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भगवान ने सृष्टि रचना के साथ ही मनुष्य के मन, बुद्धि व हृदय के भीतर भगवन्भावना को बनाए रखने के लिए उसकी जिह्वा पर अपने-आप ही भगवन्नाम को प्रकट किया है । जब प्राणी पर विपत्ति आती है, दु:ख पड़ता है या अमंगल आता हुआ दिखाई देता है तो स्वत: ही मुख से ‘हे राम !’ या ‘हाय राम !’ की करुण ध्वनि निकल जाती है; आत्मा अनायास ही उस मंगलकर्ता भगवान के पावन मधुर नाम को पुकार उठती है । भगवान मनुष्य के चित्त को सदा आकर्षित करते हैं और वह सदा अंत:करण से भगवान को चाहता है । अत: भगवान का नाम उसकी रसना में अपने-आप स्फुरित होता है । यह भगवान की अहैतुकी कृपा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । नाम में भगवान ने अपनी समस्त शक्ति और प्रकाश रख दिया है जिससे मनुष्य निर्भय होकर इस संसार की यात्रा कर सकता है ।

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है—ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, नारायण, हरि, दुर्गा, काली, तारा, अन्नपूर्णा, गॉड, इन्द्र, चन्द्र, वायु, वरुण, सूर्य, अग्नि, प्रजापति–ये सब उन्हीं के नाम हैं । प्रत्येक नाम का अर्थ वह परमात्मा ही है। यों तो प्रभु के अनन्त नाम हैं परन्तु उनका एक नाम है–’अनामी’। सचमुच उनका कोई एक नाम नहीं है, इसलिए जिस नाम से आप पुकारेंगे, उसी नाम से वह बोल उठेगें क्योंकि वह अंतस्तल की परा वाणी के भी प्रकाशक हैं । पुराणों में मनुष्य को विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के अलग-अलग नाम-स्मरण करने के लिए कहा गया है, जैसे–

–सोकर उठते ही ‘विष्णु’ का स्मरण करें–उत्तिष्ठन् कीर्तयेद् विष्णुम् ।

–निद्राकाल में मनुष्य ‘माधव’‘पद्मनाभ’ का स्मरण करे–प्रस्वपन् माधवं नर: ।

–स्नान, देवार्चन, हवन, प्रणाम तथा प्रदक्षिणा करते समय मनुष्य को ‘वासुदेव’ नाम का जप करना चाहिए–कीर्तयेद् भगवन्नाम वासुदेवेति तत्पर: ।

–भोजन करते समय ‘गोविन्द’‘जनार्दन’ का स्मरण करें–भोजने चैव गोविन्दं ।

–औषधि-सेवन करते समय ‘अच्युत’, ‘अमृत’‘विष्णु’ नामों का जप करना चाहिए ।

–संतान की प्राप्ति के लिए भक्तिपूर्वक ‘जगत्पति’ (जगदीश या जगन्नाथ) की स्तुति करने वाला कभी दु:खी नहीं होता–जगत्पतिमपत्यार्थं स्तुवन् भक्त्या न सीदति ।

–विद्यार्थी को प्रतिदिन ‘पुरुषोत्तम’ नाम का स्मरण करना चाहिए ।

–सभी प्रकार की नेत्र बाधाओं में नित्य-निरन्तर ‘केशव’ तथा ‘पुण्डरीकाक्ष’ नामों का जप करना चाहिए ।

–जल को पार करते समय भगवान ‘कूर्म’ (कच्छप), ‘वराह’ अथवा ‘मत्स्य’ का स्मरण करना चाहिए–कूर्मं वराहं मत्स्यं वा जलप्रतरणे स्मरेत् ।

–कही आग लग गयी हो उसकी शान्ति के लिए ‘भ्राजिष्णु’ इस नाम का लगातार जप करना चाहिए । घर या गांव में आग लग जाने पर ‘जलशायी’ का स्मरण करना चाहिए–अग्निदाहे समुत्पन्ने संस्मरेज्जलशायिनम् ।

–अत्यन्त घोर अंधकार में डाकू तथा शत्रुओं की संभावना होने पर मनुष्य को बारम्बार ’नरसिंह’ नाम का स्मरण करना चाहिए ।

–‘गरुणध्वज’ नाम के बारम्बार स्मरण से मनुष्य से सर्पविष का प्रभाव दूर हो जाता है ।

–युद्ध के लिए जाते समय ‘अपराजित’ नाम का स्मरण करना चाहिए–संग्रामाभिमुखे गच्छन् संस्मरेदपराजितम् ।

–सम्पूर्ण अरिष्टों के निवारण के लिए सदा ‘विशोक’ नाम का जप करना चाहिए–अरिष्टेषु ह्यशेषेषु विशोकं च सदा जपेत् ।

–बंधन में पड़ा हुआ मनुष्य नित्य ही’ दामोदर’ नाम का जप करे–दामोदरं बन्धगतो नित्यमेव जपेन्नर: ।

