार्थों से जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए । ऐसा करने से साधक के असाध्य कार्य की सिद्धि, मनोवांछित फल की प्राप्ति और शत्रुओं का स्तम्भन या नियन्त्रण आदि कार्य सिद्ध हो जाते हैं ।
मां बगलामुखी के आविर्भाव की कथा
एक बार सत्ययुग में संसार को नष्ट करने वाला तूफान आया । प्राणियों के जीवन पर संकट आया देखकर जगत की रक्षा में नियुक्त महाविष्णु बहुत चिंतित हुए और वे सौराष्ट्र प्रदेश में हरिद्रा सरोवर के पास जाकर भगवती त्रिपुरसुन्दरी को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे । प्रसन्न होकर मां त्रिपुरसुन्दरी श्रीविद्या ने उस सरोवर से निकल कर पीताम्बरा के रूप में उन्हें दर्शन दिए और विध्वंसकारी जल के तूफान को स्तम्भित (रोक दिया) कर दिया । श्रीविद्या का पीताम्बरा अवतार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था ।
बाह्य शत्रुओं की अपेक्षा मनुष्य के आन्तरिक शत्रु (काम, क्रोध आदि) उसका अधिक नुकसान करते हैं । इसलिए उनको भी मां बगलामुखी के चरणों में अर्पण करने से मनुष्य हर प्रकार से सदा के लिए सुखी हो जाता है ।