प्राय: श्रीराधा को एक साधारण गोपी मानकर अनेक व्यक्ति उनकी पूजा करने से इंकार करते हैं और केवल श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं । वे श्रीराधा को दोष-दृष्टि और मलिन भावों से देखते हैं । यह भी कहा जाता है कि श्रीराधा की पूजा अभी कुछ शताब्दियों पहले ही शुरु हुई है, जबकि सच तो यह है कि अत्यन्त प्राचीन उपनिषदों, पुराणों—श्रीमद्भागवत्, विष्णुपुराण, पद्मपुराण, मत्स्यपुराण, भविष्यपुराण, वायुपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, गर्गसंहिता, सनत्कुमारसंहिता, नारदपांचरात्र आदि ग्रंथों में श्रीराधाकृष्ण का चरित्र पढ़ने को मिलता हैं ।
श्रीराधा एक अलौकिक चरित्र
अलौकिक का अर्थ है—अ + लौकिक अर्थात् जो इस लोक का नहीं है, दिव्य और अलौकिक है । गोलोक में श्रीकृष्ण के पार्षद श्रीदामा के शाप के कारण श्रीराधा को भूतल पर अवतरित होना पड़ा ।
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीराधा से कहा–’वाराहकल्प में मैं पृथ्वी पर जाऊँगा और व्रज में जाकर वहां के पवित्र वनों में तुम्हारे साथ विहार करुंगा । मेरे रहते तुमको क्या चिन्ता है ? श्रीदामा के शाप की सत्यता के लिए कुछ समय तक बाह्यरूप से मेरे साथ तुम्हारा वियोग रहेगा ।’
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार श्रीकृष्णावतार के समय भगवान श्रीकृष्ण ने गोपों और गोपियों को बुलाकर कहा–’गोपों और गोपियो ! तुम सब-के-सब नन्दरायजी का जो उत्कृष्ट व्रज है, वहां गोपों के घर-घर में जन्म लो । राधिके ! तुम भी वृषभानु के घर अवतार लो । वृषभानु की पत्नी का नाम कलावती है। वे सुबल की पुत्री हैं और लक्ष्मी के अंश से प्रकट हुई हैं । वास्तव में वे पितरों की मानसी कन्या हैं । पूर्वकाल में दुर्वासा के शाप से उनका व्रजमण्डल में गोप के घर में जन्म हुआ है । तुम उन्हीं कलावती की पुत्री होकर जन्म ग्रहण करो । नौ मास तक कलावती के पेट में स्थित गर्भ को माया द्वारा वायु से भरकर रोके रहो । दसवां महीना आने पर तुम भूतल पर प्रकट हो जाना । अपने दिव्यरूप का परित्याग करके शिशुरूप धारण कर लेना । तुम गोकुल में अयोनिजारूप से प्रकट होओगी । मैं भी अयोनिज रूप से अपने-आप को प्रकट करूंगा; क्योंकि हम दोनों का गर्भ में निवास होना सम्भव नहीं है । मैं बालक रूप में वहां आकर तुम्हें प्राप्त करूंगा । हम दोनों का कुछ भी एक-दूसरे से भिन्न नहीं है । हम सदैव एकरूप हैं । भूतल का भार उतारकर तुम्हारे और गोप-गोपियों के साथ मेरा पुन: गोलोक में आगमन होगा ।’
ब्रह्मवैवर्तपुराण में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने नन्दबाबा से कहा–’जैसे दूध में धवलता होती है, दूध और धवलता में कभी भेद नहीं होता; जैसे जल में शीतलता, अग्नि में दाहिका शक्ति, आकाश में शब्द, भूमि में गन्ध, चन्द्रमा में शोभा, सूर्य में प्रभा और जीव में आत्मा है; उसी प्रकार राधा के साथ मुझको अभिन्न समझो । तुम राधा को साधारण गोपी और मुझे अपना पुत्र न जानो । मैं सबका उत्पादक परमेश्वर हूँ और राधा ईश्वरी प्रकृति है ।’
भगवान शंकराचार्य जिनको ईसापूर्व चौथी शताब्दी में अवतरित माना जाता है, अपने यमुनाष्टक में श्रीराधा का वर्णन किया है ।
स्कन्दपुराण के अनुसार—‘भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा श्रीराधा हैं, उनके साथ रमण करने के कारण ही श्रीकृष्ण ‘आत्माराम’ कहे जाते हैं ।’
राधे ! तू ही चित्तरंजनी, तू ही चेतनता मेरी ।
तू ही नित्य आत्मा मेरी, मैं हूँ, बस आत्मा तेरी ।।
तेरे बिना न मैं हूँ, मेरे बिना न तू रखती अस्तित्व ।