–भय-नाश के लिए ‘हृषीकेश’ नाम का स्मरण करना चाहिए–हृषीकेशं भयेषु च ।

–सब प्रकार के अभ्युदय के लिए ‘श्रीश’’श्रीपति’ नाम का बार-बार उच्चारण करना चाहिए–श्रीशं सर्वाभ्युदयिके कर्मण्याशु प्रकीर्तयेत् ।

–धन-धान्यादि की स्थापना के समय मनुष्य को श्रद्धापूर्वक ‘अनन्त’‘अच्युत’ इन नामों का स्मरण करना चाहिए ।

–परदेश जाते समय या परदेश में रहते समय कल्याण चाहने वाले व्यक्ति को ‘चक्री’ (चक्रपाणि), ‘गदी’ (गदाधर), ‘शांर्गी’ (शांर्गधर) तथा ‘खंगी’ (खंगधर)–इन नामों का स्मरण करना चाहिए ।

–मांगलिक कार्यों में मंगलकारी ‘श्रीविष्णु’ का स्मरण करें–मंगल्यं मंगले विष्णुं मंगल्येषु च कीर्तयेत् ।

–युद्ध के समय युद्धार्थी मनुष्य ‘बलभद्र’ का स्मरण करे–बलभद्रं तु युद्धार्थी ।

–खेती के आरम्भ में किसान ‘हलायुध’ का स्मरण करे–कृष्यारम्भे हलायुधम् ।

–व्यापार करने वाले वैश्य ‘उत्तारण’ का चिन्तन करें व अभ्युदय की इच्छा रखने वाला ‘राम’ का स्मरण करे–उत्तारणं वणिज्यार्थी राममभ्युदये नृप ।

–अभीष्ट कामना की सिद्धि के लिए ‘काम’, ‘कामप्रद’, ‘कान्त’, ‘कामपाल’, ‘हरि’, ‘आनन्द’ और ‘माधव’–इन नामों का जप करना चाहिए–काम: कामप्रद: कान्त: कामपालस्तथा हरि: । आनन्दो माधवश्चैव कामसंसिद्धये जपेत् ।।

–शत्रुओं पर विजय पाने की इच्छा वाले लोगों को ‘राम’, ‘परशुराम’, ‘नृसिंह’, ‘विष्णु’ तथा ‘विक्रम’ इन भगवन्नामों का जप करना चाहिए ।

–स्वेच्छा या परइच्छावश किसी निर्जन स्थान में पहुंचने पर, आंधी-तूफान, अग्नि (दावानल), अगाध जलराशि में फंसने पर जब प्राण संकट में हों तो बुद्धिमान मनुष्य को ‘वासुदेव’ नाम का जप करना चाहिए ।

–समस्त व्यवहारों में सदा मनुष्य ‘अजित’, ‘अधिप’, ‘सर्व’ तथा ‘सर्वेश्वर’–इन नामों का स्मरण करे ।

–हर समय मानव  ‘मधुसूदन’ का चिन्तन करें ।

—आर्त, दु:खी, शिथिल व घोर वन में सिंह आदि से भयभीत मनुष्य को ‘नारायण’ नाम का स्मरण करना चाहिए —

आर्ता विषण्णा: शिथिलाश्च भीता,
घोरेषु च व्याघ्रादिषु वर्तमाना: ।
संकीर्त्य नारायण शब्दमात्रं,
विमुक्तदु:खा: सुखिनो भवन्ति ।। (पाण्डव-गीता)

—श्रीमद्भागवत (३।९।१५) में ब्रह्माजी कहते हैं–’जो लोग प्राण जाते समय आपके अवतार, गुण और कर्मों को बताने वाले देवकीनन्दन, भक्तवत्सल, गोवर्धनधारी आदि नामों का विवश होकर भी उच्चारण करते हैं, वे अनेक जन्मों के पापों से अमृत ब्रह्मपद को प्राप्त करते हैं ।’

—जैसे आग बुझा देने के लिए जल और अन्धकार को नष्ट कर देने के लिए सूर्योदय समर्थ है, उसी प्रकार कलियुग की पापराशि का शमन में ‘श्रीहरि’  और ‘गोविन्द’ नाम का कीर्तन समर्थ है ।

—श्रीमद्भागवत (१२।१२।४६) के अनुसार–’जो मनुष्य गिरते-पड़ते, फिसलते, दु:ख भोगते अथवा छींकते समय विवशता से भी ऊंचे स्वर में ‘हरये नम:’ बोल उठता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है ।’

—भगवत्प्राप्ति के लिए—

पुरानन को पार नहिं बेदन को अंत नहिं,
बानी तो अपार कहाँ-कहाँ चित्त दीजिए।
लाखन की एक कहूँ, कहूँ एक करोड़न की,
बही को सार एक रामनाम लीजिए ।।

भगवान के सभी नाम समान महत्त्व रखते हैं, किसी भी नाम में ऊंच-नीच का भाव नहीं रखना चाहिए क्योंकि भगवान के नाम मनुष्य के पथ-प्रदर्शक, प्रकाश-स्तम्भ, अपार शक्ति-सम्पन्न और भवसागर से पार उतारने वाले हैं ।

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