अविनाभाव विलक्षण यह सम्बन्ध, यही, बस, जीवन-तत्त्व ।। (पद-रत्नाकर)
भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार के शब्दों में—श्रीमद्भागवत में श्रीराधा वैसे ही हैं, जैसे दूध में गुप्त रूप से घी ।
श्रीराधा एक अलौकिक, दिव्य शक्ति—माता पार्वती के तर्क
ब्रह्मवैवर्तपुराण (श्रीकृष्ण खण्ड, अध्याय २७) में माता पार्वती श्रीराधा को कहती हैं कि आप कोई साधारण स्त्री नहीं हैं, आप मानवी कैसे हो सकती हैं ? इसके लिए वह कितने सारे तर्क देती हैं—
- परमात्मा श्रीकृष्ण के वाम अंग से आप प्रकट हुई हैं और तेज में श्रीकृष्ण के समान हैं, आपके ही तेज और कला से सभी देवियों—ब्रह्माणी, लक्ष्मी व उमा की उत्पत्ति हुई है; फिर आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- आप श्रीकृष्ण की प्राणस्वरूपा हैं और स्वयं श्रीकृष्ण आपके प्राण हैं । वेद में आप दोनों में कोई भेद नहीं बताया गया है । राधातापनी उपनिषद् में कहा गया है—‘जो ये राधा और रस के सागर श्रीकृष्ण हैं, वे एक ही हैं पर खेल (लीला) के लिए दो रूप बने हुए हैं ।‘ फिर आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- प्रत्येक कल्प में जब-जब आप अवतार लेती हैं, तब-तब परमात्मा श्रीकृष्ण ही आपके पति होते हैं । श्रीदामा के शाप से और भूमि का भार उतारने के लिए श्रीकृष्ण की आज्ञा से ही गोपी का रूप धारण करके आप गोलोक से व्रजमण्डल में अवतरित हुई हैं, ऐसी दशा में आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- जैसे मैं महादेवजी की सौभाग्यवती पत्नी हूँ, वैसे ही तुम श्रीकृष्ण की सौभाग्यशालिनी प्रिया हो । स्त्री जाति में तुमसे बढ़कर सौभाग्यशालिनी कोई दूसरी स्त्री नहीं है । तुम दीर्घकाल तक यहां रहने के बाद श्रीकृष्ण के साथ गोलोक चली जाओगी, फिर तुम मानवी स्त्री कैसे हो ?
- श्रीराधा रास की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिए भगवान श्रीकृष्ण के ‘रासेश्वर’ नाम की सार्थकता भी श्रीराधा से ही है; फिर आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- श्रीकृष्ण जिनकी आराधना करते हैं, इसलिए वे ‘राधा’ कहलाती हैं, फिर आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- ‘राधा’ शब्द का ‘रा’ प्राप्ति का वाचक है और ‘धा’ निर्वाण का । अत: राधा मुक्ति देने वाली हैं; फिर आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- पूर्व काल में ब्रह्माजी साठ हजार वर्षों तक तप करके भी आपके चरणकमलों का दर्शन नहीं कर सके, उसी तप के प्रभाव से श्रीराधा श्रीधामवृन्दावन में प्रकट हुई हैं, जहां ब्रह्माजी को इनका दर्शन प्राप्त हो सका; तब आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- मनु वंश में उत्पन्न राजा सुयज्ञ आपकी कृपा से गोलोक धाम चले गए, फिर आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
- आपके मन्त्र का जप करने से और कवच धारण करने से परशुरामजी इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन करने में समर्थ हुए और सहस्त्रबाहु को मार सके; तब आप मानवी कैसे हो सकती हैं ?
इन सब तथ्यों को जानने के बाद यही सिद्ध होता है कि श्रीराधा व्रज की कोई साधारण स्त्री या गोपी नहीं वरन् श्रीकृष्ण की परम अलौकिक, चिन्मय और आह्लादिनी शक्ति हैं ।
स्वयं भगवान शंकर का कथन है—
गौरतेजो विना यस्तु श्यामतेज: समर्चयेत् ।
जपेद्वा ध्यायते वापि स भवेत् पातकी शिवे ।। (सम्मोहन-तन्त्र)
गौर तेज (श्रीराधा) के बिना जो अकेले श्याम तेज (श्रीकृष्ण) का अर्चन, जप और ध्यान करता है, वह पाप का भागी होता है ।’ भगवान की आराधना शक्ति सहित ही करनी चाहिए ।